Search This Blog

Tuesday 29 December 2020

प्रेम की परिभाषा की बदलती भाषा, बाकी का प्यार हासिये पर क्यों?

प्यार किसी को किसी से हो सकता है, किसी भी उम्र में हो सकता है, किसी भी रूप में हो सकता है, पर न जाने क्यों हर किसी के जेहन में प्यार की सिर्फ एक ही परिभाषा गूंजती है कि प्यार का अर्थ सेक्स है, जबकि प्यार के अनेकों रूप हैं, प्यार के सेक्सी कलंक ने आधा-अधूरा नहीं बल्कि पूरी तरह से प्यार की हत्या कर चुका है। ये सवाल बार-बार परेशान करता था, जिसका सच जानने की कई बार वो कोशिश भी करता, पर कुछ सोचकर रुक जाता, लेकिन एक दिन उसने ठान लिया कि प्यार की कलंकित परिभाषा का सच जानकर ही रहेगा.

उस दिन वह बड़ा लंबा सफर करके लौटा था, आंखों में नींद और टूटते बदन उसे बेहद परेशान कर रहे थे, उस वक्त वह बिल्कुल तन्हा था, तभी उसके मन में ये खयाल आया कि चलो आज परिभाषा की भाषा को समझते हैं। फिर उसने ढाई अक्षर का संदेश तीन लोगों को भेजा, जिन पर उसका भरोसा मुकम्मल था, उसके बाद एक ने तो भरोसे का ही कत्ल कर डाला, जबकि दूसरा खंजर लेकर खोजने निकल पड़ा और तीसरे ने जैसे देखकर भी अनदेखा कर दिया, यानि कोई रिएक्शन नहीं दिया।

उस संदेश को भेजने के बाद जो सवाल उठे, उसने उसे बुरी तरह झकझोर दिया, जो अब तक आंख बंदकर भरोसा करते थे, वो अब उसमें शक और वहसीपन देखने लगे थे, उसने उन लोगों को समझाने की भी कोशिश की, पर कोई समझने को कोई तैयार ही नहीं, ये तो वही हाल हुआ कि जैसे दूध की टंकी में दो बूंद नीबू निचोड़ने के बाद दूध किसी भी दशा में दूध नहीं रह जाता, ठीक वैसे ही जो अब तक दूध सा शुद्ध और पोषक था, उसमें अब शक का नीबू पड़ चुका था।

Thursday 23 July 2020

अपाहिज होता दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, धुंधला पड़ता समाज का आईना

कहते हैं वक्त से बड़ा कोई तानाशाह नहीं होता, पर जब वक्त बुरा आता है तो बड़े से बड़े तानाशाह को भी घुटनों पर ला देता है, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का भी आजकल बुरा वक्त चल रहा है या यूं कहें कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपाहिज हो गया है, जो आजकल चार पैरों की बजाय दो ही पैरों पर रेंग रहा है, ऐसे में लोकतंत्र को संतुलित करने वाला समाज का दर्पण खुद ही धुंधला होता जा रहा है तो वो दूसरों को आईना दिखाए भी तो कैसे।
आजकल समाज का दर्पण ही समाज के लिए बड़ी मुसीबत बन गई है क्योंकि ये समाज ही अपने लिए खुद कुआं खोद रहा है, जिसमें आने वाली पीढ़ियां गिरकर दफन हो जाएंगी, मंगलवार को गाजियाबाद पुलिस की लापरवाही ने पत्रकार की जान ले ली क्योंकि जिस पुलिस को पत्रकार की शिकायत पर संज्ञान लेना था, वो नहीं ली और बदमाशों ने शिकायत की बात को दिल पर ले लिया, फिर तो विक्रम जोशी को उनकी मासूम बेटियों के सामने ही तीन गोलियां दाग दी. इस मामले में पुलिस पर भी हत्या की धाराओं में FIR दर्ज किया जाना चाहिए क्योंकि जितने पुलिसकर्मियों को इस शिकायत की जानकारी थी, वो सभी नामजद आरोपियों जितने ही दोषी हैं.
इतना सबकुछ होने के बाद भी सत्ता मदमस्त हाथी की चाल चली जा रही है, कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं है।

Monday 13 July 2020

राजस्थान राजनीतिक संकट: जादूगर के 'जंतर' ने हर परेशानी को किया छू-मंतर!

