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Wednesday 31 December 2014

कलम की आवाज: दो पल 2014 के वास्ते

कलम की आवाज: दो पल 2014 के वास्ते: दोस्तों साल 2014  की तबियत नासाज है... 4 घंटे बचे हैं...हमारा सभी से निवेदन है कि आखिरी चार घंटे बचे पल को यादगार बना लें...फिर किसी जन...

दो पल 2014 के वास्ते

दोस्तों साल 2014 की तबियत नासाज है...4 घंटे बचे हैं...हमारा सभी से निवेदन है कि आखिरी चार घंटे बचे पल को यादगार बना लें...फिर किसी जन्म में भी इसका दर्शन दुर्लभ है...कि मौजूदा साल को यादगार बनाएं और 2015 के जश्न का जश्न मनाएं...इस मौके को जानें न दें...प्लीज...प्लीज...प्लीज...प्लीज...प्लीज...मां लक्ष्मी आप पर धन वर्षा करें...सरस्वती जी आपको ज्ञान का भंडार दें...और हम आपको नए साल में खुश रहने की कसम देते हैं...नव वर्ष मंगलमय हो....नया साल मुबारक हो...HAPPY NEW YEAR…नूतन वर्ष शुभ हो...एक बार फिर दिल से सभी दोस्तों और 120 करोड़ देशवासियों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना एक बार फिर तहे दिल से सभी दोस्तों और समस्त देशवासियों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना फिर अगले साल होगी मुलाकात हेलो हाय नमस्कार, आदाब, सत श्री अकाल


2014 अलविदा कह दिए, 2015 का स्वागत करते दिखे
लुटा गए जश्न में हजारों, जश्न का हुस्न बिखरा तो सब भूखे नंगे दिखे
हमने भी किया स्वागत 2015 का, पर जश्न में लुटाई नहीं फूटी कौड़ी
राह में मिलते गए भूखे नंगे, दी रोटी और चढ़ता गया पौड़ी-पौड़ी
क्रिसमस पर हमने, रोशनी में नहाया नया हिंदुस्तान देखा
बच्चों को उपहार देते हजारों सेंटा क्लॉज देखा
फिर भी भिखारी की कटोरी खाली रह गई
ग़रीबों के तन पर थे कपड़े पर उनमें भी जाली रह गई
गर्म कपड़ों के बिन गरीब मरते रहे
अमीर बच्चों को उपहार मिलते रहे
त्योहारों की चमक तो है सिर्फ अमीरों की खातिर
गरीबों को इतना संतोष है, मारे फिरते हैं वो बस बनके क़ाफ़िर
निवेदन आप से करता हूं, नए साल में लें नया शपथ
भूखों को रोटी दें जरूरत मंदों की करें मदद
मनाएं पूरे साल मिलकर जश्न, करें एक दूजे की मदद
                                         भीम चंद
मां का आंचल मिल जाए तो असीम सुकून मिलता है
मिले बीवी का जो दामन चेहरा झुलस जाता है
मां जो रख दे सर पर हाथ तन मन पुलकित हो जाए
रखे जो हाथ बीवी तो बदन में आग लग जाए
मां के सामने तो लफ्ज भी आजाद लगते हैं
सामने बीवी आ जाए तो अल्फाज भी गुलाम लगते हैं
                               भीम चंद

Sunday 28 December 2014

कलम की आवाज: पतन की राह पर कांग्रेस

कलम की आवाज: पतन की राह पर कांग्रेस: कांग्रेस पार्टी अब तक 130 बसंत देख चुकी है...और अब अपने सियासी बुढ़ापे की ओर बढ़ने लगी है...उसका चेहरा भी बेनूर होता दिख रहा है...ऐसा लग...

