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Wednesday 21 March 2018

आपकी गुप्त जानकारियों को सियासी हथियार बना रहा फेसबुक!

टेलीफोन के आविष्कार ने फाइबर ऑप्टिक तार के जरिए दुनिया को एक सूत्र में पिरोया तो एंड्रॉयड फोन ने पूरी दुनिया को डिजिटल कर दिया और सोशल मीडिया डिजिटल दुनिया का वो बादशाह बन बैठा, जो एक झटके में किसी को भी राजा से रंक और रंक से राजा बना सकती है। यही वजह है कि पूरी दुनिया फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल साइट्स के मालिकों के हाथ की कठपुतली बन गई, जो किसी भी विचार को लोगों पर थोप देते हैं और उसे ऐसा करने के लिए मजबूर करते हैं। इसके लिए वो आपका गोपनीय डाटा चुराकर उसी से हथियार बनाते हैं, इस खुलासे से पूरी दुनिया हैरान है।

एक करोड़ की नौकरी छोड़ शिक्षा की अलख जगाने निकले हैं पूर्वांचल के सपूत 

पांच करोड़ उपभोक्ताओं के गोपनीय डाटा चोरी करने के मामले में फंसने के साथ ही फेसबुक अबतक की सबसे बड़ी मुसीबत में फंस गया है, जिसके चलते उसे हर सेकंड करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। साथ ही अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और यूरोपियन यूनियन में खलबली मची है, सब के सब खौफ के साये में जी रहे हैं, कोई ये नहीं समझ पा रहा कि उसका डाटा कितना चोरी हुआ और कितना सुरक्षित है। लिहाजा पूरी दुनिया फेसबुक के मालिक मार्क जकरबर्ग से सवाल पूछ रही है कि आखिर इतने बड़े आरोप के बाद भी वो खामोश क्यों हैं, सामने आकर सफाई क्यों नहीं देते। यही नहीं फेसबुक की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर भी चुप हैं, जबकि इन्हीं के पास जन संपर्क का दायित्व भी है। 
  
अविश्वास प्रस्ताव से सरकार को नहीं पर मोदी की साख को खतरा! 

इस खुलासे के बाद अमेरिका और ब्रिटेन की संसद में भी हंगामा मचा है, नई बहस छिड़ी है कि सुरक्षा को सुरक्षित करने के लिए और सख्त कानून बनाया जाये, वहीं भारत के कानून और सूचना प्रसारण मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने सख्त लहजे में कहा कि 'मार्क जकरबर्ग आईटी मिनिस्टर की बात कान खोलकर सुन लीजिए अगर भारतीयों के किसी भी तरह के डेटा की चोरी हुई तो सरकार छोड़ेगी नहीं और जकरबर्ग को भी भारत तलब किया जा सकता है। भारत में चुनावी प्रक्रिया में दखल देने की बात सामने आई तो किसी को भी बख्सा नहीं जायेगा। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा है क्योंकि 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में ट्रंप को जिताने में ब्रिटेन की कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका ने पांच करोड़ फेसबुक यूजर्स का डाटा चुराया था।

...तो क्या अपनों ने ही योगी को हरवा दिया?

रविशंकर ने तो लोकसभा में कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि डाटा चोरी करने में कैंब्रिज एनालिटिका का नाम सामने आया है और मीडिया में खबरें आई हैं कि कांग्रेस अगले चुनाव में सत्ता में वापसी करने के लिए इसी कंपनी से मदद ले रही है, उन्होंने अखबारों का हवाला देते हुए कहा कि कैंब्रिज एनालिटिका अगले लोकसभा चुनाव के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सोशल मीडिया स्ट्रैटेजी तय करेगा, इस पर कांग्रेस को जवाब देना चाहिए।

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वहीं बीजेपी ने कांग्रेस से पूछा है कि क्या आपने डाटा चुराने वाली कंपनी से कोई सौदा किया है और हाल में ही संपन्न हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में कैंब्रिज एनालिटिका की सेवाएं ली थी या नहीं। ये सवाल बेहद गंभीर है, लिहाजा इस मसले को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है, जबकि कांग्रेस ने कैंब्रिज एनालिटिका से किसी तरह का संबंध होने से इनकार किया है। साथ ही कहा है कि उसका कभी भी इस कंपनी से कोई रिश्ता नहीं रहा।

