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Thursday 23 July 2020

अपाहिज होता दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, धुंधला पड़ता समाज का आईना

कहते हैं वक्त से बड़ा कोई तानाशाह नहीं होता, पर जब वक्त बुरा आता है तो बड़े से बड़े तानाशाह को भी घुटनों पर ला देता है, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का भी आजकल बुरा वक्त चल रहा है या यूं कहें कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपाहिज हो गया है, जो आजकल चार पैरों की बजाय दो ही पैरों पर रेंग रहा है, ऐसे में लोकतंत्र को संतुलित करने वाला समाज का दर्पण खुद ही धुंधला होता जा रहा है तो वो दूसरों को आईना दिखाए भी तो कैसे।
आजकल समाज का दर्पण ही समाज के लिए बड़ी मुसीबत बन गई है क्योंकि ये समाज ही अपने लिए खुद कुआं खोद रहा है, जिसमें आने वाली पीढ़ियां गिरकर दफन हो जाएंगी, मंगलवार को गाजियाबाद पुलिस की लापरवाही ने पत्रकार की जान ले ली क्योंकि जिस पुलिस को पत्रकार की शिकायत पर संज्ञान लेना था, वो नहीं ली और बदमाशों ने शिकायत की बात को दिल पर ले लिया, फिर तो विक्रम जोशी को उनकी मासूम बेटियों के सामने ही तीन गोलियां दाग दी. इस मामले में पुलिस पर भी हत्या की धाराओं में FIR दर्ज किया जाना चाहिए क्योंकि जितने पुलिसकर्मियों को इस शिकायत की जानकारी थी, वो सभी नामजद आरोपियों जितने ही दोषी हैं.
इतना सबकुछ होने के बाद भी सत्ता मदमस्त हाथी की चाल चली जा रही है, कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं है।

Monday 13 July 2020

राजस्थान राजनीतिक संकट: जादूगर के 'जंतर' ने हर परेशानी को किया छू-मंतर!

दुश्मनी बराबर वाले से हो तो जंग की जीवटता और बढ़ जाती है, बड़े दुश्मन से मिले जीत तो खुशियां और बढ़ जाती है, पर यहां लड़ाई सामने से नहीं, बल्कि मांद में सेंध लगाने की थी। पर यहां उसे मुंह की खानी पड़ी और जादूगर के जादुई मंतर ने सारी परेशानी को छू-मंतर कर दिया। इसके पीछे एक और वजह थी, कहते हैं दूध की जली बिल्ली छांछ भी फूंक कर पीती है, मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने कमलनाथ को सत्ता से बेदखल कर दिया अब अब बीजेपी वही दांव राजस्थान में भी आजमाना चाहती थी, लेकिन यहां उसे मुंह की खानी पड़ी। हालांकि ये संकट फिलहाल टल गया है, पर पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।

राजस्थान में उपजे राजनीतिक संकट के लिए कहीं न कहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी जिम्मेदार है क्योंकि जिस सचिन पायलट ने राजस्थान में कांग्रेस को जीवित करने के लिए पांच साल तक गलियों की खाक छानते रहे, सत्ता में आने पर पार्टी ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया और सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन एक तरह से मुख्यमंत्री ने उपमुख्यमंत्री को बिना नख दंत वाला शेर बना दिया और एक जंगल में दो शेर आए तो वर्चस्व की लड़ाई तय है, मुख्यमंत्री सारे महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखे रह गए, लेकिन जब सचिन पायलट पर राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ तो यह लड़ाई खुलकर सामने आ गई।