पतन की राह पर कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी अब तक 130 बसंत देख चुकी है...और अब अपने सियासी बुढ़ापे की ओर बढ़ने लगी है...उसका चेहरा भी बेनूर होता दिख रहा है...ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस सियासी बनवास पर जाने को तैयार है...कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के इकलौते वारिस राहुल गांधी भी प्रभाव हीन हो रहे हैं...अब ना नेहरू का दौर रहा और ना ही इंदिरा का...जो आजीवन हिंदुस्तान पर राज करते रहे...वो एक दौर था जब कांग्रेस के छोटे से दफ्तर में भी दिन रात चहल पहल रहती थी...आज बड़ा दफ्तर भी सन्नाटे में गुम है...लेकिन पार्टी का 130वां जन्मदिन था...तो थोड़ी रौनक तो बनती ही थी...लिहाजा कांग्रेस के कई दिग्गज दफ्तर पहुंचे...कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी का झंडा फहराया तो वहां मौजूद नेता बनावटी हंसी से खुश नजर आने की जद्दोजहद करने लगे...लेकिन इस खुशी में भी पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी शरीक नहीं हुए...राहुल की गैर मौजूदगी कार्यकर्ताओं और नेताओं को तन्हाई और मायूसी दे गया..पार्टी का एक एक किला ढहता जा रहा है...मनोबल काफूर हो रहा है...पार्टी की कमान नए हाथ में सौंपने की मांग समय समय पर प्रबल होती जा रही है...लेकिन परिवारवाद की जकड़न में फंसी कांग्रेस इस मोह से उबर नहीं पा रही है...जिसका खामियाजा पार्टी के पतन के रूप में दिखाई पड़ रहा है...साल 2014 अलविदा कहने को तैयार है...इसने कांग्रेस पार्टी को जो दर्द दिया है...उसकी चीख सदियों तक सुनाई पड़ेगी...जिसने उसके विपक्ष में बैठने तक का अधिकार छीन लिया...भले ही कांग्रेसी नेता बीजेपी पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाते रहे...लेकिन नरेंद्र मोदी की लहर पर जो जनादेश मिला उसने सियासत की परिभाषा ही बदल दी...यहां तो चोर चोर मौसेरे भाई वाली कहावत सच साबित हो रही है...बीजेपी के खिलाफ सभी दल एकजुट हो चुके हैं...लेकिन जनता को तो बस मोदी में ही रब दिखता है...

चांदी का चम्मच अकेला रह गया...
चमचे सभी धर्म परिवर्तन कर गए...
जो चांदी की प्लेट लेकर पैदा हुए थे...
वो चम्मच के मोहताज हो गए...
खाली केतली से गुजरी थी जिंदगी जिसकी....
वो प्लेट चम्मच के दुकानदार बन गए..

Friday 5 December 2014

कलम की आवाज: विपक्ष का धर्म

कलम की आवाज: विपक्ष का धर्म: ये है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर...लेकिन ये अपने ही पुजारियों की कारगुजारी से शर्मिंदा है...इस मंदिर का कपाट जब खु...

कलम की आवाज: विपक्ष का धर्म

कलम की आवाज: विपक्ष का धर्म: ये है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर...लेकिन ये अपने ही पुजारियों की कारगुजारी से शर्मिंदा है...इस मंदिर का कपाट जब खु...