2017 के आंकड़ों पर नजर डालें तो अकेले भारत में ही 24 करोड़ से ज्यादा फेसबुक यूजर्स हैं, जबकि पूरी दुनिया में 3 अरब यूजर्स हैं जोकि पूरी दुनिया के यूजर्स का 11 फीसदी है। इसी के साथ ही भारत को सबसे बड़ा 'डाटा बाजार' भी कह सकते हैं। जहां हर साल कोई न कोई चुनाव होता ही रहता है। पिछले आम चुनाव में सोशल मीडिया कैंपेन को मिली अपार सफलता के बाद सभी पार्टियों की नजर सोशल मीडिया पर टिकी है। ऐसे में कैंब्रिज एनालिटिकल जैसी कंपनियों की नजर भारत पर है, वहीं अब हमारे और आपके सामने अपनी गोपनीय जानकारियां बचाए रखने की चुनौती है।

गोपनीय दस्तावेजों की चोरी और उसका इस्तेमाल भी इस शातिराना अंदाज से किया गया, जिसका पता लगाना भी बेहद मुश्किल था क्योंकि इसके लिए 2013 में कैंब्रिज एनालिटिका नाम से एक कंपनी बनाई गई, जिसका मकसद कंज्यूमर रिसर्च, एडवरटाइजिंग और डाटा से जुड़ी सर्विस पॉलिटिकल और कॉरपोरेट क्लाइंट को देना, पर इसी कंपनी की आड़ में इसके कर्ता-धर्ताओं ने पांच करोड़ उपभोक्ताओं की गुप्त जानकारी ही बेच डाली, आरोप तो ये भी लगाया जा रहा है कि इसी डाटा की बदौलत ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, हालांकि चुनाव जीतने के बाद ट्रंप को पहले के मुकाबले अधिक विरोध झेलना पड़ा था।

Monday 19 March 2018

अविश्वास प्रस्ताव से सरकार को नहीं पर मोदी की साख को खतरा!

25 मई 2014 को प्रचंड बहुमत और अति आत्मविश्वास से लबरेज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तरफ से नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस आम चुनाव में मोदी की लहर नहीं बल्कि सुनामी आई थी, जिसमें कई दलों की जमानत तक जब्त हो गयी। पर कहते हैं कि ऊंचाई पर पहुंचने से ज्यादा वहां बने रहने की चुनौती होती है, जो इस चुनौती का सामना नहीं कर पाता, वो अगले ही पल ऊंचाई से नीचे लुढ़क जाता है और तब जितनी अधिक ऊंचाई होती है, उतने ही नुकसान की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा लगता है मौजूदा मोदी सरकार के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है क्योंकि भले ही अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा नहीं हो, पर विश्वास भी अब पहले जैसा नहीं रहेगा और यही अविश्वास प्रस्ताव विरोधियों को एकजुट करने और उनमें जान फूंकने के लिए संजीवनी भी साबित होगी।

एक करोड़ की नौकरी छोड़ शिक्षा की अलख जगाने निकले हैं पूर्वांचल के सपूत 

मोदी सरकार के अभी चार साल पूरे होने में दो माह पांच दिन शेष है, उससे पहले सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने वाला है, हालांकि सोमवार को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं हो सका और मंगलवार तक के लिए लोकसभा और राज्यसभा स्थगित कर दी गई। पर सवाल अब ये उठता है कि आखिर इतने कम समय में ही सरकार के खिलाफ इतना अविश्वास पनपा क्यों? क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली पार्टी कुछ दिन पहले ही मोदी सरकार से तलाक लेकर अलग हुई है। जो अब दूसरा शौहर तलाश रही है ताकि अपनी जरूरतें भी पूरी कर सके और पहले शौहर को सबक भी सिखा सके।

...तो क्या अपनों ने ही योगी को हरवा दिया? 

अब यहां तकनीकी बारीकियों पर भी नजर डालना जरूरी हो जाता है। सबसे पहले तो ये समझना जरूरी है कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है? जब लोकसभा में किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सदन में सरकार अपना विश्वास खो चुकी है तो वह अविश्वास प्रस्ताव लाती है, अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विपक्षी पार्टी को कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है, तब लोकसभा अध्यक्ष द्वारा मंजूरी मिलने के बाद सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन को यह साबित करना होता है कि उसके पास सदन में जरूरी समर्थन प्राप्त है।