दुश्मनी बराबर वाले से हो तो जंग की जीवटता और बढ़ जाती है, बड़े दुश्मन से मिले जीत तो खुशियां और बढ़ जाती है, पर यहां लड़ाई सामने से नहीं, बल्कि मांद में सेंध लगाने की थी। पर यहां उसे मुंह की खानी पड़ी और जादूगर के जादुई मंतर ने सारी परेशानी को छू-मंतर कर दिया। इसके पीछे एक और वजह थी, कहते हैं दूध की जली बिल्ली छांछ भी फूंक कर पीती है, मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने कमलनाथ को सत्ता से बेदखल कर दिया अब अब बीजेपी वही दांव राजस्थान में भी आजमाना चाहती थी, लेकिन यहां उसे मुंह की खानी पड़ी। हालांकि ये संकट फिलहाल टल गया है, पर पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।

राजस्थान में उपजे राजनीतिक संकट के लिए कहीं न कहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी जिम्मेदार है क्योंकि जिस सचिन पायलट ने राजस्थान में कांग्रेस को जीवित करने के लिए पांच साल तक गलियों की खाक छानते रहे, सत्ता में आने पर पार्टी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया और सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन एक तरह से मुख्यमंत्री ने उपमुख्यमंत्री को बिना नख दंत वाला शेर बना दिया और एक जंगल में दो शेर आए तो वर्चस्व की लड़ाई तय है, मुख्यमंत्री सारे महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखे रह गए, लेकिन जब सचिन पायलट पर राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ तो यह लड़ाई खुलकर सामने आ गई।

अब इस संकट को चाहें तो मध्यप्रदेश से भी जोड़ सकते हैं, इसलिए कि वहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद उनके समर्थन में छह मंत्री सहित 22 विधायक इस्तीफा दे दिए और कमलनाथ की सरकार गिर गई, लेकिन वहां पर संख्या बल बीजेपी के मुफीद था, पर यहां का गणित सुलझाना थोड़ा मुश्किल है। दूसरी बात यह है कि सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री भी हैं तो ऐसे में सचिन पायलट का बगावत करना ठीक तो है, लेकिन बीजेपी में शामिल होना उनके लिए सुसाइड साबित हो सकता है और जो कलंक लगेगा उसे मिटाना मुश्किल होगा, ऊपर से को सम्मान कांग्रेस में है वो बीजेपी में शायद ही मिले क्योंकि वहां वसुंधरा राजे और गुलाब चंद कटारिया सरीखे नेता ऐसा होने नहीं देंगे। 

Saturday 11 July 2020

इंसानी बस्ती में जानवरों में बसती इंसानियत, कोरोना ने हटाई झूठ की स्याह परत

आधुनिक होते समाज में रिश्तों की अहमियत कम होती जा रही है, बल्कि अब जरूरत के रिश्ते गढ़े जाने लगे हैं, अब दूर के रिश्ते हो या करीब के, सभी जरूरत पूरी होने के साथ ही खत्म हो जाते हैं। कहते हैं हर इंसान को अपनी जान सबसे ज्यादा प्यारी होती है, संपन्नता मित्रता और रिश्ते बढ़ाती है पर विपदा उसकी परख करती है, पर रिश्ते और मित्रता में एक अंतर होता है कि मित्र बदलने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है, जबकि रिश्ते बदलने की कोई गुंजाइश नहीं होती है, ठीक उसी तरह जैसे चाहकर भी आप अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते।

साल 2019 के आखिरी महीने में जब कोरोना वायरस का नाम सुनाई पड़ा था, तब किसी को ये आभास नहीं था कि ये महामारी बनकर एक दिन पूरी दुनिया को अपनी अंगुली पर नचाएगा, पर ये वायरस अब तक लाखों जिंदगियों को मौत की नींद सुला चुका है, करोड़ों लोग इसके संक्रमण से जूझ रहे हैं, जबकि दुनिया का हर इंसान इस बीमारी के खौफ में जी रहा है। इस महामारी ने अच्छे-खासे रिश्तों को भी जब विश्वास की कसौटी पर कसा तो पूरा सोना पीतल हो गया। जो फकीर थे उन्हें कौन पूछता, पर जो अमीर थे, उनकी भी अहमियत फकीर जैसी ही हो गई।