अब इस संकट को चाहें तो मध्यप्रदेश से भी जोड़ सकते हैं, इसलिए कि वहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद उनके समर्थन में छह मंत्री सहित 22 विधायक इस्तीफा दे दिए और कमलनाथ की सरकार गिर गई, लेकिन वहां पर संख्या बल बीजेपी के मुफीद था, पर यहां का गणित सुलझाना थोड़ा मुश्किल है। दूसरी बात यह है कि सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री भी हैं तो ऐसे में सचिन पायलट का बगावत करना ठीक तो है, लेकिन बीजेपी में शामिल होना उनके लिए सुसाइड साबित हो सकता है और जो कलंक लगेगा उसे मिटाना मुश्किल होगा, ऊपर से को सम्मान कांग्रेस में है वो बीजेपी में शायद ही मिले क्योंकि वहां वसुंधरा राजे और गुलाब चंद कटारिया सरीखे नेता ऐसा होने नहीं देंगे। 

Saturday 11 July 2020

इंसानी बस्ती में जानवरों में बसती इंसानियत, कोरोना ने हटाई झूठ की स्याह परत

आधुनिक होते समाज में रिश्तों की अहमियत कम होती जा रही है, बल्कि अब जरूरत के रिश्ते गढ़े जाने लगे हैं, अब दूर के रिश्ते हो या करीब के, सभी जरूरत पूरी होने के साथ ही खत्म हो जाते हैं। कहते हैं हर इंसान को अपनी जान सबसे ज्यादा प्यारी होती है, संपन्नता मित्रता और रिश्ते बढ़ाती है पर विपदा उसकी परख करती है, पर रिश्ते और मित्रता में एक अंतर होता है कि मित्र बदलने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है, जबकि रिश्ते बदलने की कोई गुंजाइश नहीं होती है, ठीक उसी तरह जैसे चाहकर भी आप अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते।

साल 2019 के आखिरी महीने में जब कोरोना वायरस का नाम सुनाई पड़ा था, तब किसी को ये आभास नहीं था कि ये महामारी बनकर एक दिन पूरी दुनिया को अपनी अंगुली पर नचाएगा, पर ये वायरस अब तक लाखों जिंदगियों को मौत की नींद सुला चुका है, करोड़ों लोग इसके संक्रमण से जूझ रहे हैं, जबकि दुनिया का हर इंसान इस बीमारी के खौफ में जी रहा है। इस महामारी ने अच्छे-खासे रिश्तों को भी जब विश्वास की कसौटी पर कसा तो पूरा सोना पीतल हो गया। जो फकीर थे उन्हें कौन पूछता, पर जो अमीर थे, उनकी भी अहमियत फकीर जैसी ही हो गई।

महामारी के इस दौर में अपना कोई नहीं रहा क्योंकि एक पत्रकार होने के नाते ढेरों खबरों से रोजाना सामना होता है, पर इस खबर ने अचानक से अंदर तक झकझोर दिया। इंसान इतना भी स्वार्थी हो सकता है क्या? जिसने परिवार के लिए पूरी जवानी खपा दी। पाई-पाई जोड़कर बच्चों को काबिल बनाया और बच्चे भी बच्चों के बाप बन गए, एक समय में इनकी भी परिवार में बड़ी पूछ परख थी क्योंकि हर महीने उनको करीब ₹50000 पेंशन मिलती थी, यही वजह थी कि उनसे पूछे बिना घर का पत्ता भी नहीं हिलता था, यानी कि बच्चे बीवी बहू सब इतने संस्कारी थे कि हर काम उनसे पूछकर ही किया करते थे, सब कुछ ठीक चल रहा था, बुढ़ापे के दिन भी अच्छे से कट रहे थे, तभी एक तूफान आया और झूठ के साथ दिखावे को भी अपने साथ उड़ा ले गया और जब झूठ का पर्दा हटा तो उसे अपनी आंखों पर भी यकीन नहीं हो रहा था