उपचुनाव: इन नतीजों से मोदी-योगी को सबक लेने की जरूरत 

अब आंकड़ों का गणित देखें तो लोकसभा में तेलगु देशम पार्टी के 16, YSR कांग्रेस के 9 , कांग्रेस के 48, AIADMK के 37, तृणमूल कांग्रेस के 34, BJD के 20, शिवसेना के 18, TRS के 11, CPM के 9, SP के 7, LJP और NCP के 6-6, RJD और RLSP के क्रमशः 4 और 3 सांसद हैं और AIMIM के एक सांसद हैं, ऐसे में ये सभी मिल जाएं तो संसद में अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी जरूर मिल जाएगी। हालांकि, चंद्र बाबू नायडू के इस मास्टर स्ट्रोक से बीजेपी को भी सबक लेते हुए सावधानी बरतनी पड़ेगी, नहीं तो उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा? लिहाजा अब बीजेपी को भी अपने सहयोगियों और अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का विश्वास हासिल करना होगा क्योंकि बड़ी से बड़ी नाव को डुबोने के लिए एक छोटा सा सुराग ही काफी होता है।

महिला दिवस विशेष: अगर ये न होतीं तो मैं न जाने कहां और क्या होता?

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के कमजोर हो रहे कुनबे पर यह अविश्वास प्रस्ताव कितना असर डालेगा? बीजेपी 2014 के आम चुनाव में कुल 284 सीटों पर जीत हासिल की थी, हालांकि अब भाजपा के कुल 275 सांसद हैं, जबकि अविश्वास प्रस्ताव खारिज करने के लिए महज 270 सांसदों का समर्थन चाहिए। हालांकि, एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह अविश्वास प्रस्ताव में भाग नहीं लेगी।

दरअसल, लोकसभा और राज्यसभा में बैंकिंग धोखाधड़ी और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग जैसे मुद्दों को लेकर पिछले कई दिनों से गतिरोध जारी है, हालांकि सरकार सदन में बजट के अलावा कुछ और विधेयकों को पारित करवाने में कामयाब रही है, जबकि सरकार अपनी साख बचाने में फिसड्डी साबित हो रही है। उपचुनाव के नतीजे भी सरकार की गिरती साख की गवाही दे रहे हैं।

इससे पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी केसरिया पगड़ी उतारकर लालटेन लेकर निकल पड़े, जबकि एमपी, राजस्थान, बिहार और यूपी में हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली करारी शिकस्त के बाद बिखराव की आशंका बढ़ गई है क्योंकि इस उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से उसका अभेद्य किला जो निकल गया है, गोरखपुर, फूलपुर में साइकिल ने कमल को रौंद दिया तो राजस्थान में भी हाथ ने कमल को मसल दिया, जिसके बाद से सहयोगी दलों को भी अपनी साख बचाने की चिंता सताने लगी है।

खबर है कि लोजपा सासंद चिराग पासवान ने बीजेपी को सहयोगी दलों के साथ बिखराव पर मंथन करने की सलाह दी है, उधर, केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की आरजेडी से नजदीकियों की भी खूब चर्चा हो रही है, जबकि टीडीपी सांसद केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी के खिलाफ सड़क पर आ गए हैं, शत्रुघ्न सिन्हा पहले से ही बागी बने बैठे हैं, खिलाफत के चलते सासंद कीर्ति आजाद को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है, महाराष्ट्र के बीजेपी सांसद नानाभाऊ पटोले भी कमल का साथ छोड़ हाथ से हाथ मिला लिए, ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव बीजेपी के खिलाफ गोलबंदी को और हवा दे सकता है।

Friday 16 March 2018

कांच की गुड़िया की एक व्यथा

मैं शीशा हूं मेरी इज्जत नहीं, दर्द नहीं मै सह पाऊं
जो लगे एक भी ठोकर मुझको, टूटकर बिखर जाऊं
जो तराश दे कोई मुझको, महफिल की रंगत बन जाऊं
किसी गले में-किसी भवन में, चेहरे का दर्पण बन जाऊं
हर महफिल की रंगत, शीशे बिना अधूरी मैं पाऊं
जाम भी तब छलकता है, जब मैं गिलास बन जाऊं
बन गिलास आऊं दुनिया में, हर महफिल की शान बढ़ाऊं
मयखानों में बीयरबारों में, बस मैं ही मैं पुकारा जाऊं
काम हजारों है मेरा, फिर भी कहीं न इज्जत पाऊं
ए इंसान समझ मेरा मोल, ताकि मैं भी इज्जत पाऊं
नहीं चाहता दर्द मैं देना, न मान तो तेरा लहू निकाल दिखाऊं
छोटा-बड़ा नहीं कोई जग में, इज्जत देता ताकि मैं भी इज्जत पाऊं
इतनी औकात हमारी है, बिन हीरे के मैं न काटा जाऊं
तू भी खुद को कहता इंसान, बिन मेरे सजकर दिखलाए
मेरे बिना संवरना मुश्किल, दम है तो दुनिया दिखलाए
मेरे बिन दुनिया अंधों की, इक दूजे का सौंदर्य बताएं
खुद की नजरों से ओझल चेहरा, चैन भला किसको आए
दिन में दस बार जो देखे चेहरा, बिन देखे कैसे रह पाए
धरती के हर इक प्राणी को, चेहरा देखन को तरसाऊं
किसी को दाग नजर न आए, मैं दर्पण बन दाग दिखाऊं
मैं शीशा हूं मेरी इज्जत नहीं, दर्द नहीं मैं सह पाऊं।

