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Thursday 5 September 2013

चीख...? बे-आवाज़


किसानों की पूंजी उनकी जमीन होती है उनसे उनकी पूंजी ही छीन ली जाए तो उन्हे भुखमरी के दरवाजे पर खड़े होने में ज्यादा वक्त नही लगता। हालांकि कई प्रदेशों की सरकारे अपनी मनमर्जी से जब चाहे किसानों की जमीन हड़प लेती हैं। जिसकी खिलाफत लाचार और मजबूर किसान नही कर पाते। लेकिन कटनी के किसानों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अन्न जल त्याग कर कलेक्ट्रेट के सामने सत्याग्रह शुरू कर दिया है। साथ ही चेतावनी भी दी कि मौत कुबूल है। लेकिन बिना जमीन के जिंदगी नही मंजूर हैं। बरही में लग रहे वेलेस्पन प्लांट के विरोध में बुजबुजा और डोकरिया के किसान सत्याग्रह करने को मजबूर हैं। सत्ता के नशे में चूर शिवराज सरकार निजी फायदे के लिए बेसहारा किसानों की जमीन जबरन अधिग्रहण कर कंपनियों को बेचकर मोटा मुनाफा कमा रही है। किसान भूख से तड़प तड़प कर आत्महत्या करने को मजबूर हैं। पहले भी कई किसान हक की लड़ाई में अपनी जान गवां चुके हैं। और अब उस लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए उनकी पत्नियां अपनी जान देने पर उतारू हैं। एक हफ्ते बाद भी किसानों की सुध लेने कोई रहनुमा नही पहुंचा। हालांकि उनका प्राथमिक उपचार कराया जा रहा है। लेकिन उनके दिलों के जख्म को ये डॉक्टर कैसे भरेंगे जो सरकार ने दिया है। खेती को लाभ का सौदा बताने और किसानों की मसीहा बताने वाली शिवराज सरकार के हाथ किसानों के खून से लथपथ है। हत्यारी सरकार के सामने बेबस किसानों के पास कोई रास्ता नही है। कि आखिर वो जाएं भी तो कहां...?