पर जो सच होता है, उसे ज्यादा वक्त तक नजर अंदाज करना संभव नहीं रहता है। हां, उस पर कुछ समय के लिए पर्दा जरूर डाला जा सकता है। और उसमे दिखे कोरोना के लक्षण ने उसे अचानक से तन्हा कर दिया। जो दिन भर उनके इर्द-गिर्द घूमा करते थे, वे सभी अब बहुत दूर किसी अजनबी की तरह खड़े थे, उसके पास कोई था तो कुछ सियाचिन में ड्यूटी करने वाले सेना के जवानों जैसे लिबास में कुछ स्वास्थ्यकर्मी थे, जिनके पास एक वाहन भी था, जिससे मरीजों को अस्पताल ले जाया जाता है और अगर इलाज के दौरान मरीज की मौत हो जाती है तो उसके शव को श्मशान पहुंचाने के भी काम यह वाहन आता है। थोड़ी ही देर में स्वास्थ्यकर्मी उसे उसी वाहन में बैठाकर गेट बंद कर दिए, उसके साथ उसकी कुछ जरूरत की चीजें भी रख दी गईं।

अभी एंबुलेंस वहां से गई भी नहीं थी कि परिवार के लोग उस जगह की साफ-सफाई में लग गए, जिस कमरे में वह रहता था ,परिवार के एक भी सदस्य का ध्यान न तो उसकी तरफ था और न ही किसी को उसकी फिक्र थी, वह सोच रहा था कि एक बीमारी ने उसे इस कदर तनहा कर दिया कि जो उसके अपने थे वह भी गैरों जैसा सुलूक करने लगे, दूर से उसे खाना देना, खिड़की से उसे खाना देना या दूर से फेंककर या दूर से धकेल करके देना, ये सारी बातें उसके दिल-दिमाग में गूंजती रही, उसे यह बात समझ में आ गई कि उसकी फिक्र करने वाला अब यहां कोई नहीं है।

हालांकि, उसकी फिक्र करने वाला वहां पर सिर्फ उसका कुत्ता था, जो एकटक उसे ही देखे जा रहा था उदास और आस भरी नजरों से, इस बीच कुछ ही देर में एंबुलेंस अस्पताल की ओर रवाना हो गई, लेकिन जब तक वह एंबुलेंस में बैठा रहा, तब तक सोचता रहा कि उसके कमरे आदि को इस तरह शुद्ध किया जा रहा है, जैसे न जाने वहां कितने जन्मों का पाप जमा हो, यह नजारा देख मन ही मन सोचने लगा कि हम किस और किन लोगों के लिए अपनी खुशियों से समझौता करते रहे, इससे तो अच्छा मैं अकेला ही होता तो बेहतर होता, पर इस कुत्ते को आज भी मुझसे कितना प्यार है, नि:स्वार्थ लगाव है, जबकि यह तो हमारी संपत्ति का वारिस भी नहीं है, उसकी संपत्ति के असली वारिस तो उसकी बीवी-दो बेटे और बहुएं हैं, जिनमें आगे चलकर उसकी संपत्ति बंट जानी थी, बीमारी के पहले तक बहुएं भी इतनी संस्कारी थी कि खाना भी उनकी पसंद पूछकर ही बनाती थी।

उसकी समाज में भी खूब इज्जत थी, अमीरी और रसूख का, पर एक बीमारी ने रेत पर बनी मीनार को एक झटके में ही जमींदोज कर दिया, वो मन ही मन सोच रहा था कि काश ज्यादा बेहतर होता जो इंसानों के बदले जानवरों को पाल लेता क्योंकि उसे यह बात समझ में आने में बहुत देर लग गई कि जिस इंसानों की बस्ती में रहता है, वहां इंसानियत का कोई मोल नहीं है, कहने के लिए यह समाज इंसानों का है, लेकिन यहां जानवरों से भी बदतर इंसान पाए जाते हैं।

खैर! आंखों में आंसू लिए एंबुलेंस में बैठा रहा और उसके अरमानों पर बाल्टी बाल्टी पानी भर कर फेंके जा रहे थे, जो उसकी आंखों से उसका तिरस्कार बनकर बहे जा रहे थे। इस दृश्य को देख वह न जाने किस दुनिया में खो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि वह कब अस्पताल पहुंच गया।