एक करोड़ की नौकरी छोड़ शिक्षा की अलख जगाने निकले हैं पूर्वांचल के सपूत

जुबां की दास्तां

जुबां की भी कितनी, अजीब दास्तां है

32 दांतों के बीच रहे, फिर भी डंक मारती है

उगले आग जुबां जब भी, तलवारें चल जाती हैं

जब जुबां मीठी बन जाए, बिगड़े काम बनाती है

तीखी पड़े जुबां जब-जब, सिर पर जूते पड़वाती है

जुबां-भेजा से हाथ मिलाए, तो कीर्तिमान बना जाए

दिल से बात निकलती जब भी, दूर तलक है जाती

निकले बात जुबां से जब-जब, हंगामा बरपाती

जुबां पर रहे नियंत्रण जिसके, चारो ओर मिले सम्मान

साथ छोड़ दे जुबां भी जब, किस्मत का रहे न कोई मान

तलवार जुबां जब बन जाए, रक्तरहित कत्ल कर जाए

न खून बहे न घाव दिखे, घुट-घुट कर इंसां मर जाए

जब भेद जुबां का खुल जाए, सबकी नजरों में गिर जाए।

Thursday 15 March 2018

...तो क्या अपनों ने ही योगी को हरवा दिया?

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के करीब तीन दशक पुराने अति सुरक्षित किले में बुआ-भतीजे की जोड़ी ने सेंध लगा दी और बीजेपी के सियासी सूरमा हाथ मलते रह गए, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की स्थिति 'काटो तो खून नहीं' जैसी हो गयी है, हालांकि ये जीत बे-जान पड़ी बसपा के लिए चिता पर पड़े शव में आग लगने से पहले धड़कने चलने जैसी रही, जबकि समाजवादियों की तो पूछो ही मत वो तो मारे खुशी के पागल हुए जा रहे हैं। वहीं कांग्रेस सपा-बसपा को जीत की बधाई देकर अपना दर्द छिपाने की कोशिश कर रही है और अंदर ही अंदर अपने फैसले पर पश्चाताप भी कर रही है क्योंकि इस जीत में शामिल होने से कांग्रेस को बीजेपी पर हमला करने का मौका मिल जाता। कांग्रेस इसे भी गवां दी। अब कांग्रेस, सपा-बसपा के लिए तालियां ही बजाती रहेगी या अपनी सियासी किस्मत चमकाने के लिए कोई अलादीन का चिराग ढूंढ़ कर लाएगी?
इस जीत की खुशी जितनी विपक्षी दलों में है, कमोबेश उतनी ही खुशी सत्ता पक्ष में भी है क्योंकि बीजेपी के कुछ नेताओं के गले में ये खुशी इस कदर अटकी पड़ी है, जिसका वे खुलकर न तो इजहार कर पा रहे हैं और न ही उसे पचा पा रहे हैं। कहते हैं निरंकुश राजा हो तो प्रजा निकम्मी हो जाती है, पर राजा तानाशाह हो जाए तो प्रजा को बागी बनने में देर नहीं लगती। ये दोनों उदाहरण तब और अब की सरकारों पर लागू होते हैं क्योंकि 2014 में मिले प्रचंड बहुमत के बाद बीजेपी में तानाशाही का युग आ गया, इसके पहले भी एक दौर था जब ये कहा जाता था कि इंदिरा इज इंडिया-इंडिया इज इंदिरा, खाता न बही जो केसरी कहें वही सही। केसरी कांग्रेस के लंबे समय तक कोषाध्यक्ष रहें और 3 जनवरी 1997 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिंह राव को रिप्लेस कर दिए थे। उससे पहले भी इंदिरा और राजीव का अहंकार भी सातवें आसमान पर रहा।

महिला दिवस विशेष: अगर ये न होतीं तो मैं न जाने कहां और क्या होता?

