15 साल बाद दिल्ली
में कांग्रेस का सिंहासन
क्या दरका...? पार्टी का अपने भरोसेमंद
नेताओं पर भरोसा
नहीं रहा..दिल्ली
पर 15 साल तक एकछत्र
राज करने वाली शीला अब अपने सियासी
बुढापे पर जा पहुंची
हैं...एक लंबे अरसे तक पार्टी
की सेवा करने वाली शीला ने दिल्ली
को ही नहीं चमकाया...बल्कि
दिल्ली में कांग्रेस
की जड़ें इतनी मजबूत
कर दी जिसे उखाड़ना
नामुमकिन था...लेकिन
यूपीए की करनी का खामियाजा
शीला को भुगतना
पड़ा..और 2013 विधानसभा
चुनावों में कांग्रेस
को मुंह की खानी पड़ी...जिससे
दिल्ली का राज कांग्रेस
के हाथ से फिसल गया...राजनीतिक
पंडितों की मानें तो शीला को लेकर भी कांग्रेस
में दो गुट है...एक शीला की सियासत
में वापसी चाहता
है...तो दूसरा
शीला से दूरी...उसका तर्क है कि गत चुनावों
में शीला के नेतृत्व
में चुनाव लड़ने
का खामियाजा पार्टी
को हार के रुप में झेलना
पड़ा है...लेकिन
इस चुनाव को लेकर दिल्ली
की पूर्व मुख्यमंत्री
शीला दीक्षित को अभी तक पार्टी
की तरफ से किसी भूमिका
के लिए अवगत नहीं कराया
गया है...
जबकि दिल्ली
कांग्रेस के नेता मुकेश
शर्मा ने कहा है कि शीला पार्टी
की वरिष्ठ नेता हैं...वो चाहें
तो पार्टी के लिए प्रचार
कर सकती हैं...शर्मा
के बयान से ऐसा लगता है कि पार्टी
शीला को खास तवज्जो
नहीं देने वाली है...
इसकी एक बानगी
उस वक्त देखने
को मिली जब...दिल्ली
कांग्रेस ने आगामी
चुनावों के मद्देनजर
8 लोगों की कमेटी
बनाई...जिसमें चौंकाने
वाली बात ये रही कि उस कमेटी
से शीला का नाम गायब रहा...तो वहीं 1984 में सिखों का कत्लेआम करवाने के आरोपी सज्जन
कुमार और जगदीश
टाइटलर का नाम था...जैसे ही ये खबर सामने
आई...सियासी गलियारे
में कोहराम मच गया..और आनन फानन में कांग्रेस
को समिति के गठन से पलटना
पड़ा...
कहते हैं कि जब इंसान मजबूत होता है तो लोग उसके साथ होते हैं और जब वो मजबूर होता है तो उसके अपने भी साथ छोड़ जाते हैं...शीला भी अपने जीवन के बुढ़ापे के साथ साथ सियासी बुढ़ापे के दौर से गुजर रही हैं...तो कांग्रेस उनसे दूरी बना रही है...लेकिन कहते हैं जब पेड़ बूढ़ा हो जाता है तो फल नहीं देता लेकिन छांव जरूर देता है..ये बात कांग्रेस को समझना चाहिए...
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