विपक्ष का धर्म

ये है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर...लेकिन ये अपने ही पुजारियों की कारगुजारी से शर्मिंदा है...इस मंदिर का कपाट जब खुलता है, तो जनता की नजरें उम्मीद की आस में उसके चौखट पर रहती हैं...कि वहां से उसे क्या सहूलियत मिलने वाली है...लेकिन जनता के मुकद्दर में तो मायूसी और छलावे के सिवा कुछ नहीं लिखा...यही वजह है कि जिस मंदिर में जनता के सुख चैन पर चर्चा होनी चाहिए उसमें सिर्फ बर्खास्तगी की मांग पर जनता की गाढ़ी कमाई का हर दिन करोड़ों रूपए स्वाहा हो रहा है...सदन के बाहर और भीतर जो सियासी ड्रामा चल रहा है..उससे देश ही नहीं दुनिया भी हैरान है...क्योंकि पहले तो काले धन पर शाल ओढ़कर हंगामा...कभी काला छाता लेकर सदन की गरिमा को तार तार करना...और अब तो सालों बाद कांग्रेसी राजकुमार भी नींद से जाग गए हैं...अब नींद से जागे हैं तो नई ताजगी और उर्जा से ओतप्रोत हैं...लेकिन मुंह आज भी ढका है...ये मुंह खुलेगा भी तो केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन के इस्तीफे के बाद...क्योंकि इस्तीफा देते ही हिंदुस्तान की तस्वीर और तकदीर बदल जाएगी...यही वजह है कि जानवरों का चारा खा जाने वाले लालू यादव भी संतों को जेल भेजने की मांग करते हैं...क्या करें विचारे मोदी की सुनामी में गैर एनडीए दल तबाह हो गए...लिहाजा उस जख्म को भरने के लिए नीतीश, लालू, देवगौड़ा, मुलायम सब एकजुट होकर खुद को जनता का सबसे बड़ा हितैषी बता रहे हैं...और दिल्ली में केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोलेंगे...इसके पीछे भला जनता का नहीं होना है बल्कि उनको अपनी खोई जमीन पाने की चिंता है...जिसके लिए ये दिखावा करने जा रहे हैं...क्योंकि हर चुनाव में गैर बीजेपी दलों की सियासत धरातल में धंसती चली जा रही है...बाबरी एक्शन कमेटी के मुद्दई शाहिद अंसारी मुकदमा वापस लेने का एलान किए तो मानों मुलायम सिंह की छाती पर सांप लोटने लगा...क्योंकि मुसलमान भले ही रामलला को महलों में देख सकते हैं...अयोध्या में राम मंदिर बनते देख सकते हैं...लेकिन अगर मुलायम रामलला को आजाद देख लिए तो उनके उपर सांप्रदायिकता का छींटा जो पड़ जाएगा...अब कांग्रेस के साथ साथ महागठबंधन भी मोदी के विजय रथ को रोकने निकलेगी...इसके पीछे मंसा सिर्फ अपनी सियासत बचाना है...यही विपक्ष का काम है कि देश हित में सरकार को कदम उठाने पर मजबूर करे...साध्वी के इस्तीफे से देश का विकास हो रहा है तो भला विपक्ष अपने कर्तव्यों से कैसे बच सकता है...क्योंकि यही तो जनता के असली मसीहा हैं सरकार तो बस नाम की होती है...असली काम तो विपक्ष का होता है...वो भी जिसके पास विपक्ष में बैठने भर का समर्थन भी नहीं होता...फिर भी मुंह से मुंह नही हारता...चार दिन बीत गए हंगामा अब भी जारी है...और विपक्ष प्रधानमंत्री की सफाई से भी इत्तेफाक नहीं रखता..क्योंकि उसे इस्तीफे से कम कुछ भी मंजूर नहीं है...और कांग्रेस राजकुमार रोज-रोज नये अवतार में नजर आ रहे हैं...तो सरकार ने भी जाति के कवच से विपक्ष के हर वार को रोकने लगी...और कांग्रेस के धरना प्रदर्शन को रोकने के लिए सरकार भी धरने पर बैठ गयी...ताकि राहुल गांधी का मुंह खुलवा सके...साध्वी के बयान पर जनता की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ लुट गए...और हंगामा करने वाले खुद को जनता का मसीहा बता रहे हैं...लेकिन अवाम की कमाई पर डाका डालने वाले ये मसीहा किसी लुटेरे से कम नहीं है...क्योंकि बेतुके बोल की कालिख से हर दल का चेहरा काला हुआ पड़ा है...हजारों बार बदजुबानी से न जाने कितनों का सीना छलनी हुआ है..लेकिन क्या करेंगे साहब अपने चेहरे का दाग किसे नजर आता है...यहां तो वही कहावत चरितार्थ हो रही है...कि दूसरों को नसीहत और खुद मियां फजीहत...अच्छा होगा यदि भगवान इन नेताओं को सदबुद्धि दे देते...तो कम से कम 120 करोड़ जनता ठगे जाने से बच जाती...

