उत्तर प्रदेश के बबुआ अखिलेश यादव साइकिल सहित बुआ की हाथी पर सवार क्या हुए, बीजेपी की रातों की नींद और दिन का चैन सब गायब हो गया क्योंकि बीजेपी के गढ़ में बुआ-भतीजा की जोड़ी ने कमल को खिलने से पहले ही इस कदर मसल दिया कि वहां अब फिर से कमल खिलाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा, वैसे इन नतीजों से बीजेपी को सबक लेने की जरूरत भी है क्योंकि सिर्फ लफ्फाजी से सरकार नहीं चलने वाली है, जब से बीजेपी की सरकार बनी है, चाहे वह केंद्र में हो या यूपी में सिर्फ फालतू के मुद्दों को हवा दिया जा रहा है, जिसका कोई सरोकार नहीं है, न सरकार के पास विकास का कोई पैरामीटर है और न ही मीडिया के पास सरकार को रास्ता दिखाने का कोई उपाय।
26 साल बाद गोरखपुर में बीजेपी का किला ढहना किसी बड़े पेड़ के गिरने से कम नहीं है क्योंकि बीजेपी के अति सुरक्षित गढ़ में समाजवादी पार्टी उस वक्त सेंध लगाई है, जब पूरे देश में बीजेपी की तूती बोल रही है, उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक सब भगवा ही भगवा नजर आ रहा है, ऐसे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ से उनकी खुद की सीट का उनके हाथ से निकलना जितना पार्टी को परेशान कर रहा है, उससे कहीं अधिक योगी आदित्यनाथ को क्योंकि ये नतीजे ही उत्तर प्रदेश सरकार के एक साल के कामकाज की गवाही दे रहे हैं कि उनकी सरकार जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरी है।
वहीं यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या भी खुद की साख नहीं बचा पाए, क्योंकि उनके किले को भी बुआ-भतीजा की जोड़ी ने ढहा दिया है, अब वो भी मुंह छिपाने की जुगत खोज रहे हैं, जिन्होंने यूपी चुनाव से पहले पार्टी की बागडोर अपने हाथों में ली थी और तब जीत के बाद उनकी खूब वाहवाही भी हुई थी, लेकिन एक साल के ही अंदर तिलिस्म का इस कदर टूट जाना उन्हें सबके सामने खामोश कर दिया है, हालांकि एक बात के लिए राहत उन्हें जरूर है कि अब उनकी कुर्सी को शायद ही खतरा हो क्योंकि यदि उनकी कुर्सी गई तो योगी आदित्यनाथ की कुर्सी भी जानी तय है, क्योंकि योगी तो बीजेपी के अति सुरक्षित जोन को भी सियासी दुश्मनों से नहीं बचा पाये।
...तो क्या अपनों ने ही योगी को हरवा दिया?
यूपी के बाद अब एक नजर बिहार पर भी डालते चलें क्योंकि वहां भी बीजेपी औंधे मुंह गिरी पड़ी है। बिहार के महागठबंधन में सेंध लगाकर लालू की पार्टी को सत्ता से बेदखल कर नीतीश के साथ सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुई बीजेपी बिहार में कमल खिलाने की जुगत में थी, पर बीजेपी का हाल तो वही हो गया कि आधी छोड़ के पूरी को धाये और पूरी के चक्कर में आधी भी जाये क्योंकि वहां आरजेडी इनके रास्ते का रोड़ा बन गयी और बीजेपी के सिपाही आरजेडी के किले में सेंध लगाने से रहे। अररिया से आरजेडी सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद यहां उपचुनाव के लिए मतदान हुआ था। जिसमें तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम ने बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप सिंह को ऐसी पटकनी दी कि वो जान बचाकर किसी तरह मैदान से भाग निकले।
महिला दिवस विशेष: अगर ये न होतीं तो मैं न जाने कहां और क्या होता?
वहीं भभुआ विधानसभा सीट को बीजेपी आरजेडी से छीनने में कामयाब रही, जबकि जहांनाबाद विधानसभा सीट पर आरजेडी ने अपना कब्जा बरकरार रखा है। हालांकि इसके पहले भी 14 साल से मध्यप्रदेश में शासन कर रही बीजेपी वहां के उपचुनावों में फिसड्डी साबित हुई, क्योंकि शिवराज सिंह और उनकी पार्टी पूरी ताकत लगाकर भी मुंगावली, कोलारस, चित्रकूट और अटेर में कमल नहीं खिला पाई थी।
वहीं यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या भी खुद की साख नहीं बचा पाए, क्योंकि उनके किले को भी बुआ-भतीजा की जोड़ी ने ढहा दिया है, अब वो भी मुंह छिपाने की जुगत खोज रहे हैं, जिन्होंने यूपी चुनाव से पहले पार्टी की बागडोर अपने हाथों में ली थी और तब जीत के बाद उनकी खूब वाहवाही भी हुई थी, लेकिन एक साल के ही अंदर तिलिस्म का इस कदर टूट जाना उन्हें सबके सामने खामोश कर दिया है, हालांकि एक बात के लिए राहत उन्हें जरूर है कि अब उनकी कुर्सी को शायद ही खतरा हो क्योंकि यदि उनकी कुर्सी गई तो योगी आदित्यनाथ की कुर्सी भी जानी तय है, क्योंकि योगी तो बीजेपी के अति सुरक्षित जोन को भी सियासी दुश्मनों से नहीं बचा पाये।
...तो क्या अपनों ने ही योगी को हरवा दिया?
यूपी के बाद अब एक नजर बिहार पर भी डालते चलें क्योंकि वहां भी बीजेपी औंधे मुंह गिरी पड़ी है। बिहार के महागठबंधन में सेंध लगाकर लालू की पार्टी को सत्ता से बेदखल कर नीतीश के साथ सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुई बीजेपी बिहार में कमल खिलाने की जुगत में थी, पर बीजेपी का हाल तो वही हो गया कि आधी छोड़ के पूरी को धाये और पूरी के चक्कर में आधी भी जाये क्योंकि वहां आरजेडी इनके रास्ते का रोड़ा बन गयी और बीजेपी के सिपाही आरजेडी के किले में सेंध लगाने से रहे। अररिया से आरजेडी सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद यहां उपचुनाव के लिए मतदान हुआ था। जिसमें तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम ने बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप सिंह को ऐसी पटकनी दी कि वो जान बचाकर किसी तरह मैदान से भाग निकले।
महिला दिवस विशेष: अगर ये न होतीं तो मैं न जाने कहां और क्या होता?
वहीं भभुआ विधानसभा सीट को बीजेपी आरजेडी से छीनने में कामयाब रही, जबकि जहांनाबाद विधानसभा सीट पर आरजेडी ने अपना कब्जा बरकरार रखा है। हालांकि इसके पहले भी 14 साल से मध्यप्रदेश में शासन कर रही बीजेपी वहां के उपचुनावों में फिसड्डी साबित हुई, क्योंकि शिवराज सिंह और उनकी पार्टी पूरी ताकत लगाकर भी मुंगावली, कोलारस, चित्रकूट और अटेर में कमल नहीं खिला पाई थी।
Good
ReplyDeleteअब भी सोचने की जरूरत है बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को वरना देश की सत्ता से भी बाहर होने की संभावना प्रबल होती नजर आ रही है।
ReplyDeleteअब भी सोचने की जरूरत है बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को वरना देश की सत्ता से भी बाहर होने की संभावना प्रबल होती नजर आ रही है।
ReplyDelete