जुबां की दास्तां
जुबां की भी कितनी, अजीब दास्तां है
32 दांतों के बीच रहे, फिर भी डंक मारती है
उगले आग जुबां जब भी, तलवारें चल जाती हैं
जब जुबां मीठी बन जाए, बिगड़े काम बनाती है
तीखी पड़े जुबां जब-जब, सिर पर जूते पड़वाती है
जुबां-भेजा से हाथ मिलाए, तो कीर्तिमान बना जाए
दिल से बात निकलती जब भी, दूर तलक है जाती
निकले बात जुबां से जब-जब, हंगामा बरपाती
जुबां पर रहे नियंत्रण जिसके, चारो ओर मिले सम्मान
साथ छोड़ दे जुबां भी जब, किस्मत का रहे न कोई मान
तलवार जुबां जब बन जाए, रक्तरहित कत्ल कर जाए
न खून बहे न घाव दिखे, घुट-घुट कर इंसां मर जाए
जब भेद जुबां का खुल जाए, सबकी नजरों में गिर जाए।
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