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Wednesday 21 May 2014

केजरीवाल का ड्रामा

आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का ये ड्रामा कहें या सियासत। खैर जो भी कह लें। लेकिन केजरीवाल की नजरों में तो हर कोई दोषी है। ईमानदार तो सिर्फ केजरीवाल और उनकी पार्टी के लोग हैं। आरोप लगाने के बल पर ही उन्होने दिल्ली की जनता के दिलों पर राज किया। केजरी बाबू की नजर में मीडिया दोषी, सरकार दोषी, व्यवस्था दोषी, राजनीतिक दल दोषी और तो औऱ अब तो अदालत पर भी उन्होने संदेह जता दिया। मानहानि के मामले में उन्होने ये कहते हुए बेल बांड भरने से मना कर दिया कि ये राजनीति से प्रेरित आरोप है। केजरीवाल ने तो बेल बांड भरने से मना कर दिया। लेकिन उन्ही के सहयोगी योगेंद्र यादव 5000 के निजी मुचलके की जमानत पर जेल से बाहर आ गए हैं। उन्हे बीती रात तिहाड़ के सामने धरना देते समय पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पार्टी एक विचारधारा एक लेकिन सिद्धांत अलग अलग केजरीवाल के सिद्धांतों पर सवाल खड़ा करता है। मीडिया ने केजरी स्टंट को ड्रामा करार दिया तो उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल तिलमिला पड़ी। तिहाड़ में पति से मुलाकात के बाद उन्होने कहा कि जो कुछ भी उनके पति ने किया वो बिल्कुल ठीक है। केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ तिहाड़ के बाहर प्रदर्शन में नाकाम पार्टी अब डोर टू डोर अभियान चलाएगी। जिसमें ये बताने की कोशिश करेगी कि किस तरह केजरीवाल जैसे ईमानदार व्यक्ति को राजनीतिक षडयंत्र के तहत जेल में बंद कराया गया। चुनाव में करारी शिकस्त से आहत केजरीवाल ने जनमत हासिल करने का नया प्लान तैयार किया है। जिस तरह से उन्होने अदालत पर सवाल उठाया है। उनके इस कदम से केजरीवाल को दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जनता की सहानुभूति मिलती है या नही। ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल अभी तो उनकी रातें तिहाड़ के अंदर ही कट रही है।

लोकतंत्र का सम्मान

सोलहवीं लोकसभा में चली परिवर्तन की लहर में जिस नरेंद्र मोदी का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला। उसी मोदी ने संसद के अंदर प्रवेश करने से पहले सीढ़ियों पर मत्था टेका तो पल भर के लिए मानों ऐसे लगा कि जनता ने सचमुच इस बार जो फैसला लिया है वो सही है। अब तक किसी नेता या प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र के मंदिर को सचमुच मंदिर समझकर सर झुकाया हो। वैसे भी नरेंद्र मोदी के अंदर नेतृत्व और सम्मान की ऐसी आभा है जिसका राज हर हिंदुस्तानी दिल पर है। तभी तो अटल बिहारी जैसे दूरदर्शी नेता को सुनने के लिए सैलाब उमड़ता है। पक्ष हो या विपक्ष मोदी ने सबको सम्मान दिया और पार्लिया मेंट के भाषण में उन्होने सरकार को गरीबों और सुरक्षा के लिए तरसती मां बहनों की सरकार बताया तो मानो जनता खुद को कृतार्थ महसूस करने लगी। अब वक्त है हिंदुस्तान को बदलने का और मौका भी है कि देश के भावी प्रधानमंत्री जनता के सपनों को पूरा करते हुए देश को फिर से सोने की चिड़िया बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

Monday 19 May 2014

बदलाव की राजनीति

देश भर में नरेंद्र मोदी की ऐसी लहर चली कि कुछ दलों की ना साख बची ना पात। जाति धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को इस बार जनता ने ऐसा स्वाद चखाया कि कई सालों तक उनके मुंह की कड़वाहट नही जाएगी। ऐसा करके जनता ने साबित कर दिखाया की देश का युवा अब अपना भला बुरा सोचने लायक बन गया है। हालांकि इतने परिवर्तन की किसी ने कल्पना नही की होगी कि उत्तर प्रदेश में अपनी हनक रखने वाले दल सावन के पतझड़ की तरह पेड़ से अलग हो जाएंगे। लेकिन हुआ ऐसा ही । अब इस हार से जहां अपनी राजनीतिक पहचान खोने वाले नेताओं को सबक लेने की जरूरत है वहीं बीजेपी को भी इस बदलाव से सबक लेने की जरूरत है।

Tuesday 6 May 2014

नारे ठग लेंगे...