Thursday 4 December 2014

कलम की आवाज: बीजेपी अच्छी लगने लगी

कलम की आवाज: बीजेपी अच्छी लगने लगी: 1981 में लावारिस फिल्म के लिए...अंजान के लिखे गीत कब के बिछड़े हुए हम, आज कहां आ के मिले...इस गाने की चंद लाइन महाराष्ट्र के सियासी मैदा...

बीजेपी अच्छी लगने लगी

1981 में लावारिस फिल्म के लिए...अंजान के लिखे गीत कब के बिछड़े हुए हम, आज कहां आ के मिले...इस गाने की चंद लाइन महाराष्ट्र के सियासी मैदान में बिल्कुल सटीक बैठती है...महाराष्ट्र में इसी साल 25 सितंबर को जब 25 साल पुरानी दोस्ती टूटी तो...महाराष्ट्र का सियासी मैदान भी हैरत में पड़ गया...क्योंकि इस बार मुकाबला दोतरफा नहीं चौतरफा होने वाला था...इस मुकाबले में भी बीजेपी सब पर भारी पड़ी...लेकिन बहुमत से महरूम रही...चुनाव में जनता का दिल जीतने के लिए शिवसेना ने बीजेपी को अफजल खान की सेना बताकर हमला बोला...इतना ही नहीं दामोदर दास की औकात तक आंकने लगे उद्धव...लेकिन नतीजों ने तो उन्हे बैकफुट पर ला दिया...कहते हैं कि रस्सी जल जाती है पर बल नहीं जाता...वही हाल शिवसेना का रहा...जनता ने सबक सिखाया फिर भी आंखें नहीं खुली...सदन में कभी विपक्ष की कुर्सी पर बैठे...कभी सदन के बाहर हंगामा...कभी बहुमत पर सवाल उठाकर अपना अलग रंग दिखाया...तो फड़नवीस सरकार ने भी खरी- खरी सुना दी...अंत में थक हारकर शिवसेना को बीजेपी की बात माननी पड़ी और बिना डिप्टी सीएम के सरकार में शामिल होना पड़ा...लेकिन इस दोस्ती में अब नया ट्वीस्ट आ गया है...और नया जोश भी है...लिहाजा हर चुनाव में मिलकर कदम बढ़ाएंगे...क्योंकि अब बीजेपी अफजल खान की सेना नहीं रही...और न ही श्राद्ध का कौवा...इसीलिए शिवसेना भी अब साथ है...अवसरवाद ही सियासत का दूसरा रूप है...और बिना अवसरवाद के राजनीति का रंग फीका पड़ जाता है...शिवसेना अब अपने ही बुने जाल में फंस गयी है...लेकिन अवसरवाद के कवच से शिवसेना ने खुद को बचा लिया..अब जनता को अफसोस होगा कि ये जनता का भला कर रहे हैं...या खुद का भला कर रहे हैं...ये जो PUBLIC है ये सब जानती है...फिर भी हर बार ठगी जाती है...क्या करेंगे साहब यही तो है जनता का मुकद्दर...कि जागीर उनकी लेकिन मालिक कोई और बन जाता है..

