दिल्ली
विधानसभा भंग...सत्ता के लिए शुरू हुई जंग...दिल्ली में पिछले कई महीनों से चल रहा
सियासी ड्रामा अब खत्म हो गया है...जबकि 3 विधानसभा सीटों पर होने वाला उपचुनाव भी
रद्द कर दिया गया है...अब ज्यादा से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमाने के रास्तों की
तलाश शुरू हो गयी है...चुनाव आयोग का शंखनाद अभी बाकी है...लेकिन चुनावी दरबार
सजने लगे है...सभी दल पूरी तरह से तैयार हैं...शह और मात के खेल में आरोपों की
बौछार भी हो रही है...हर कोई अपने गिरेबान में झांकने की बजाय दूसरों को नसीहत दे
रहा है...
अरविंद
केजरीवाल ने बेजेपी पर मुख्यमंत्री का दावेदार नहीं घोषित करने के पीछे आम आदमी
पार्टी का डर बता रहे हैं तो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय मनीष सिसौदिया
को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताकर फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं...जबकि पूर्व
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित केजरीवाल के अनुभव पर सवाल उठा रही हैं..जिससे तिलमिलाई
आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसौदिया ने दोनों पार्टियों को दुखियारी बताते हुए
व्यंग कसा कि पूर्व में उन्हे मिलकर सरकार बनानी चाहिए थी कोई रोक भी नहीं रहा
था...
चुनवी
दंगल का शंखनाद होना अभी बाकी है...अब तक के गौड़ मुद्दे फिर कब्र से निकाले
जाएंगे...बड़े बड़े वादे किए जाएंगे...नए नए मुद्दों के साथ घोषणापत्रों की पेशकश
होगी...लेकिन सबसे दिलचस्प है कि कोई मुद्दा इस बार के चुनाव में गूंजे या ना
गूंजे लेकिन 1984 में सिखों के कत्लेआम के चिताओं की आग जरूर भड़केगी...सभी दल एक
दूसरे के चेहरे पर कालिख पोतने को आतुर हैं...अब चुनाव आयोग के ऐलान के बाद जनता
तय करेगी कि कौन बनेगा दिल्ली के सिंहासन का सरताज...
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