महामारी के इस दौर में अपना कोई नहीं रहा क्योंकि एक पत्रकार होने के नाते ढेरों खबरों से रोजाना सामना होता है, पर इस खबर ने अचानक से अंदर तक झकझोर दिया। इंसान इतना भी स्वार्थी हो सकता है क्या? जिसने परिवार के लिए पूरी जवानी खपा दी। पाई-पाई जोड़कर बच्चों को काबिल बनाया और बच्चे भी बच्चों के बाप बन गए, एक समय में इनकी भी परिवार में बड़ी पूछ परख थी क्योंकि हर महीने उनको करीब ₹50000 पेंशन मिलती थी, यही वजह थी कि उनसे पूछे बिना घर का पत्ता भी नहीं हिलता था, यानी कि बच्चे बीवी बहू सब इतने संस्कारी थे कि हर काम उनसे पूछकर ही किया करते थे, सब कुछ ठीक चल रहा था, बुढ़ापे के दिन भी अच्छे से कट रहे थे, तभी एक तूफान आया और झूठ के साथ दिखावे को भी अपने साथ उड़ा ले गया और जब झूठ का पर्दा हटा तो उसे अपनी आंखों पर भी यकीन नहीं हो रहा था

पर जो सच होता है, उसे ज्यादा वक्त तक नजर अंदाज करना संभव नहीं रहता है। हां, उस पर कुछ समय के लिए पर्दा जरूर डाला जा सकता है। और उसमे दिखे कोरोना के लक्षण ने उसे अचानक से तन्हा कर दिया। जो दिन भर उनके इर्द-गिर्द घूमा करते थे, वे सभी अब बहुत दूर किसी अजनबी की तरह खड़े थे, उसके पास कोई था तो कुछ सियाचिन में ड्यूटी करने वाले सेना के जवानों जैसे लिबास में कुछ स्वास्थ्यकर्मी थे, जिनके पास एक वाहन भी था, जिससे मरीजों को अस्पताल ले जाया जाता है और अगर इलाज के दौरान मरीज की मौत हो जाती है तो उसके शव को श्मशान पहुंचाने के भी काम यह वाहन आता है। थोड़ी ही देर में स्वास्थ्यकर्मी उसे उसी वाहन में बैठाकर गेट बंद कर दिए, उसके साथ उसकी कुछ जरूरत की चीजें भी रख दी गईं।

अभी एंबुलेंस वहां से गई भी नहीं थी कि परिवार के लोग उस जगह की साफ-सफाई में लग गए, जिस कमरे में वह रहता था ,परिवार के एक भी सदस्य का ध्यान न तो उसकी तरफ था और न ही किसी को उसकी फिक्र थी, वह सोच रहा था कि एक बीमारी ने उसे इस कदर तनहा कर दिया कि जो उसके अपने थे वह भी गैरों जैसा सुलूक करने लगे, दूर से उसे खाना देना, खिड़की से उसे खाना देना या दूर से फेंककर या दूर से धकेल करके देना, ये सारी बातें उसके दिल-दिमाग में गूंजती रही, उसे यह बात समझ में आ गई कि उसकी फिक्र करने वाला अब यहां कोई नहीं है।

हालांकि, उसकी फिक्र करने वाला वहां पर सिर्फ उसका कुत्ता था, जो एकटक उसे ही देखे जा रहा था उदास और आस भरी नजरों से, इस बीच कुछ ही देर में एंबुलेंस अस्पताल की ओर रवाना हो गई, लेकिन जब तक वह एंबुलेंस में बैठा रहा, तब तक सोचता रहा कि उसके कमरे आदि को इस तरह शुद्ध किया जा रहा है, जैसे न जाने वहां कितने जन्मों का पाप जमा हो, यह नजारा देख मन ही मन सोचने लगा कि हम किस और किन लोगों के लिए अपनी खुशियों से समझौता करते रहे, इससे तो अच्छा मैं अकेला ही होता तो बेहतर होता, पर इस कुत्ते को आज भी मुझसे कितना प्यार है, नि:स्वार्थ लगाव है, जबकि यह तो हमारी संपत्ति का वारिस भी नहीं है, उसकी संपत्ति के असली वारिस तो उसकी बीवी-दो बेटे और बहुएं हैं, जिनमें आगे चलकर उसकी संपत्ति बंट जानी थी, बीमारी के पहले तक बहुएं भी इतनी संस्कारी थी कि खाना भी उनकी पसंद पूछकर ही बनाती थी।

उसकी समाज में भी खूब इज्जत थी, अमीरी और रसूख का, पर एक बीमारी ने रेत पर बनी मीनार को एक झटके में ही जमींदोज कर दिया, वो मन ही मन सोच रहा था कि काश ज्यादा बेहतर होता जो इंसानों के बदले जानवरों को पाल लेता क्योंकि उसे यह बात समझ में आने में बहुत देर लग गई कि जिस इंसानों की बस्ती में रहता है, वहां इंसानियत का कोई मोल नहीं है, कहने के लिए यह समाज इंसानों का है, लेकिन यहां जानवरों से भी बदतर इंसान पाए जाते हैं।