Wednesday 26 November 2014

एक याद बचपन की



याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
इस फूलों की आते जाते कुड़ियों वाले दिन, बात बात पर फूट रही फुलझड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
पनवाड़ी की चढ़ी उधारी घूमै मस्त निठल्ले, कोई मेला हाट ना छूटे टका नही है पल्ले
कागज, घड़ी लिए हाथों में घड़ियों वाले दिन, ट्रांजिस्टर पर हवा महल की कड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
लिखी-लिखी, पढ़ी-पढ़ी चूमै फाड़ैं बिना नाम की चिठ्ठी, सुबह दुपहरी शाम उसी की बाते खट्टी मीठी
रूमालों में फूलों की पंखुड़ियों वाले दिन, हड़बड़ियों में बार बार गड़बड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
सुबह शाम की दंड बैठकें दूध, छांछ भर लोटा, दंगल की ललकार सामने घूमैं कसे लंगोटा
मोटी-मोटी रोटी घी की घड़ियों वाले दिन, लइया, पट्टी, मूंगफली मुरमुरियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
तेज धार करती बन्जारन चक्का खूब घुमावै, दांत-दांत के बीच कटारी मंद-मंद मुस्कावै
पूरा गली मोहल्ला घायल छुरियों वाले दिन, छुरियों-छुरियों छूट रही फुलझड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
घर भीतर मनिहार चढ़ावै, चुड़ियां कसी कसी सी
पास खड़े भइया मुस्कावैं, भउजी फंसी फंसी सी
देहरी पर निगरानी करती बुढ़ियों वाले दिन, बाहर लाठी, मूछों और पगड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
शोले देख छुपा है बीरू दरवाजे के पीछे, चाचा ढूंढ रहे हैं बटुआ फिर तकिया के नीचे
चाची देख छुपाती घूमै छड़ियों वाले दिन, हल्दी गर्म दूध के संग फिटकरियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
ये वो दिन थे जब हम लोफर आवारा कहलाए, इससे ज्यादा इस जीवन में कुछ भी कमा न पाए
महंगाई में फिर से वो मंदड़ियों वाले दिन, अरे कोई लौटा दे मेरे चूरन की पुड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
आल्हा गाते बाबा के खंझड़ियों वाले दिन, गैया भैंसी बैल बकरियां पड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
अरे कोई लौटा दे चूरन की पुड़ियों वाले दिन याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन
                                                                    प्रमोद तिवारी

Friday 21 November 2014

कलम की आवाज: एक जन्मदिन ऐसा भी

कलम की आवाज: एक जन्मदिन ऐसा भी: हाय रे मुलायम तूने ये क्या कर दिया...क्यों सूबे के गरीबों को जीते जी तिलांजलि दे डाली...ये सोच रहे होंगे समाजवादी चिंतक राममनोहर लोह...