राजनीतिक पंडितों की मानें तो 2014 में प्रचंड बहुमत के साथ सत्तारूढ़ हुई बीजेपी एक संगठन के बदले एक व्यक्ति की पार्टी बनकर रह गई, तब से लेकर अब तक कमल का एक पत्ता भी बिना उसकी इजाजत के हिलता तक नहीं, यहां तक कि उसी अहंकार का नतीजा रहा कि जिन लोगों ने बीजेपी को खड़ा करने में अपना खून-पसीना बहाया था, वो अब हाथ जोड़कर अपने बुढ़ापे का सहारा मांग रहे है, ऐसे कई नेता हैं, जो इस कदर हाशिए पर हैं। आडवाणी हों, मुरली या यशवंत चाहे शत्रुघ्न हों, सब के सब हाशिए पर चल रहे हैं, जो हाशिए पर हैं, इस हार के बाद उनके मन में भी खुशी के लड्डू फूट रहे हैं, जबकि शत्रुघ्न ने तो अपनी कड़कती आवाज से एक ही झटके में बीजेपी को खामोश कर दिया क्योंकि उन्होंने ट्वीट कर साफ कर दिया कि अहंकार और अति आत्मविश्वास इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है। वहीं सुब्रमण्यम स्वामी ने तो यहां तक कह दिया कि अपनी सीट तक न बचा पाने वाले को इतना बड़ा पद देना लोकतंत्र में आत्महत्या करने जैसा है तो आजमगढ़ से सांसद रह चुके रमाकांत यादव ने कहा कि दलितों और पिछड़ों को नजरअंदाज करने से पार्टी का ये हस्र हुआ है।

एक करोड़ की नौकरी छोड़ शिक्षा की अलख जगाने निकले हैं पूर्वांचल के सपूत

हालांकि, उससे पहले योगी ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि अति आत्मविश्वास और विपक्ष की रणनीति समझने में हुई चूक हार का मुख्य कारण है, पर एक बात यहां समझना जरूरी है कि कहीं योगी खुद हार गए या हरवा दिए गए। अतीत के पन्नों को पलटने पर तो यही लगता है कि बीजेपी में योगी का बढ़ता कद पार्टी के कुछ नेताओं को रास नहीं आ रहा था, इसके पीछे एक वजह और भी हो सकती है कि वरिष्ठ नेता पहले ही मोदी के बढ़े हुए कद के सामने खुद को बौना महसूस कर रहे थे, ऐसे में उनके लिए एक और बोझ सहना बेहद नागवार लग रहा था, जिसके चलते बीजेपी का अति सुरक्षित किला एक ही झटके में जमींदोज हो गया और बीजेपी में योगी का कद भी घट गया, हालांकि केशव प्रसाद मौर्या के चेहरे की हवाइयां भले ही उड़ी हुई हैं, पर अंदर से तो उनके मन में भी लड्डू फूट रहे हैं क्योंकि अब उनकी सीट गयी तो योगी की कुर्सी पर भी खतरा मंडराने लगेगा, बस यही बात केशव के हारने के घाव पर मरहम का काम कर रहा है।

