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Wednesday 21 November 2012

क्या कोयला घोटाले की निष्‍पक्ष जांच संभव है?




क्या  कोयला घोटाले की निष्‍पक्ष जांच संभव है?
यूपीए 2 सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई है।इसके मंत्री तो मंत्री स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी भ्रष्टाचार की कालिख से बच नहीं पाए। हाल ही में कैग द्वारा किए गए कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले के खुलासे में कोयले की कालिख प्रधानमंत्री पर भी लगी है। विपक्ष ने मौका देख पीएम के इस्तीफे की पेशकश कर डाली। पूरा संसद का मानसून सत्र कोयले की कालिख में स्वाहा हो गया। लेकिन इसके बाद भी देश का प्रधानमंत्री मोम का पुतला बनकर तमाशा देखता रहा। औऱ विरोध की आग में जनता की गाढ़ी कमाई जलती रही। जिसका जश्न सभी कांग्रेसी और उसके सहयोगी दल मिलकर मनाते रहे। विपक्ष के हंगामे से बचने और खुद को बेदाग दिखाने के चक्कर में प्रधानमंत्री ने कैग जैसी संस्था पर ही सवाल खड़े कर दिए। तो जो इंसान कैग जैसी संस्था पर सवाल उठा सकता है, और उसी के अधीन रहने वाली देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई कैसे उसके खिलाफ जांच करेगी। लिहाजा जब तक प्रधानमंत्री अपने पद पर विराजमान रहेंगे तब तक कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले की निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती और न ही कोयले के दाग किसी आधार की वजह से धुल सकते हैं। हालांकि विपक्ष के लगातार हो रहे हमले की वजह से सीबीआइ ने प्रारंभिक जांच का केस तो दर्ज कर लिया है जोकि कोयला ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी के बजाय आवंटित ब्लॉकों के दुरुपयोग पर केंद्रित है ।जिससे प्रधानमंत्री जांच के दायरे से बाहर हो जाएंगे जबकि इसमें प्रधानमंत्री की भूमिका की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की जरूरत है। लेकिन सीबीआई भी जांच के नाम पर सिर्फ मजाक कर रही है। आवंटन से जुड़े तत्कालीन कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों सहित उस समय कोयला मंत्रालय का प्रभार संभालने वाले खुद प्रधानमंत्री भी जांच के दायरे में होंगे।लेकिन सीबीआई जिस तरह की जांच कर  रही है उससे आवंटित कोयला ब्लाकों के दुरुपयोग की जांच केवल संबंधित कंपनियों तक सीमित होकर रह जाएगी। जाहिर है कि आवंटित कोयला ब्लाकों तक जांच सीमित कर सीबीआइ बड़े लोगों को घोटाले के आरोपों से बचाने का रास्ता बनाने की जुगत में है औऱ साथ ही जो दाग प्रधानमंत्री के दामन पर लगे हैं उसकी सफाई में अपनी निष्पक्षता को ही कटघरे में खड़ी कर रही है ।लिहाजा यहां पर ये कहावत चरितार्थ होती है कि सैयां भए कोतवाल तो डर काहें का । क्योंकि कानून मंत्री भी अपना है ।सीबीआई भी अपनी है । और अगर कोर्ट कचहरी से निकलकर मामला बाहर भी जाए तो महामहिम राष्ट्रपति भी अपने ही हैं ।





कोयला घोटाले की निष्पक्ष जांच संभव है...?



कोयला घोटाले की निष्‍पक्ष जांच संभव है?
यूपीए 2 सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई है।इसके मंत्री तो मंत्री स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी भ्रष्टाचार की कालिख से बच नहीं पाए। हाल ही में कैग द्वारा किए गए कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले के खुलासे में कोयले की कालिख प्रधानमंत्री पर भी लगी है। विपक्ष ने मौका देख पीएम के इस्तीफे की पेशकश कर डाली। पूरा संसद का मानसून सत्र कोयले की कालिख में स्वाहा हो गया। लेकिन इसके बाद भी देश का प्रधानमंत्री मोम का पुतला बनकर तमाशा देखता रहा। औऱ विरोध की आग में जनता की गाढ़ी कमाई जलती रही। जिसका जश्न सभी कांग्रेसी और उसके सहयोगी दल मिलकर मनाते रहे। विपक्ष के हंगामे से बचने और खुद को बेदाग दिखाने के चक्कर में प्रधानमंत्री ने कैग जैसी संस्था पर ही सवाल खड़े कर दिए। तो जो इंसान कैग जैसी संस्था पर सवाल उठा सकता है, और उसी के अधीन रहने वाली देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई कैसे उसके खिलाफ जांच करेगी। लिहाजा जब तक प्रधानमंत्री अपने पद पर विराजमान रहेंगे तब तक कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले की निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती और न ही कोयले के दाग किसी आधार की वजह से धुल सकते हैं। हालांकि विपक्ष के लगातार हो रहे हमले की वजह से सीबीआइ ने प्रारंभिक जांच का केस तो दर्ज कर लिया है जोकि कोयला ब्लॉक आवंटन में गड़बड़ी के बजाय आवंटित ब्लॉकों के दुरुपयोग पर केंद्रित है ।जिससे प्रधानमंत्री जांच के दायरे से बाहर हो जाएंगे जबकि इसमें प्रधानमंत्री की भूमिका की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की जरूरत है। लेकिन सीबीआई भी जांच के नाम पर सिर्फ मजाक कर रही है। आवंटन से जुड़े तत्कालीन कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों सहित उस समय कोयला मंत्रालय का प्रभार संभालने वाले खुद प्रधानमंत्री भी जांच के दायरे में होंगे।लेकिन सीबीआई जिस तरह की जांच कर  रही है उससे आवंटित कोयला ब्लाकों के दुरुपयोग की जांच केवल संबंधित कंपनियों तक सीमित होकर रह जाएगी। जाहिर है कि आवंटित कोयला ब्लाकों तक जांच सीमित कर सीबीआइ बड़े लोगों को घोटाले के आरोपों से बचाने का रास्ता बनाने की जुगत में है औऱ साथ ही जो दाग प्रधानमंत्री के दामन पर लगे हैं उसकी सफाई में अपनी निष्पक्षता को ही कटघरे में खड़ी कर रही है ।लिहाजा यहां पर ये कहावत चरितार्थ होती है कि सैयां भए कोतवाल तो डर काहें का । क्योंकि कानून मंत्री भी अपना है ।सीबीआई भी अपनी है । और अगर कोर्ट कचहरी से निकलकर मामला बाहर भी जाए तो महामहिम राष्ट्रपति भी अपने ही हैं ।