खैर! आंखों में आंसू लिए एंबुलेंस में बैठा रहा और उसके अरमानों पर बाल्टी बाल्टी पानी भर कर फेंके जा रहे थे, जो उसकी आंखों से उसका तिरस्कार बनकर बहे जा रहे थे। इस दृश्य को देख वह न जाने किस दुनिया में खो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि वह कब अस्पताल पहुंच गया।

अस्पताल में करीब 15 दिन तक इलाज चला और जब वह अस्पताल से घर लौटा तो बीमारी से पूरी तरह ठीक हो चुका था, पर उसके मन में जो घाव हुआ था, उसका इलाज किसी भी डॉक्टर के पास नहीं था, घर पहुंचकर वह अपने सर्वेंट रूम में गया और वहां से कुछ सामान लिया और फिर बाहर जाने लगा, तभी बीवी-बच्चों ने पूछा कि आप कहां जा रहे हैं, पर किसी ने न तो हाल पूछा और न रोकने की कोशिश की। पर वह फिर वहां रुका भी नहीं। जाते हुए उसके साथ सिर्फ उसका कुत्ता था, जिसकी डोर वो अपने एक हाथ में पकड़े हुए था, जो कुछ देर में लौटकर आने की बात कहकर निकला, पर आज तक लौटकर उस घर नहीं आया। वह वहां से न जाने कितनी दूर चला गया कि अब उसकी आहट भी नहीं सुनाई पड़ती है।

इस तरह कोरोना वायरस ने सच्चे रिश्तों पर पड़ी स्वार्थ और दिखावे की स्याह परत को हटाया जो बदनुमा दृश्य दिखा वो किसी की भी रूह कंपाने के लिए काफी था, जैसे कितना भी खूबसूरत बदन हो, पर एक बार खाल उतार जाए तो उस शरीर को देखकर कोई भी डर सकता है। उसी तरह इस कहानी में एक बात तो साफ हो गई है कि इंसानी बस्ती में भी इंसानियत नहीं बसती है, जबकि जानवरों में आज भी इंसानियत बाकी है जो नासमझ और मूक होकर भी इंसानों से ज्यादा समझदार और वाचाल है।

Thursday 9 July 2020

बिकरू के गैंगस्टर विकास दुबे के साथ दफन हो गई खाकी-खादी की करतूत

2-3 जुलाई की रात कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में करीब 60 मामलों में वांछित गैंगस्टर विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में सीओ सहित आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे, तब से विकास दुबे बड़े से बड़े अखबारों और न्यूज चैनलों की हेडलाइंस से नीचे उतरा ही नहीं। हां, 8 पुलिसकर्मियों की शहादत से महकमे की आंखों में खून जरूर उतर आया था और पुलिस चुन-चुन कर उसके गुर्गों को मौत की नींद सुलाने लगी। उसके घर गाड़ी सबकुछ पुलिस तहस नहस कर डाली, वो भी गुंडों की तरह। 

इस बीच पुलिस और खुफिया तंत्र को धता बताते हुए विकास यूपी हरियाणा दिल्ली राजस्थान और एमपी पुलिस को चकमा देते हुए 9 जुलाई की सुबह महाकाल मंदिर पहुंच गया और मंदिर में करीब 2 घंटे तक बेखौफ घूमता रहा, फिर फर्जी आईडी पर वीआईपी दर्शन के लिए लाइन में भी लग गया था, चेक प्वाइंट को पार भी कर लिया, फिर को कुछ पूछने के लिए सुरक्षा कर्मी के पास जाता है, तब शक होने पर गार्ड उसे पकड़ लेता है तो चिल्लाता है कि मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला। फिर पुलिस उसे थाने ले गई, एक तरह से प्लानिंग के साथ विकास दुबे ने सरेंडर कर दिया। पुलिस और सरकार अपनी पीठ ठोक रही है कि हमने गिरफ्तार किया है, जिसकी सबसे पहले पुष्टि एमपी के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ट्वीट कर की थी।

अब इस गिरफ्तारी की थ्योरी को थोड़ा समझते हैं कि दो जुलाई की रात जब पुलिस विकास को गिरफ्तार करने जा रही थी, उससे पहले उसके पास थाने से फोन जाता है कि पुलिस तैयार हैं और आपका एनकाउंटर भी कर सकती है तो सूचना देने देने वाले को बदले में जवाब मिला कि आने दो कफन में लपेट कर भेजूंगा और हुआ भी ठीक वैसे ही उसने 8 पुलिसकर्मियों को शहीद कर दिया, जबकि जख्मी भी हो गए और रात को ही विकास दुबे वहां से फरार हो गया, वह भी तब जब पुलिस ने पूरे इलाके को सील कर रखा था।