Wednesday 14 March 2018

उपचुनाव: इन नतीजों से मोदी-योगी को सबक लेने की जरूरत

उत्तर प्रदेश के बबुआ अखिलेश यादव साइकिल सहित बुआ की हाथी पर सवार क्या हुए, बीजेपी की रातों की नींद और दिन का चैन सब गायब हो गया क्योंकि बीजेपी के गढ़ में बुआ-भतीजा की जोड़ी ने कमल को खिलने से पहले ही इस कदर मसल दिया कि वहां अब फिर से कमल खिलाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा, वैसे इन नतीजों से बीजेपी को सबक लेने की जरूरत भी है क्योंकि सिर्फ लफ्फाजी से सरकार नहीं चलने वाली है, जब से बीजेपी की सरकार बनी है, चाहे वह केंद्र में हो या यूपी में सिर्फ फालतू के मुद्दों को हवा दिया जा रहा है, जिसका कोई सरोकार नहीं है, न सरकार के पास विकास का कोई पैरामीटर है और न ही मीडिया के पास सरकार को रास्ता दिखाने का कोई उपाय।
26 साल बाद गोरखपुर में बीजेपी का किला ढहना किसी बड़े पेड़ के गिरने से कम नहीं है क्योंकि बीजेपी के अति सुरक्षित गढ़ में समाजवादी पार्टी उस वक्त सेंध लगाई है, जब पूरे देश में बीजेपी की तूती बोल रही है, उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक सब भगवा ही भगवा नजर आ रहा है, ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ से उनकी खुद की सीट का उनके हाथ से निकलना जितना पार्टी को परेशान कर रहा है, उससे कहीं अधिक योगी आदित्यनाथ को क्योंकि ये नतीजे ही उत्तर प्रदेश सरकार के एक साल के कामकाज की गवाही दे रहे हैं कि उनकी सरकार जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरी है।
वहीं यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या भी खुद की साख नहीं बचा पाए, क्योंकि उनके किले को भी बुआ-भतीजा की जोड़ी ने ढहा दिया है, अब वो भी मुंह छिपाने की जुगत खोज रहे हैं, जिन्होंने यूपी चुनाव से पहले पार्टी की बागडोर अपने हाथों में ली थी और तब जीत के बाद उनकी खूब वाहवाही भी हुई थी, लेकिन एक साल के ही अंदर तिलिस्म का इस कदर टूट जाना उन्हें सबके सामने खामोश कर दिया है, हालांकि एक बात के लिए राहत उन्हें जरूर है कि अब उनकी कुर्सी को शायद ही खतरा हो क्योंकि यदि उनकी कुर्सी गई तो योगी आदित्यनाथ की कुर्सी भी जानी तय है, क्योंकि योगी तो बीजेपी के अति सुरक्षित जोन को भी सियासी दुश्मनों से नहीं बचा पाये।

...तो क्या अपनों ने ही योगी को हरवा दिया?

यूपी के बाद अब एक नजर बिहार पर भी डालते चलें क्योंकि वहां भी बीजेपी औंधे मुंह गिरी पड़ी है। बिहार के महागठबंधन में सेंध लगाकर लालू की पार्टी को सत्ता से बेदखल कर नीतीश के साथ सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुई बीजेपी बिहार में कमल खिलाने की जुगत में थी, पर बीजेपी का हाल तो वही हो गया कि आधी छोड़ के पूरी को धाये और पूरी के चक्कर में आधी भी जाये क्योंकि वहां आरजेडी इनके रास्ते का रोड़ा बन गयी और बीजेपी के सिपाही आरजेडी के किले में सेंध लगाने से रहे। अररिया से आरजेडी सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद यहां उपचुनाव के लिए मतदान हुआ था। जिसमें तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम ने बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप सिंह को ऐसी पटकनी दी कि वो जान बचाकर किसी तरह मैदान से भाग निकले।

महिला दिवस विशेष: अगर ये न होतीं तो मैं न जाने कहां और क्या होता?

वहीं भभुआ विधानसभा सीट को बीजेपी आरजेडी से छीनने में कामयाब रही, जबकि जहांनाबाद विधानसभा सीट पर आरजेडी ने अपना कब्जा बरकरार रखा है। हालांकि इसके पहले भी 14 साल से मध्यप्रदेश में शासन कर रही बीजेपी वहां के उपचुनावों में फिसड्डी साबित हुई, क्योंकि शिवराज सिंह और उनकी पार्टी पूरी ताकत लगाकर भी मुंगावली, कोलारस, चित्रकूट और अटेर में कमल नहीं खिला पाई थी।

Wednesday 7 March 2018

महिला दिवस विशेष: अगर ये न होतीं तो मैं न जाने कहां और क्या होता?

नारी, तुम्हारे किस रूप की व्याख्या करूं,
मां...
बहन...
पत्नी...
बेटी...
या फिर दोस्त...

नारी के बिना नर ही अधूरा नहीं, बल्कि ये संसार और समाज भी कभी पूरा नहीं हो सकेगा। यही वजह है कि नारी पूरे जीवन किसी न किसी रूप में साथ ही रहती है, बचपन में मां बनकर, उसके बाद बहन बनकर, फिर पत्नी बनकर हर कदम पर साथ निभाती है। इसके अलावा भी कुछ ऐसे रिश्ते हैं जो पुरूषों को नारी शक्ति होने का एहसास कराते रहते हैं, वैसे भी हर किसी के जीवन में महिला का योगदान पूरी उम्र रहता है बस समय के साथ रिश्तों में बदलाव आता रहता है।
ऐसा ही एक रिश्ता हमारे जीवन का भी टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। जब हमारी बड़ी बहन #manju_agrahari ने ये कहते हुए मुझसे सारे रुपए छीन लिये कि पाई-पाई का हिसाब रखो और जहां 1000 रुपए का काम हो वहां भी कटौती करके ही देना, उसके पीछे तर्क ये था कि 1000 के बदले 1100 देने पर भी उतना ही काम होगा और 900 देने पर भी वह काम रुकेगा नहीं। इस फॉर्मूले पर जो मैं आगे बढ़ा तो फिर कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। जीवन में कई ऐसे दौर भी आए हैं, जब नारी शक्ति ने मुझे खुद के होने का एहसास कराया है। मेरी मझली बहन #parvati का भी कम योगदान नहीं रहा। 