एक जन्मदिन ऐसा भी



हाय रे मुलायम तूने ये क्या कर दिया...क्यों सूबे के गरीबों को जीते जी तिलांजलि दे डाली...ये सोच रहे होंगे समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया जी...भले ही वो दुनिया में नहीं है...लेकिन जहां भी होंगे उनकी रूह आज बहुत दुखी होगी...कि जिसका जीवन पर्यन्त विरोध करते रहे...उसी की बग्घी पर बैठकर तू इतना इतरा रहा है...और ऊपर से तुम्हारे पीछे मंत्रियों की इतनी लंबी कतार ने करोड़ों गरीबों के निवाले पर डाका डालकर उन्हे मरने के लिए मजबूर कर दिया...जन्मदिन की तैयारी में इतनी शानोशौकत आखिर किस लिए...अच्छा होता अगर सूबे का हर नागरिक कम से कम दो वक्त की रोटी चैन से खा लेता...तो मुलायम तेरी शान में चार चांद लग जाता...लेकिन तूने ऐसा न करके अपने ही जन्मदिन को दुनिया का सबसे हाईटेक जन्मदिन बना डाला...दुल्हन की तरह सजा शहर ए रामपुर...लग्जरी सुविधाओं से लैस आलीशान पंडाल...सुरक्षा में तैनात जवान...स्वागत के लिए बेताब लोग...और बिलायती बग्घी में सवार समाजवाद...ये इत्तेफाक नहीं हकीकत है...ये वक्त है चलता रहता है..और हर चीज की उम्र बढ़ती रहती है...समाजवादी विचारक मुलायम सिंह यादव जिंदगी के 75 बसंत देख चुके हैं...76वें की तैयारी में हैं...लेकिन उनका जन्मदिन मनाने के लिए जिस शाही अंदाज में तैयारियां की गयी है...उसे देखकर मीडिया से लेकर सियासतदां तक हैरान हैं...कि आखिर ऐसा क्या मुलायम के मन में आया...जो जन्मदिन को इतना यादगार बनाने के लिए जिंदगी भर...अंग्रेजियत का विरोध करने वाले मुलायम अंग्रेजी बग्घी पर सवार हो गए...रामपुर के लोगों के लिए मानों सपने देखने जैसी बात थी...सुबह नींद खुली तो शहर का नजारा देख ये तय नहीं कर पा रहे थे...कि वो रामपुर में ही हैं...या सपनों की किसी वादी में तो नहीं पहुंच गए हैं...जबकि समाजवाद के समता दिवस की ये बस एक झलक भर थी...जिसे देख किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि आखिर किस खुशी में इतना दिखावा..क्योंकि इससे पहले भी तो 74 बार जन्मदिन मनाया होगा मुलायम ने...लेकिन पहले ऐसा कभी नहीं हुआ...पूरा शहर पोस्टर बैनरों से पटा पड़ा था...सैकड़ों स्वागत द्वार बने थे..दस जिलों की पुलिस के अलावा अद्धसैनिक बल की कई टुकड़ियां वीवीआईपी की सुरक्षा में तैनात रही...स्कूलों में अघोषित छुट्टी कर दी गयी वो भी अभिभावकों से बिना पूछे...तमाम कलाकारों पर करोड़ों रूपए लुटाए गए हैं...एक व्यक्ति का जन्मदिन मनाने के लिए आखिर इतनी विवशता क्यों...कि देश के मुस्तकबिल को दांव पर लगा दिया...गरीबों का निवाला छीन लिया...यही समाजवाद का डंका पीटने वाले मायावती की नोटों की माला और जन्मदिन को दिनरात कोसते थे...अब खुद उसी रास्ते पर निकल पड़े हैं...भले ही मुलायम और उनके बेटे अखिलेश इस समारोह की शानोशौकत देख कर गदगद नजर आ रहे हैं...और आयोजनकर्ता उनके खासमखास आजम खां भी इस भव्य आयोजन पर इतरा रहे हैं...वहीं उन्ही की पार्टी के अंदर से जो धुंआ उठ रहा है...उसे देखकर विरोधी भी फंडिंग पर सवाल पूछ रहे हैं...भले ही आजम फंडिंग की बात तालिबानी आतंकवादी. संगठन..दाऊद इब्राहीम...अबू सलेम और जो हमले में मारे गए कुछ आतंकवादियों के करने का दावा कर रहे हैं...लेकिन जो आग सुलग रही है...उसमें से जो बू आ रही है...उससे शेर को सवा शेर के तौर पर देखा जा रहा है...क्योंकि समाजवादी पार्टी ने आजम खान की पत्नी को राज्यसभा भेजने का निर्णय लिया है...जिसके बदले में आजम ने नेताजी पर करोड़ों कुर्बान कर दिए...इसीलिए सूबे की राजधानी और सैफई छोड़कर मुलायम इस बार जन्मदिन मनाने रामपुर चल दिए...जहां आजम ने जौहर अली विश्वविद्यालय में भव्य पंडाल के नीचे जन्मदिन मनाने के लिए बुलाया था...लेकिन सियासत का ये कोई नायाब किस्सा नहीं है...रसूख, दबदबा और हनक का दूसरा नाम ही सियासत है...और सियासत में अवसरवाद का अहम रोल होता है...लेकिन सफेद कुर्ते के पीछे छुपे काले चेहरे को पहचानने में हर बार जनता धोखा खा जाती है...और सफेदपोश जनता के हक पर डाका डालते रहते हैं...खैर कुछ भी हो उत्सव में करोड़ों जलकर खाक हो गये...जो गरीबों को मुंह चिढा रहा है...कुछ लोग निवाले के अभाव में मौत की आगोश में समा रहे हैं...अब लोहिया साहब यही सोच रहे होंगे कि हाय रे मुलायम तूने ये क्या कर डाला...