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Thursday 31 July 2014

चुनावी शंखनाद

भारतीय जनता पार्टी केंद्र में काबिज होकर भले ही अपनी कामयाबी पर इतरा रही हो लेकिन हरियाणा में वापसी करना मानो कब्र से निकालकर जीवनदान देने जैसा होगा। पूरी पार्टी नरेंद्र मोदी और अमित शाह से आस लगाए बैठी है कि उनका जादू चलेगा तो सियासी बयार का रुख जरूर बदलेगा। साथ ही बीजेपी दूसरे दलों के नेताओं का पार्टी में स्वागत कर अपना कुनबा बढ़ाने की कोशिश में है। ताकि हर हाल में इस बार हरियाणा की धरती पर बीजेपी की खेती लहलहाए। जिसकी शुरुआत बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 18 अगस्त को कैथल से करेंगे। जबकि 24 अगस्त को जींद में चुनावी मंच से विरोधियों को ललकार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विधानसभा चुनाव का शंखनाद करेंगे।

Tuesday 29 July 2014

कुनबे में कलह

लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस कोमा में पहुंच गयी है। जिससे चलते अभी तक न अपनी दिशा तय कर पायी है और न ही दशा सुधारने के कोई ठोस उपाय कर पायी है। दस साल तक सत्‍ता में रहने वाली राष्‍ट्रीय पार्टी के लिए लोकसभा चुनावों में इतने कम आंकड़े पर सिमटना किसी पक्षाघात से कम नहीं है। सोनिया गांधी अभी तक कोपभवन से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। तो हतोत्साहित राहुल गांधी उहापोह में हैं। कि पार्टी के अंदर उठ रहे बगावत के सुर को कुचल दें या फिर नई ऊर्जा के साथ पार्टी को नया नेतृत्व दें। अपने परायों जैसा व्यवहार करने लगे तो विरोधी भी बांह मरोड़ने पर आमादा हैं। ऐसी स्थिति का सामना इससे पहले स्वर्गीय इंदिरा गांधी को भी ऐसी बगावत का सामना करना पड़ा था। लेकिन इंदिरा ने बगावत को कुचल कर पार्टी को नया जीवन दिया। सीताराम केसरी ने जब कांग्रेस की कमान सोनिया को सौंपी थी। तब किसी ने ये नहीं सोचा था कि सोनिया कांग्रेस को शिखर पर पहुंचा देगी लेकिन अब कांग्रेस की स्थित आसमान से गिरे खजूर पर अटके वाली है। इंदिरा या सोनिया को बीमार कांग्रेस का सामना नहीं करना पड़ा था। निश्चित तौर पर राहुल गांधी के लिए एक चुनौती है कि कैसे वो कब्र में पड़ी कांग्रेस को जीवनदान देते हैं। ये सत्‍ता का खेल है। आज के दौर में सियासत के व्याकरण का पहला फार्मूला सत्‍ता के साथ चिपके रहना होता है। एक बार आप सत्‍ता से बाहर हुए नहीं कि अपने भी पराये होने लगते है। कहते हैं न कि नाकामयाबी हमेशा अनाथ होती है जबकि सफलता के हजार बाप पैदा हो जाते हैं। कांग्रेस को अपनी सेहत सुधारना सिर्फ पार्टी के लिए ही नहीं बल्कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी आवश्‍यक है। देश की संसद विपक्ष के नेता के बिना सूनी है। क्षेत्रीय दलों में वो कुव्वत नहीं है कि वो बीजेपी का सामना कर सके। ऐसी परिस्थिति में एक मजबूत और ऊर्जावान राष्‍ट्रीय पार्टी की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता। अपनी पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए कांग्रेस इस जरूरत को पूरा कर सकती है। इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, के अलावा असम में बगावत की आग सुलग रही है। महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री नारायण राणे ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। जबकि असम के शिक्षा मंत्री  डॉ. हेमंत शर्मा 32 विधायकों के साथ इस्तीफा दे दिये। हरियाणा के बिजली मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिये। राज्यसभा सांसद बीरेंद्र सिंह भी बगावत के मूड में हैं। जम्मू के पूर्व सांसद ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस की नैया मझधार में हिचकोले खा रही है। और सहयोगी अपनी अपनी नाव लेकर किनारे पहुंचने को बेताब है।