एक करोड़ की नौकरी छोड़ शिक्षा की अलख जगाने निकले हैं पूर्वांचल के सपूत 

कहते हैं कि बहन से बड़ा कोई शुभचिंतक नहीं होता, ये लाइन मेरी छोटी बहन +Priyanka Gupta पर बिल्कुल सटीक बैठती है क्योंकि जब भी मैं देर रात घर लौटता था, मेरी आवाज सुनते ही उसकी नींद उड़न-छू हो जाती थी, वैसे तो मां-पिताजी चिल्लाते रहें पर उसकी नींद तो कुंभकर्ण से भी गहरी थी, जो खुलने का नाम नहीं लेती, पर मेरी आवाज कानों में पड़ते ही अगले पल वह किचन में नजर आती, रात चाहे कितनी ही क्यों न बीत गई हो, खाना है तो ठीक नहीं तो खाना पकाना शुरू। हालांकि, मेरा भी जब घर जाना होता था तो मैं खाना घर पर ही खाता था, मेरी बहन को ये बात पता थी, इसके अलावा भी वह हर चीज पर नजर रखती थी, जैसे कपड़ा साफ करना और प्रेस करना। हां, एक आदत उसकी और भी थी, जो मुझे बहुत प्रभावित करती थी, मैं जब भी परदेस जाता, मेरे किसी पैंट या शर्ट की जेब में जो भी उसके पास रुपए होते थे वह उसमें चुपके से रख देती थी, जो कई बार मेरे मुश्किल दौर में काम आता था और हां, एक मेरी छोटी बहन ही है जो मेरे चेहरे को ठीक से पढ़ पाती है। बाकी तो अब तक कोई भी नहीं पढ़ सका, यहां तक की मेरी मां और मेरी अर्धांगिनी भी नहीं।

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इस बीच 10 दिसंबर 2013 को जिंदगी की एक नई शुरूआत हुई, जब 'MY BETTER HALF' #jyoti मेरे जीवन में उजाला बनकर आई और हमेशा के लिए मेरी बनकर रह गई, तब से थोड़ी-बहुत नोक-झोक के बीच जिंदगी की गाड़ी पटरी पर दौड़ रही है और अब तो एक बेटी भी है जोकि ढाई साल की हो चुकी है। हालांकि, पत्नी कभी उतनी याद नहीं आती थी, जितनी बेटी याद आती है, कभी-कभार तो ऐसा लगता है कि पैसा कमाने के चक्कर में बहुत कुछ गवां दे रहा हूं और जो गवां रहा हूं, उसे बाद में कमा भी नहीं सकता क्योंकि बेटी का न तो बचपन देख पा रहा हूं और न ही उसे बड़ा होते देख पा रहा, न उसे सीने से लगाकर उसके सिर पर हाथ फेर पा रहा हूं, 4-6 महीने में 15 दिन की छुट्टी मिल भी जाती है तो चार दिन आने-जाने में गुजर जाते हैं और जब तक बेटी घुलना-मिलना शुरू करती है, तब तक काम पर लौटने का वक्त हो जाता है, जिससे उसे बाप का प्यार भी नसीब नहीं हो पा रहा है। हां, जरूरतें उसकी बेशक पूरी हो रही हैं, लेकिन खुशियों की कीमत पर।

गाजियाबाद में जब पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था, उस वक्त महिला सहपाठियों का भी योगदान कम नहीं रहा क्योंकि तब तक मैं मनोरंजन की दुनिया से अनजान था, तब मेरी महिला सहपाठियों ने मुझे मनोरंजन की दुनिया से रूबरू कराया और मैं भी फिल्में देखने और गाने सुनने में दिलचस्पी दिखाने लगा। हालांकि सभी सहपाठियों से अच्छी मित्रता भी रही, पर +Deepika Mishra ने तो मुझसे किसी को नहीं रोकने-टोकने की कसम दिला दी क्योंकि मेरी आदत थी बात-बात पर रोकने-टोकने की। जो हर किसी को अच्छा नहीं लगता था, तब दीपिका ने कहा था कि जो तुम्हारी बातों पर अमल करे, उसे ही बोलो, बाकी को जाने दो।

