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Wednesday 21 October 2015

सुनपेड़ में नेताओं का जमघट

सुनपेड़ा में मजमा लगा है नेताओं का...सियासतदानों का...कांग्रेस, बीजेपी, बीएसपी, सीपीएम, इनेलो जैसी तमाम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं और प्रमुखों का जमावड़ा लगा है...सब के सब चीख रहे हैं...एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं...लेकिन कोई नहीं कहता की वो खुद इस घटना का जिम्मेदार है...कोई कहे भी कैसे..क्योंकि यही तो वो दर्द की भट्टी है जिस पर सियासी रोटियां बड़ी करारी सिकती हैं...क्या कोई भी पार्टी देश में अमन चैन चाहती नहीं हैं! यदि ऐसा नहीं होता तो देश प्रदेश को दंगों का दंश नहीं झेलना पड़ता! अब नेता झूठा दिखावा कर रहे हैं...घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं...छाती पीट पीट कर दबंगों को कोस रहे हैं सरकार और पुलिस प्रशासन को कोस रहे हैं...सियासी सहानुभूति दिखा रहे हैं...लेकिन सच तो ये है कि इसकी जरा भी उन्हे चिंता नहीं है...चिंता है तो सिर्फ वोट बैंक की...फरीदाबाद के बल्लभगढ़ के सुनपेड़ा में दबंगों ने दलित परिवार को जिंदा आग में झोंक दिया गया...जिसमें दो बच्चों की मौत हो गयी...जबकि पति पत्नी का गंभीर अवस्था में दिल्ली के सफदरगंज में इलाज चल रहा है...ये घटना निश्चित रूप से निंदनीय है...मानवता को शर्मसार करने वाली है...जिसने दिल दिमाग को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया है...इस घटना ने 21 अप्रैल 2010 के घाव को ताजा कर दिया...जब हिसार के मिर्चपुर गांव में दबंगों ने दलित बस्ती को आग के हवाले कर दिया था...उनके पुनर्वास की व्यवस्था की गई है...फिर भी दबंगों के डर से दलित समुदाय गांव में जाने से घबराते हैं...लेकिन इस घटना के पीछे की कहानी कुछ और ही है...दरअसल 5 अक्टूबर 2014 को सुनपेड़ में मामूली मोबाइल विवाद में गांव के सरपंच और पूर्व सरपंच के बीच जानलेवा वॉर शुरू हो गया...जिसमें अब के आरोपी परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी गई थी...जिसमें करीब 13 दोषी ठहराए गए..उनमें से 7 लोग अब भी जेल में बंद हैं...तब से वहां पुलिस तैनात है...फिर पुलिस की मौजूदगी में हुई ये घटना व्यवस्था पर सवाल उठाती है...कि आखिर इसके पीछे किसी की साजिश तो नहीं है...इस घटना को उसी क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है...जो आज दलित के नाम पर रोना रो रहे हैं...तब उनमें इतनी ताकत कहां से आ गयी थी जब उन्होने तथाकथित दबंगों को मौत के घाट उतार दिया था...ये दलितों का विरोध नहीं है बल्कि एक जायज सवाल है।