इतनी सख्ती के बावजूद घटना के करीब तीन-चार दिन बाद पुलिस को फरीदाबाद में उसके होने की जानकारी मिली, फरीदाबाद पुलिस वहां दबिश देने पहुंची लेकिन खाली हाथ लौटना पड़ा था, पुलिस उस होटल के मालिक और उसके बेटे को कानपुर ले गई, जिसके अगले दिन उसके बेटे का एनकाउंटर कर देती है, जबकि उसके एक दिन पहले हमीरपुर में विकास दुबे के राइट हैंड अमर दुबे को पुलिस ठिकाने लगा चुकी थी। इसी साल जून के आखिर में शादी हुई थी, इस शादी में विकास दुबे के डांस का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, लेकिन पूरा पुलिस तंत्र अब तक विकास दुबे को खोजने में नाकाम साबित हो रहा था।

उज्जैन पुलिस गिरफ्तारी के बाद विकास दुबे को यूपी एसटीएफ को सौंप दी, 9 जुलाई की शाम को यूपी एसटीएफ उज्जैन से विकास दुबे को लेकर चलती है और 10 जुलाई की सुबह कानपुर की सीमा में प्रवेश करने के बाद पुलिस की गाड़ी पलट जाती है और विकास दुबे पुलिस की पिस्टल छीनकर भागने लगता है, इस दौरान वह फायरिंग भी करता है और आत्मरक्षा में पुलिस गोली चलाती है और वह घायल हो जाता है, पुलिस उसे कानपुर के हैलट अस्पताल ले जाती है, जहां डॉक्टर उसे मृत बता देते हैं। इस तरह पुलिस अपना बदला तो पूरा कर लेती है, पर कानून और संविधान को लॉकअप में बंद करके।

विकास दुबे से किसी को सिम्पैथी नहीं है, जो को किया था उसको उसे है भरना था, पर पुलिस को न्यायिक सिस्टम को थोड़ी देर के लिए लॉकअप में बंद करके ये रिस्क लेना पड़ा क्योंकि उसे पता था कि कोर्ट कचहरी से उसे सजा दिलाने में जाने कितना इंतजार करना पड़े और वो पुलिस की आंखों में रोजाना शूल की तरह चुभता रहे, दूसरा ये कि विकास दुबे का मुंह खुलने से कितनों का मुंह बंद हो सकते थे और कितने खाकी से लेकर खादी तक दागदार हो जाते। इसलिए पुलिस को हड़बड़ी में ये गड़बड़ी करनी पड़ी।

Thursday 2 July 2020

MP में 'शिव'सरकार सिंधिया'राज' और शिव का 'विष'पान

भोपाल। लंबे समय से टल रहा शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार आखिरकार आज संपन्न हो गया. सुबह 11 बजे राजभवन में प्रभारी राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने नेताओं को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सर्मथकों का दबदबा दिख रहा है. बताया जा रहा है कि इससे पहले सिंधिया ने बीजेपी आलाकमान से मुलाकात कर अपने समर्थकों को मंत्री बनाए जाने की मांग की थी. सिंधिया समर्थक 11 पूर्व विधायक मंत्री बनाए गए हैं, जबकि दो पहले से ही मंत्री हैं. शिवराज कैबिनेट में सिंधिया समर्थक 13 मंत्री हैं, बिसाहूलाल को मिलाकर ये संख्या 14 हो जाती है. एक तरह से माना जाए तो भले ही सरकार शिवराज की है, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर राज सिंधिया का ही है. हालांकि, ऐसा पहली बार हुआ है, जब 14 गैर विधायक किसी सरकार में एक साथ मंत्री हैं.

Saturday 20 June 2020

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस: योग का युवा अवतार उत्तम अग्रहरी

पांच तत्वों से मिलकर बने इस नश्वर शरीर को निरोग रखने के लिए योग करना बहुत जरूरी है, जिसके लिए आपको कुछ खर्च करने की भी जरूरत नहीं है, बस आपको इसके लिए थोड़ा समय निकालना पड़ेगा, पर यकीन मानिए कि ऐसा करके आप दवा पर होने वाले खर्च को बचा सकते हैं और बीमारी से होने वाले शारीरिक और मानसिक कष्ट से भी बच सकते हैं। पहला वीडियो इम्यूनिट  बढ़ाने में बहुत कारगर है, ये आसन करके आसानी से कोरोना से बचा जा सकता है। अब पूरी दुनिया योग को आत्मसात कर रहा है।#InternationalDayofYoga #YogaDay2020