इसके अलावा क्रिसमस-डे पर +Chhavy Singh ने जो गिफ्ट दिया था, उस पैकिंग पर लिखा संदेश आज भी मेरी डायरी में पड़ा है। गाहे-बगाहें उस पर नजर पड़ ही जाती है, जो बरबस ही पुराने दिनों की याद दिला देता है। इसके अलावा भी एक महिला मित्र है, जिसके नाम का मैं यहां जिक्र नहीं कर सकता। पर हां उसको कभी भूल भी नहीं सकता क्योंकि जब मैं पूरा देहाती था, तब उसने हमे शहरी बनाने की जिद की थी, तब मैं पहली बार जींस और टी-शर्ट पहना था। जिसे वह मेरे लिए खरीद कर लाई थी।

उसके अलावा मेरे दोस्त की पत्नी #pratima_gupta ने पहली मुलाकात में शिक्षा को लेकर इस कदर पूछ-परख की कि सारी हेकड़ी अगले पल गायब हो गयी क्योंकि प्रतिमा से हम तीन दोस्तों की पहली मुलाकात थी और पहली ही मुलाकात शायद किसी इंटरव्यू से कम नहीं था, तब हम लोगों ने फिर ठान लिया कि अब पढ़ाई आगे भी करनी है, नहीं तो शिक्षा के बिना अपना संसार अधूरा रह जाएगा और हमने फिर से कोशिशें शुरू की और स्व-रोजगार के साथ ही शिक्षा के लिए प्रयासरत रहने लगा, तब जाकर सरकारी कॉलेज में पत्रकारिता के कोर्स में दाखिला मिल पाया और पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से शुरू सफर अब (ईटीवी भारत) की डिजिटल दुनिया तक पहुंच गया है, जहां पिछले दो साल से अधिक समय बीत चुका है। आगे का सफर भी अभी हैदराबाद में ही जारी है।

दोस्त तो कई और भी मिले क्योंकि 22 साल से परदेसी बने रहने का सिलसिला जो जारी है, इस दौरान साल के साथ-साथ कई शहर भी बदले, लोग मिले भी, बिछडे़ भी, जिसमें से कुछ आज भी दिल में बसते हैं, उनमें से कुछ की कहानी भी ऐसी है जो कभी जेहन से निकल ही नहीं सकती, ऐसे में गुड़गांव में मुलाकात हुई #anamika_pandey से और हैदराबाद में मिली #neelam_tripathi। दोनों की उम्र हमसे तो कम ही है, पर उनकी कुछ कहानियों का मेरे उपर गहरा असर पड़ा।

नारी से नर होत हैं, नारी नर की खान।
नारी से ही जनम लेत हैं भक्त और भगवान।।

हालांकि 5वीं क्लास से ही मेरा संघर्ष शुरू हुआ और 9वीं के बाद घर छोड़ना पड़ गया, जिंदगी का ये सफर अविभाजित बिहार के पाकुड़ जिले से मार्च 1997 से शुरू होकर कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, नोएडा, ग्वालियर, भोपाल, राजपुरा (पंजाब), रोहतक (हरियाणा), गुड़गांव होते हुए अब हैदराबाद पहुंच गया है। इस दौरान भी कई अच्छे-बुरे लोग मिले, जिनमें से कुछ यादें तो सांसों के साथ ही खत्म होगी। पर कुछ यादें ऐसी भी हैं जिसने जिंदगी को और आसान कर दिया।
आठ मार्च (बुधवार) को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है, ये दिन महिलाओं के सम्मान को समर्पित है,  सन 1908 में 15,000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क सिटी वोटिंग अधिकारों, बेहतर वेतन और काम के घंटे कम करने की मांग को लेकर मार्च निकाला, जिसके एक साल बाद अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी ने सन 1909 में 28 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। जिसे सन 1910 को कोपनहेगन में मनाया गया। सन 1911 को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। मताधिकार, सरकारी कार्यालयों और नौकरी में भेदभाव को खत्म करने जैसे कई मुद्दों की मांग को लेकर इस दिन का आयोजन किया जाता है।