Monday 28 July 2014

जुल्म की इंतहा

हिंदुस्तान में जब भी विकास की चर्चा होती है। तो सबसे पहले पंजाब और उसके पड़ोसी राज्य हरियाणा का नाम आता है। जहां के लहलहाते खेत हर किसी को आकर्षित करते हैं। लेकिन उसी हरियाणा के दिल में जो दर्द है उससे भी हर कोई वाकिफ है। लिंगानुपात में भारी अंतर सूबे की गंभीर समस्या है। उस पर महिला अपराध में हो रही बढ़ोत्तरी इस अंतर को खाई में तब्दील कर रही है। लेकिन दस साल से सत्ता पर काबिज किसानों का मसीहा बताने वाले सूबे के मुखिया भूपेंद्र सिंह हुड्डा चुपचाप बस सब कुछ देखे जा रहे हैं। और महिला अपराध यौवन पाने को बेताब है। रिआया के राजा जब मौन हैं, तो खाकी वाले साहब को क्या पड़ी है कि, वो भी अपने इलाके की खोज खबर लें। इसी अराजकता ने दबंगों को इतना बेखौफ कर दिया है कि उन्हे अब तो कानून की आहट भी सुनाई नहीं पड़ती। तभी तो हुड्डा साहब के गृहनगर में हैवानों ने ऐसा खेल खेला कि सुनने वालों के पैरों तले जमीन खिसक गयी। जब मुखिया का नगर ही नहीं सुरक्षित है तो बाकी क्षेत्रों के सुरक्षा का अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। यही वजह है कि सीएम साहब की नाक के नीचे भी दबंगई जारी है।
रोहतक जिले में ढाई महीने पहले दबंगों ने एक दलित महिला के साथ बलात्कार किया...और शिकायत करने पर सख्त पाबंदी भी लगा दी। लेकिन महिला के साहस के आगे उनकी धमकी चूर हो गयी और पीड़िता थाने पहुंचकर नामजद शिकायत की। मामला कोर्ट तक पहुंचा तो दबंगो का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। और महिला को पति समेत घर से उठा ले गये। फिर क्या एक सुनसान मकान में ले जाकर उन्हे ऐसी यातनाएं दी जिसे सुनकर हर कोई कांप गया। पति को बांधकर लाठी डंडों से पिटाई की और महिला को निर्वसस्त्र कर बांध दिया। मारते मारते थक गये तो महिला के निजी अंगों में कीले ठोंके दी। खाना पूर्ति करने पहुंची पुलिस पीडितों को सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया। जहां से दो दिन बाद उसे छुट्टी भी मिल गयी। लेकिन डॉक्टरों ने भी उसके साथ मजाक किया। पीड़ितों को अस्पताल से छुट्टी तो मिल गयी लेकिन उनके जख्मों ने विकराल रूप ले लिया। महिला को इंफेक्शन हो गया। बदहवास महिला को आनन फानन में पीजीआई रोहतक में भर्ती कराया गया।

खाकी वाले साहब कहते हैं कि मामला तो दर्ज किया था। लेकिन बलात्कार साबित करने के लिए सुबूत पर्याप्त नहीं थे। अब जो हैवानियत हुई है उसकी जांच करेंगे फिर जैसा मामला बनेगा वैसी धारा में कार्रवाई की जाएगी। एक चैनल पर डीएसपी साहब भी पीड़िता से बात कर रहे थे मै तो सुनकर हैरान हो गया कि पूरी बात में डीएसपी के मुंह से एक बार भी नहीं निकला की हम कार्रवाई करेंगे बल्कि उपर से महिला को ही गलत साबित करने लगे। ऐसी खकी से कैसे होगी आम जन की रक्षा। हे भगवान तू ही करे बेड़ा पार। हुड्डा सरकार की जय हो जय हो जय हो। 

Tuesday 8 July 2014

गरीब विरोधी मोदी का रेल बजट



मोदी सरकार का रेल बजट पेश 
जनरल क्लास का नहीं जिक्र
वाह री मोदी सरकार का रेल बजट
क्या यही है जनादेश का सम्मान ?
गौड़ा के बजट में कहां खो गया देश का गरीब ?
क्या यही है सबका साथ सबका विकास ?
अमीरों की हिफाजत गरीबों की फजीहत क्यों ?

