भोपाल. भारत दुनिया का सबसे बड़ा और पुराना लोकतंत्र है. संविधान ने सांस्कृतिक विविधता से भरे इस देश को एक करने के लिए चार स्तंभ दिया है. कार्यपालिका, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और चौथा पाया है मीडिया. विश्व का सबसे बड़ा लिखित, सबसे लचीला और सबसे कठोर संविधान रखने वाले हिन्दुस्तान के लोकतंत्र का आधार है यहां का जनतंत्र.
दरअसल, 2 साल 11 महीने और 18 दिन में बनकर तैयार हुआ भारत का संविधान इस देश के हर नागरिक को अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देता है, यानि कि मतदान का अधिकार देता है. आजादी के बाद से भारत में चुनावों ने एक लंबा रास्ता तय किया है. आज तकनीक ने 120 करोड़ की जनसंख्या वाले देश को एक मशीन से जोड़ दिया है.
हम चुनावी माहौल देखते हैं, इलेक्शन के रंग देखते हैं, जीत का जश्न देखते हैं, हार का दुख देखते हैं. लेकिन, कभी सोचा है कि ये चुनाव होते कैसे हैं. भारत में चुनाव की प्रक्रिया क्या है, कौन कराता है ये चुनाव, कैसे होता है मतदान, मतगणना का आधार क्या है और ये नियम कायदे बनाए किसने हैं. ये है चुनाव प्रक्रिया के प्रमुख बिंदु.
- भारत में मतदाताओं की विशाल संख्या को देखते हुए चुनाव कई चरणों में आयोजित किए जाते हैं. आम चुनाव अलग और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं.
- चुनावों की इस प्रक्रिया में चरणबद्ध तरीके से काम किया जाता है. इसमें भारतीय चुनाव आयोग द्वारा चुनावों की तिथि घोषित की जाती है. इससे राजनीतिक दलों के बीच 'आदर्श आचार संहिता' लागू होती है.
- आचार संहिता लागू होने से लेकर परिणामों की घोषणा और सफल उम्मीदवारों की सूची राज्य या केंद्र के कार्यकारी प्रमुख को सौंपना शामिल होता है.
- परिणामों की घोषणा के साथ चुनाव प्रक्रिया का समापन होता है और नई सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त होता है.
सबसे पहले ये कि चुनाव कराता कौन है?
भारत में चुनाव भारतीय संविधान के तहत बनाए गए भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा कराया जाता है. यह एक स्थापित परंपरा है कि एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोई भी अदालत चुनाव आयोग द्वारा परिणाम घोषित किये जाने तक किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. चुनावों के दौरान, चुनाव आयोग को बड़ी मात्रा में अधिकार सौंप दिए जाते हैं और जरुरत पड़ने पर यह सिविल कोर्ट के रूप में भी कार्य कर सकता है.
विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया स्वरूप पर एक नजर
- राज्य विधानसभा चुनावों के लिए कम से कम एक महीने का समय लगता है, जबकि आम चुनावों के लिए यह अवधि और बढ़ जाती है.
- मतदाता सूची का प्रकाशन एक जरूरी चुनाव पूर्व प्रक्रिया है और यह भारत में चुनाव के संचालन के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है, वह मतदाता सूची में एक मतदाता के रूप में शामिल होने के योग्य है, यह योग्य मतदाता की जिम्मेदारी है कि वह मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराए.
- आमतौर पर, उम्मीदवारों के नामांकन की अंतिम तिथि से एक सप्ताह पहले तक मतदाता पंजीकरण के लिए अनुमति दी गई है.
चुनाव के पहले क्या होता है?
- चुनाव से पहले नामांकन, मतदान और गिनती की तिथियों की घोषणा की जाती है. चुनावों की तिथि की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है.
- आदर्श आचार संहिता लगते ही किसी भी पार्टी को चुनाव प्रचार के लिए सरकारी संसाधनों को उपयोग करने की अनुमति नहीं होती है. आचार संहिता के नियमों के अनुसार मतदान के दिन से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार बंद कर दिया जाना चाहिए.
- भारतीय राज्यों के लिए चुनाव से पहले की गतिविधियां अत्यंत आवश्यक होती हैं. आचार संहिता के अनुसार चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशी 10 चौपिहया वाहन ही रख सकता है, जबकि मतदान वाले दिन तीन चौपहिया वाहनों की अनुमति है.