अस्पताल में करीब 15 दिन तक इलाज चला और जब वह अस्पताल से घर लौटा तो बीमारी से पूरी तरह ठीक हो चुका था, पर उसके मन में जो घाव हुआ था, उसका इलाज किसी भी डॉक्टर के पास नहीं था, घर पहुंचकर वह अपने सर्वेंट रूम में गया और वहां से कुछ सामान लिया और फिर बाहर जाने लगा, तभी बीवी-बच्चों ने पूछा कि आप कहां जा रहे हैं, पर किसी ने न तो हाल पूछा और न रोकने की कोशिश की। पर वह फिर वहां रुका भी नहीं। जाते हुए उसके साथ सिर्फ उसका कुत्ता था, जिसकी डोर वो अपने एक हाथ में पकड़े हुए था, जो कुछ देर में लौटकर आने की बात कहकर निकला, पर आज तक लौटकर उस घर नहीं आया। वह वहां से न जाने कितनी दूर चला गया कि अब उसकी आहट भी नहीं सुनाई पड़ती है।

इस तरह कोरोना वायरस ने सच्चे रिश्तों पर पड़ी स्वार्थ और दिखावे की स्याह परत को हटाया जो बदनुमा दृश्य दिखा वो किसी की भी रूह कंपाने के लिए काफी था, जैसे कितना भी खूबसूरत बदन हो, पर एक बार खाल उतार जाए तो उस शरीर को देखकर कोई भी डर सकता है। उसी तरह इस कहानी में एक बात तो साफ हो गई है कि इंसानी बस्ती में भी इंसानियत नहीं बसती है, जबकि जानवरों में आज भी इंसानियत बाकी है जो नासमझ और मूक होकर भी इंसानों से ज्यादा समझदार और वाचाल है।

Thursday 9 July 2020

बिकरू के गैंगस्टर विकास दुबे के साथ दफन हो गई खाकी-खादी की करतूत

2-3 जुलाई की रात कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में करीब 60 मामलों में वांछित गैंगस्टर विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में सीओ सहित आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे, तब से विकास दुबे बड़े से बड़े अखबारों और न्यूज चैनलों की हेडलाइंस से नीचे उतरा ही नहीं। हां, 8 पुलिसकर्मियों की शहादत से महकमे की आंखों में खून जरूर उतर आया था और पुलिस चुन-चुन कर उसके गुर्गों को मौत की नींद सुलाने लगी। उसके घर गाड़ी सबकुछ पुलिस तहस नहस कर डाली, वो भी गुंडों की तरह। 

इस बीच पुलिस और खुफिया तंत्र को धता बताते हुए विकास यूपी हरियाणा दिल्ली राजस्थान और एमपी पुलिस को चकमा देते हुए 9 जुलाई की सुबह महाकाल मंदिर पहुंच गया और मंदिर में करीब 2 घंटे तक बेखौफ घूमता रहा, फिर फर्जी आईडी पर वीआईपी दर्शन के लिए लाइन में भी लग गया था, चेक प्वाइंट को पार भी कर लिया, फिर को कुछ पूछने के लिए सुरक्षा कर्मी के पास जाता है, तब शक होने पर गार्ड उसे पकड़ लेता है तो चिल्लाता है कि मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला। फिर पुलिस उसे थाने ले गई, एक तरह से प्लानिंग के साथ विकास दुबे ने सरेंडर कर दिया। पुलिस और सरकार अपनी पीठ ठोक रही है कि हमने गिरफ्तार किया है, जिसकी सबसे पहले पुष्टि एमपी के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने ट्वीट कर की थी।

अब इस गिरफ्तारी की थ्योरी को थोड़ा समझते हैं कि दो जुलाई की रात जब पुलिस विकास को गिरफ्तार करने जा रही थी, उससे पहले उसके पास थाने से फोन जाता है कि पुलिस तैयार हैं और आपका एनकाउंटर भी कर सकती है तो सूचना देने देने वाले को बदले में जवाब मिला कि आने दो कफन में लपेट कर भेजूंगा और हुआ भी ठीक वैसे ही उसने 8 पुलिसकर्मियों को शहीद कर दिया, जबकि जख्मी भी हो गए और रात को ही विकास दुबे वहां से फरार हो गया, वह भी तब जब पुलिस ने पूरे इलाके को सील कर रखा था।