जौनपुर निवासी #Uttam_Agrahari प्रोफेशनल योगा ट्रेनर हैं, जो करीब 20 से अधिक अवॉर्ड जीत चुके हैं, लेकिन विश्व रिकॉर्ड बनाने का जुनून सवार है। आज इन्होंने गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने के लिए लगातार दो घंटे तक ताड़ासन किया है। #InternationalYogaDay




























Tuesday 16 June 2020

LAC पर हुई झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद, 43 चीनी सैनिक जख्मी

15 जून की शाम एलएसी पर चीनी सेना के साथ हुई झड़प में एक कर्नल सहित 20 भारतीय जवान शहीद हो गए, दशकों बाद ये अब तक की सबसे बड़ी झड़प है।

Sunday 14 June 2020

हिन्दी फिल्म जगत का कामयाब सितारा बादलों में खो गया, सुशांत सिंह राजपूत ने लगाई फांसी

गुरुदत्त 1964, मनमोहन देसाई 1994, दिव्या भारती 1993, सिल्क स्मिता 1996, नफीसा जोसेफ 2004, परवीन बॉबी 2005, जिया खान 2013, प्रत्यूषा बनर्जी 2016, कुशल पंजाबी 2019, प्रेक्षा मेहता 2020, मनमीत ग्रेवाल 2020 और अब सुशांत सिंह राजपूत 2020 ने खुद ही मौत को गले लगाया
युवा,होनहार,प्रतिभावान फिल्मी कलाकार सुशांत सिंह राजपूत का यूं असमय चले जाना दुःखद घटना है।पर इस तरह हारना कोई बहादुरी नहीं है। उड़ गई #सोन_चिरैया

Friday 8 May 2020

Lockdown: निवाले को प्याले पर शिफ्ट करने के लिए खोले गए ठेके!

आंखों से न दिखने वाला छोटा सा वायरस पूरी दुनिया को दिन में तारे दिखा रहा है, इस वायरस के सामने दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत घुटने टेक चुकी हैं, पूरी दुनिया में अब तक करीब 276863 लोगों की जान कोरोना वायरस ले चुका है, जबकि 3937813 लोग इसकी चपेट में हैं, इसके अलावा बिना किसी ऊर्जा के ये दिन-रात सरपट दौड़ रहा है, इस वायरस ने दुनिया के ज्यादातर हिस्सों को खुली जेल बना दिया है, इसी वायरस ने न केवल पूरी दुनिया का गुरुर तोड़ा है, बल्कि विज्ञान और तकनीक के सामने भी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

भारत में करीब 59662 लोग कोरोना वायरस की चपेट में हैं, जबकि 1981 मरीजों की जान जा चुकी है, हालांकि 130 करोड़ की आबादी वाले हिंदुस्तान ने सतर्कता तो बरती, पर कुछ निजी स्वार्थ के चक्कर में इस वायरस को यहां फलने फूलने का मौका मिल गया क्योंकि सरकार कोरोना वायरस से निपटने के लिए उचित इंतजाम करने की बजाय वाहवाही लूटने में लगी और इसका ठीकरा दूसरों के सिर पर फोड़ने की सोचती रही और अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए इसकी टोपी उसके सिर उसकी टोपी इसके सिर पहनाती रह गई।

पहले तो सरकार विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस ले आई और उनको मामूली चेकअप के बाद छोड़ दिया गया, जिसके चलते संक्रमण का प्रसार शुरू हुआ, इस बीच निजामुद्दीन मरकज में बड़ी संख्या में जमा जमातियों के संक्रमित होने और अन्य राज्यों में संक्रमण के संवाहक बनने की खबरें सुर्खियों में रही, यहां तक कि सरकार के हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में अलग से जमातियों का जिक्र किया जाने लगा, मीडिया भी कोराना से निपटने की तैयारियों पर चर्चा न करके जमातियों पर इस कदर टूट पड़ी, जैसे बारात में फेंके गए खाने पर कुत्ते टूट पड़ते हैं। शायद उनको लगता हो कि जमातियों के सिर पर कोरोना फैलाने का ठीकरा फोड़ देने से कोरोना डरकर भाग जाएगा।