- प्रत्याशियों को अपनी संपत्ति संबंधित ब्योरा चुनाव आयोग को देना होता है.
मतदान के दिन
- मतदान के दिन से एक दिन पहले चुनाव प्रचार समाप्त हो जाता है.
- सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को मतदान केंद्रों के रूप में चुना जाता है. मतदान कराने की जिम्मेदारी प्रत्येक जिले के जिलाधिकारी की होती है. बहुत से सरकारी कर्मचारियों को मतदान केंद्रों पर लगाया जाता है.
- चुनाव में धोखाधड़ी रोकने के लिए मतदान पेटियों की बजाय इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है और अब तो VVPAT से चुनाव होंगे.
- मतदान के संकेत के रूप में मतदाता के बाईं तर्जनी अंगुली पर निशान लगाया जाता है.
- इस कार्यप्रणाली का उपयोग 1962 के आम चुनाव के बाद से फर्जी मतदान रोकने के लिए किया जा रहा है.
चुनाव के बाद
- चुनाव के दिन के बाद, ईवीएम को कड़ी सुरक्षा के बीच एक मजबूत कमरे में जमा किया जाता है. चुनाव के विभिन्न चरण पूरे होने के बाद वोटों की गिनती का दिन निर्धारित किया जाता है.
- वैसे तो वोटों की गिनती के कुछ घंटों के भीतर विजेता का पता चल जाता है. लेकिन, सबसे अधिक वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को ही निर्वाचन क्षेत्र का विजेता घोषित किया जाता है.
- सबसे अधिक सीटें प्राप्त करने वाले पार्टी या गठबंधन को राज्यपाल द्वारा नई सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है. किसी भी पार्टी या गठबंधन को सदन में वोटों का साधारण बहुमत (न्यूनतम 50%) प्राप्त करके विश्वास मत के दौरान सदन (लोक सभा-विधानसभा) में अपना बहुमत साबित करना आवश्यक होता है.
- विधानसभा चुनाव का मूड, आम चुनाव से अलग कैसे?
- आम चुनाव में बड़ी पार्टियां देश भर में चुनाव लड़ती हैं. अपने-अपने योद्धा मैदान में उतारकर. भारत में अब तक दो बड़े राष्ट्रीय दल हैं जो चुनाव भी लड़ते हैं और केंद्र में बाकी क्षेत्रीय दलों के साथ या फिर बहुमत लाने पर अकेले सरकार बनाते हैं. ये दल हैं इंडियन नेशनल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी. इनकी सरकारें यूपीए और एनडीए के नाम से जानी जाती हैं.
- आमतौर पर विधानसभा चुनाव के राजा होते हैं क्षेत्रीय दल. राज्यों में इनका सिक्का ज्यादा चलता है. हालांकि, बात अगर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की करें तो यहां दो राज्यों में पिछली तीन सरकारें बीजेपी की रही हैं. राजस्थान में जरूर गणित 5-5 साल का रहा है.
- विधानसभा चुनाव भारत के राज्यों में कराए जाने वाले राज्य-स्तरीय चुनाव होते हैं. इन चुनावों में हर राज्य की जनता अपने राज्य-स्तर के शासन के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है जिन्हें विधायक कहा जाता है. आम चुनावों से अलग इन चुनावों में चुने हुए विधायक राज्य-स्तर पर सरकार का गठन करते हैं.
- इन चुनावों में भाग लेने वाले राजनीतिक दल वह भी हो सकते हैं जो आम चुनावों में भाग लेते हैं और इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्यों के अपने-अपने क्षेत्रीय दल भी हैं जो राज्य-विशेष में लोकप्रिय होते हैं. जैसे- पश्चिम बंगाल में टीएमसी, बिहार में JDU या RJD या फिर तमिलनाडु में आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम और उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा को कैसे भूल सकते हैं. वैसे छत्तीसगढ़ में इस बार जोगी कांग्रेस दम झोंक रही है और बड़ी क्षेत्रीय पार्टी के रूप में उभरी है.
- और हां, अगर अपना कार्यकाल पूरा करने से पूर्व कोई सरकार विधानसभा में बहुमत खो देती है तो यह चुनाव पांच वर्ष से पहले भी कराए जा सकते हैं और तब तक वहां राष्ट्रपति शासन लागू होता है, राज्यपाल देख-रेख करते हैं.