इतनी सख्ती के बावजूद घटना के करीब तीन-चार दिन बाद पुलिस को फरीदाबाद में उसके होने की जानकारी मिली, फरीदाबाद पुलिस वहां दबिश देने पहुंची लेकिन खाली हाथ लौटना पड़ा था, पुलिस उस होटल के मालिक और उसके बेटे को कानपुर ले गई, जिसके अगले दिन उसके बेटे का एनकाउंटर कर देती है, जबकि उसके एक दिन पहले हमीरपुर में विकास दुबे के राइट हैंड अमर दुबे को पुलिस ठिकाने लगा चुकी थी। इसी साल जून के आखिर में शादी हुई थी, इस शादी में विकास दुबे के डांस का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, लेकिन पूरा पुलिस तंत्र अब तक विकास दुबे को खोजने में नाकाम साबित हो रहा था।

उज्जैन पुलिस गिरफ्तारी के बाद विकास दुबे को यूपी एसटीएफ को सौंप दी, 9 जुलाई की शाम को यूपी एसटीएफ उज्जैन से विकास दुबे को लेकर चलती है और 10 जुलाई की सुबह कानपुर की सीमा में प्रवेश करने के बाद पुलिस की गाड़ी पलट जाती है और विकास दुबे पुलिस की पिस्टल छीनकर भागने लगता है, इस दौरान वह फायरिंग भी करता है और आत्मरक्षा में पुलिस गोली चलाती है और वह घायल हो जाता है, पुलिस उसे कानपुर के हैलट अस्पताल ले जाती है, जहां डॉक्टर उसे मृत बता देते हैं। इस तरह पुलिस अपना बदला तो पूरा कर लेती है, पर कानून और संविधान को लॉकअप में बंद करके।

विकास दुबे से किसी को सिम्पैथी नहीं है, जो को किया था उसको उसे है भरना था, पर पुलिस को न्यायिक सिस्टम को थोड़ी देर के लिए लॉकअप में बंद करके ये रिस्क लेना पड़ा क्योंकि उसे पता था कि कोर्ट कचहरी से उसे सजा दिलाने में जाने कितना इंतजार करना पड़े और वो पुलिस की आंखों में रोजाना शूल की तरह चुभता रहे, दूसरा ये कि विकास दुबे का मुंह खुलने से कितनों का मुंह बंद हो सकते थे और कितने खाकी से लेकर खादी तक दागदार हो जाते। इसलिए पुलिस को हड़बड़ी में ये गड़बड़ी करनी पड़ी।

Thursday 2 July 2020

MP में 'शिव'सरकार सिंधिया'राज' और शिव का 'विष'पान

भोपाल। लंबे समय से टल रहा शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार आखिरकार आज संपन्न हो गया. सुबह 11 बजे राजभवन में प्रभारी राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने नेताओं को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सर्मथकों का दबदबा दिख रहा है. बताया जा रहा है कि इससे पहले सिंधिया ने बीजेपी आलाकमान से मुलाकात कर अपने समर्थकों को मंत्री बनाए जाने की मांग की थी. सिंधिया समर्थक 11 पूर्व विधायक मंत्री बनाए गए हैं, जबकि दो पहले से ही मंत्री हैं. शिवराज कैबिनेट में सिंधिया समर्थक 13 मंत्री हैं, बिसाहूलाल को मिलाकर ये संख्या 14 हो जाती है. एक तरह से माना जाए तो भले ही सरकार शिवराज की है, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर राज सिंधिया का ही है. हालांकि, ऐसा पहली बार हुआ है, जब 14 गैर विधायक किसी सरकार में एक साथ मंत्री हैं.