इसके बाद सरकार मजदूरों को घर वापस लाने की तैयारी करने लगी, इसके लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें भी चलाई, जो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई, बल्कि मजदूरों के लिए और परेशानी ही बढ़ गई क्योंकि इतनी जटिल प्रक्रिया को पूरा करना अनपढ़ मजदूरों के लिए आसान नहीं है, जिसके चलते मजदूर हजारों मील पैदल साइकिल या ट्रेन की पटरी पर भी चलने से गुरेज नहीं कर रहे हैं, जिस ट्रेन पर मजदूरों को चढ़ने से सरकार ने रोक दिया, वही ट्रेन औरंगाबाद में मजदूरों के ऊपर से चढ़कर गुजर गई, जिसमें 16 मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई और ट्रैक पर छोड़ गए भूख की निशानी, खून लगी रोटी और खून के साथ बिखरी चटनी।

लॉकडाउन के करीब 40 दिन बाद सरकारें जागी और वादों की ट्रेनें-बसें मजदूरों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए दौड़ने लगी, पर शर्तें इतनी कठिन जोड़ दी गईं, जिससे पार पाना इनके लिए आसान नहीं था, इससे बचे तो किराये का इंतजाम करना भारी पड़ रहा था, लिहाजा सिर पर गरीबी की गठरी लिए भूख नंगे पांव दिन रात चलती जा रही है, न बदन पर पड़ती चिलचिलाती धूप उसका रास्ता रोक पा रही है, न हुक्मरान, न प्रशासन। भूख है तो सब्र कब तक करता और फिर मौत से वो डरे भी क्यों? मरना तो उसे है ही वजह चाहे भूख हो या कोरोना वायरस, उसे क्या फर्क पड़ता है।

ऐसा लगता है सरकार इस मामले में कोई भी जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेना चाहती है, 40 दिन बाद सरकार सोच पाई कि मजदूरों को उनके घर वापस भेजना चाहिए, रोटी के लिए मजदूर आए दिन सड़क पर संग्राम कर रहे थे, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ने की आशंका थी। अब सरकार आर्थिक नुकसान का हवाला देकर शराब के ठेके खुलवा दी, इससे एक तो मोटा राजस्व आएगा, दूसरे ट्रोलर इस बात को प्रचारित करेंगे कि शराब के लिए पैसे हैं तो रोटी के लिए क्यों नहीं, जैसा कि अभी हो भी रह है। इससे सरकारों की जिम्मेदारी पर उठने वाले सवाल हल्के हो जाएंगे और सरकार आसानी से निवाले को प्याले पर शिफ्ट कर सकती है।

क्या सरकार को ये नहीं पता था कि लॉकडाउन इतना लंबा खिंचने वाला है, इसके बावजूद सरकार मजदूरों को आश्वासन का घूंट देकर रोके रखी, सरकारी इंतजाम भी किए गए, पर को नाकाफी साबित हो रहे थे, जबकि चाहिए ये था कि धीरे-धीरे सरकार मजदूरों को उनके घर वापस पहुंचा देती, लेकिन सरकार को डर था कि मजदूर एक बार घर चले गए तो वापस नहीं आएंगे, इसलिए भी मजदूर जहां थे, वहीं पर रोके रखा गया, लेकिन मजदूरों का सब्र तब जवाब देने लगा, जब लॉकडाउन में फंसे नवाबजादों को सरकारें निकालने लगी, तब मजदूरों के बागी तेवर सरकारों को परेशान करने लगी और मजबूरन उन्हें घर भेजने का इंतजाम करना पड़ रहा है, पर ये इंतजाम भी हाथी का दांत साबित हो रहा है।