केंद्र की नई सरकार ने अपना पहला रेल बजट पेश किया...लेकिन मोदी सरकार का ये बजट गरीबों को मुंह चिढ़ा रहा है...यही नरेंद्र मोदी चुनाव के दौरान रोज गरीबों की बात किया करते थे लेकिन उन्ही की सरकार के बजट से गरीब आदमी नदारद है। मोदी एक्सप्रेस पर सवार होकर गौड़ा साहब बुलेट बजट लेकर जैसे ही लोकसभा में दाखिल हुए तो जनता का दिल और भी तेजी से धड़का। लेकिन जैसे ही बजट का पिटारा खुला तो। आम आदमी की धड़कनें कुछ देर के लिए थम ही गयी। उनके सपने चूर चूर हो गए। बजट देखकर ये पूछने का मन जरूर करता है कि प्रधानमंत्री जी क्या यही है सबका साथ, सबका विकास। आपके बजट में कहां है देश का गरीब। मध्यम और निचले तबके को हर बार की तरह इस बार भी बेबसी और लाचारी के शिवा कुछ नहीं मिला। सामान्य बोगियों के बढ़ाने या उसमें सुविधा बढ़ाने पर सरकार पूरी तरह मौन रही। इसके बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बजट पर फूले नहीं समा रहे हैं। पिछली सरकार में जिस एफडीआई के खिलाफ बीजेपी लोकसभा में कोहराम मचाती रही। दिन रात सरकार को कोसती रही। वही बीजेपी अब एफडीआई के सहारे सरकार चलाना चाहती है। रक्षा के क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआई के बाद अब रेलवे में भी एफडीआई को बढ़ावा देगी। सरकार को सिर्फ और सिर्फ अमीरों  औऱ पूंजीपतियों की चिंता है। तो वही कहावत याद आती है कि दूसरों को नसीहत और खुद मियां फजीहत।



Tuesday 1 July 2014

सुनो सुनो प्रधानमंत्री जी सुनो

अबकी बार मोदी सरकार...अच्छे दिन आने वाले हैं...इन शब्दों की गूंज लोकसभा चुनाव अभियान में टेलीविजन, समाचार पत्रों, लाऊड स्पीकरों पम्पलेटों दिखाई औऱ सुनाई पड़ती रही। मोदी चुनाव प्रचार के समय देशभर में घूम घूम कर अच्छे दिन आने वाले हैं का नारा लगाते नहीं थक रहे थे। इस नारे से ही जनता की उम्मीदों को मानों पंख लग गये और देश की सत्ता मोदी के हाथों में सौंप दी। अब वही मोदीजी जनता को महंगाई का तोहफा हर दिन दे रही है। सुनो सुनो प्रधानमंत्री जी मेरी आवाज सुनो...लेकिन ये क्या प्रधानमंत्री जी आप तो अभी से ही उसी जनता के विश्वास का कत्ल करने लगे हैं। जिस जनता के जनादेश के बदले आप इतना इतरा रहे हैं। सत्ता की कमान आपके हाथों में है। बहुमत भी है। विपक्ष और सहयोगियों के दबाव का कोई बहाना भी नही हैं। फिर भी आपके वादे क्यों धूल फांक रहे हैं। तो क्या आपने भी सत्ता तक पहुंचने के लिए झूठा और फरेबी वादा किया था...?या यूं समझ ले कि झूठ बोलो जोर से बोलो चिल्लाकर बोलो तो लोग विश्वास कर लेंगे क्या आपने ये सोचकर तो नहीं किया वादा...डीजल...पेट्रोल...रसोई गैसप्याज और रेल किराए में बढ़ोत्तरी से जनता पहले भी परेशान थी और अब भी त्राहिमाम कर रही है। प्रधानमंत्री जी कहां गया आपका वादा...क्या आपको अब जनता की चीख नहीं सुनाई पड़ रही है। सुनाई भी क्यों पड़े। आप तो जनता से मिले बहुमत की सत्ता के मद में चूर हैं। खैर समय से ताकतवर कोई नही होता समय के आगे सब धराशायी हो जाते हैं। और जनता जब बगावत पर उतरती है तो सत्ता कितनी भी ताकतवर हो बुनियाद तक हिलाकर रख देती है। प्रधानमंत्री जी आप क्यों भूल रहे हैं कि यूपीए की सरकार में महंगाई बढ़ाने पर आपकी पार्टी देश भर में आंदोलन संसद में हंगामा आदि करते थे तब आप भी आलोचना करने से नहीं चूकते थे। अब क्या हुआ प्रधानमंत्री जी यहां तो वही कहावत कहनी पड़ रही है कि दूसरों को नसीहत खुद मियां फजीहतअब बीजेपी सरकार अच्छे दिन के नाम पर जनता को मंहगाई का करंट सटा रही है। क्यों प्रधानमंत्री जी अब आप भी महंगाई पर खुद को फेल समझ रहे हैं।