वादे...वादे...और बस वादे

नारे...नारे और सिर्फ नारे

ये दो शब्द नेताओं के करम., धरम, पाप, पुन्य की पूरी गाथा बयां कर देते है। सुनने में तो ये दो अक्षर के शब्द है। लेकिन इस शब्द में जो जादुई करिश्मा है। उसे समझना आम आदमी के बस में नही है। ये वो शब्द है जो भारत की राजनीति में सत्ता का ताला खोलते हैं। जिसे सजाने के लिए पार्टियां खुलेआम खजाना भी लुटाती हैं। जिसके चलते बड़े बड़े कलमिया पुरोधाओं का इमान भी डोल जाता है। और जनता को ठगने का हथियार नेताओं को सौंप देते हैं। फिर क्या...नेता इसी हथियार से हर बार जनता का सीना छलनी करते हैं। और इस जुर्म के आगे बेबस, लाचार जनता सहन करती रहती है। और नारों में विकास और स्वराज की पींगे हांकी जाती हैं। लेकिन जब जब मतदाताओं ने किसी दल को सबक सिखाने की ठानी तो। जादुई हथियार भी नेताओं को दगा दे गए। जबकि जनता की खामोशी में चुनावी शोर गुम होती चली गयी। और करिश्माई नेतृत्व के बाद भी वाजपेयी को जनता ने सत्ता से बेदखल कर दिया। और सत्ता जाते ही एनडीए की शाइनिंग अमावस की काली रात में गुम होती गयी। फिर क्या...पूनम की रात के इंतजार में दस साल गुजार दिए। लेकिन सपने तो बस सपने ही रह गए। एनडीए को नया अवतार क्या मिला, मानों सपनों के पंख लग गए। जिसके सहारे बीजेपी की नजरें पूनम की रात पर टिक गयी। जाहिर है कि एक पंचवर्षीय में आए मदों का शत प्रतिशत उपयोग हो। तो कुछ मदों को छोड़कर दस सालों तक कराने के लिए कोई काम ना बचे। लेकिन ऐसा होता नही, जनता के पास वोट की ताकत है। और उसके उपयोग की आजादी भी। अभाव है तो सिर्फ जागरूकता का, जिसके बिना नेताओं के चक्रव्यूह से बाहर निकलना मुश्किल है। ऐसे में जनता भावनाओं, लहरों, रूझानों के विपरीत अपने निर्णय और समझदारी से वोट का इस्तेमाल करें तो भविष्य में नेताओं की ठगी से बचना संभव है।
अंतिम घड़ी है अंतिम बेला
अंतिम रण भी है अलबेला
अंतिम वादे अंतिम नारे
शोर चुनावी भी है अंतिम
सोच समझकर लेना निर्णय
पांच साल की अंतिम बेला
अंतिम घड़ी है अंतिम बेला

Sunday 4 May 2014

जुबानी आतंक से मानवता का खून


सोलहवीं लोकसभा के लिए हो रहा मतदान अंतिम पड़ाव से महज दो कदम की दूरी पर है अधिक से अधिक सीटों पर कब्जा जमाने के लिए नेताओं को बदजुबानी से कोई परहेज नही है भले ही उससे जनता की भावनाएं आहत हो या लोकतंत्र की मर्यादा तार तार हो। उनका कोई सरोकार नही है सपा नेता अबु आसिम आजमी का बयान इन दिनों सुर्खियों में है। जिसमें उन्होने मुसलमानों के वजूद पर सवाल उठाते हुए उनका डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी वो भी इसलिए की वो सच्चा मुसलमान है या नही। हो सकता है कि वो मुसलमान के रुप में आर एस एस का आदमी हो। तो बीजेपी भला चुप कैसे रह सकती थी । उसने भी नहले पर दहला मार दिया। बीजेपी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि डीएनए टेस्ट कांग्रेस पार्टी का करांए और उन लोगों का कराएं। जो सेक्युलरिज्म के सूरमा बने हैं और कम्युनलिज्म के चैंपियन हैं मीम अफजल ने पूछा कि क्या डीएनए टेस्ट कराकर मजहब का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं आजमी। हालांकि ये अकेले आजमी की कहानी नही है। नेताओं की लंबी फौज है जो अपनी आतंक से मानवता का खून करत रहे हैं। जनता इस चुनाव में ऐसे नेताओं को सबक नही सिखायी तो भगवान ही बचाएंगे इस देश को।