Thursday 7 May 2020

LG Polimers: स्टाइरिन गैस लीक ने 35 साल पुराना जख्म हरा कर दिया

विशाापट्टनम में एक बार फिर गैस रिसाव की घटना सामने आई है, लीकेज दोबारा उसी जगह पर हुआ है, जहां गुरूवार तड़के हुआ था, मौके पर एनडीआरएफ की टीम मौजूद है, 50 दमकलकर्मियों के अलावा एंबुलेंस भी तैयार हैं, फॉम टेंडर को भी बुलाया गया है, कई किमी तक गांवों को खाली करा दिया गया है और रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है।
समुद्र तट पर बसे आंध्र प्रदेश के सबसे खूबसूरत शहर विशाखापट्टनम में 6-7 मई की रात 2.30 बजे विजाग स्थित एलजी पॉलिमर्स इंडिया की यूनिट से स्टाइरिन गैस रिसने लगी, जो गहरी नींद में सो रहे लोगों को सीधा मौत के मुंह में ले जाने लगी, पर मौत बांटती गैस के बारे में जानते जानते सुबह हो गई और सूरज की किरणों के साथ ही बेसुध लोग सड़कों पर बिछने लगे, आनन फानन में प्रशासन ने बचाव कार्य शुरू किया। फिर भी 13 जिंदगियां मौत की आगोश में समा गई हैं और 300 लोग जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे हैं।
कोरोना वायरस की चेन तोड़ने के लिए लॉकडाउन किया गया, पर इस लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था पर कभी न खुलने वाला ताला जड़ जाने की आशंका के चलते लॉकडाउन 3 को कुछ शर्तों के साथ छूट दी गई, ताकि ठप पड़ती अर्थव्यवस्था को जिंदा रखा जा सके, इसके बाद ही इस यूनिट को भी चालू किया गया, पर यूनिट के चालू होते ही गैस रिसाव ने ये साबित कर दिया है कि पिछली घटना से  हमने सबक नहीं लिया, इस घटना ने एक बार फिर 35 साल पुराने जख्म को हरा कर दिया है, जब मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल कब्रिस्तान में तब्दील हो गई थी, 2-3 दिसंबर 1984  की दरम्यानी रात जब पूरा शहर गहरी नींद में सो रहा था, तभी यूनियन कार्बाइड की फ़र्टिलाइज़र फैक्ट्री से मिथाइल आइसोनाइट गैस का रिसाव हुआ और लाशों के ढेर लग गए, जो लोग बचे भी वो आज तक तिल तिल कर मर रहे हैं।
हालांकि विशाखापट्टनम में हुए इस हादसे को समय रहते नियंत्रित कर लिया गया है, प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री और मुख्यमंत्री तक इस घटना की पल पल की अपडेट लेते रहे, राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को एक एक करोड़ रूपए मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को उसी कंपनी की किसी यूनिट में नौकरी दिलाने का वादा किया है। एलजी पॉलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना 1961 में हिंदुस्तान पॉलीमर्स ने किया था, जिसका 1997 में दक्षिण कोरियाई कंपनी एलजी ने अधिग्रहण कर लिया था।
हाईकोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है कि केमिकल फैक्ट्री को रिहायशी इलाकों में किस नियम के तहत स्थापित करने की मंजूरी दी गई है, जबकि जोखिम वाली यूनिट को हमेशा शहर के बाहर लगाया जाता है, ताकि ऐसी स्थिति में कम से कम जनहानि हो।
स्टाइरिन गैस मूल रूप में पोलिस्टाइरिन प्लास्टिक और रेजिन बनाने में इस्तेमाल होती है यह रंगहीन या हल्का पीला ज्वलनशील लिक्विड होता है, इसकी गंध मीठी होती है, इसे स्टाइरोल और विनाइल बेंजीन की कहा जाता है, बेंजीन और एथिलीन के जरिए इसका औद्योगिक मात्रा में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है, स्टाइरिन का इस्तेमाल प्लास्टिक और रबर बनाने में किया जाता है।
स्टाइरिस अगर हवा में मिल जाए तो यह नाक और गले में जलन पैदा करती है, इससे खांसी और गले में तकलीफ होती है साथ ही फेफड़े में पानी भरने लगता है, अगर स्टाइरिन ज्यादा मात्रा में सांस के जरिए शरीर में पहुंचती है तो यह स्टाइरिन बीमारी को जन्म से सकती है, इसमें सिर दर्द जी मिचलाना थकान सिर चकराना कन्फ्यूजन और पेट में गड़बड़ी जैसी दिक्कतें होने लगती हैं, इसे सेंट्रल नर्वस सिस्टम डिप्रेशन कहा जाता है, कुछ मामलों में इस गैस के संपर्क में आने से दिल की धड़कन असामान्य होने और कोमा जैसी स्थिति तक बन सकती है।
महामारी विज्ञान में कई अध्ययनों से ये पता चला है कि स्टाइरिस के संपर्क में आने से ल्युकेमिया या लिंफोमा का भी खतरा बढ़ सकता है, पर इसे अभी पुख्ता तौर पर साबित नहीं किया जा सका है, जबकि इस गैस का असर लंबे समय तक नहीं रहता है कुछ विशेषज्ञ इस बात का भी दावा करते हैं, पर  कुछ लोग इस गैस से कैंसर फैलने का खतरा भी बताते हैं, ये गैस ऑक्सीजन के साथ रिएक्शन कर स्टाइरिन डाइऑक्साइड बनाती है, जो बहुत जानलेवा होती है, इस गैस के खतरे को देखते हुए इसे हैजार्ड्स एंड टॉक्सिक केमिकल के दर्जे में रखा गया है।