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Wednesday 26 November 2014

एक याद बचपन की



याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
इस फूलों की आते जाते कुड़ियों वाले दिन, बात बात पर फूट रही फुलझड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
पनवाड़ी की चढ़ी उधारी घूमै मस्त निठल्ले, कोई मेला हाट ना छूटे टका नही है पल्ले
कागज, घड़ी लिए हाथों में घड़ियों वाले दिन, ट्रांजिस्टर पर हवा महल की कड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
लिखी-लिखी, पढ़ी-पढ़ी चूमै फाड़ैं बिना नाम की चिठ्ठी, सुबह दुपहरी शाम उसी की बाते खट्टी मीठी
रूमालों में फूलों की पंखुड़ियों वाले दिन, हड़बड़ियों में बार बार गड़बड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
सुबह शाम की दंड बैठकें दूध, छांछ भर लोटा, दंगल की ललकार सामने घूमैं कसे लंगोटा
मोटी-मोटी रोटी घी की घड़ियों वाले दिन, लइया, पट्टी, मूंगफली मुरमुरियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
तेज धार करती बन्जारन चक्का खूब घुमावै, दांत-दांत के बीच कटारी मंद-मंद मुस्कावै
पूरा गली मोहल्ला घायल छुरियों वाले दिन, छुरियों-छुरियों छूट रही फुलझड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
घर भीतर मनिहार चढ़ावै, चुड़ियां कसी कसी सी
पास खड़े भइया मुस्कावैं, भउजी फंसी फंसी सी
देहरी पर निगरानी करती बुढ़ियों वाले दिन, बाहर लाठी, मूछों और पगड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
शोले देख छुपा है बीरू दरवाजे के पीछे, चाचा ढूंढ रहे हैं बटुआ फिर तकिया के नीचे
चाची देख छुपाती घूमै छड़ियों वाले दिन, हल्दी गर्म दूध के संग फिटकरियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
ये वो दिन थे जब हम लोफर आवारा कहलाए, इससे ज्यादा इस जीवन में कुछ भी कमा न पाए
महंगाई में फिर से वो मंदड़ियों वाले दिन, अरे कोई लौटा दे मेरे चूरन की पुड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
आल्हा गाते बाबा के खंझड़ियों वाले दिन, गैया भैंसी बैल बकरियां पड़ियों वाले दिन
याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन, दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन
अरे कोई लौटा दे चूरन की पुड़ियों वाले दिन याद बहुत आते हैं गुड्डे गुड़ियों वाले दिन
                                                                    प्रमोद तिवारी

3 comments:

  1. वाह लाजबाव प्रमोद तिवारी जी

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  2. बहुत खूब प्रमोद जी

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  3. Purani yadon ko taaja karne wala geet.

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