Search This Blog

Tuesday 29 July 2014

कुनबे में कलह

लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस कोमा में पहुंच गयी है। जिससे चलते अभी तक न अपनी दिशा तय कर पायी है और न ही दशा सुधारने के कोई ठोस उपाय कर पायी है। दस साल तक सत्‍ता में रहने वाली राष्‍ट्रीय पार्टी के लिए लोकसभा चुनावों में इतने कम आंकड़े पर सिमटना किसी पक्षाघात से कम नहीं है। सोनिया गांधी अभी तक कोपभवन से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। तो हतोत्साहित राहुल गांधी उहापोह में हैं। कि पार्टी के अंदर उठ रहे बगावत के सुर को कुचल दें या फिर नई ऊर्जा के साथ पार्टी को नया नेतृत्व दें। अपने परायों जैसा व्यवहार करने लगे तो विरोधी भी बांह मरोड़ने पर आमादा हैं। ऐसी स्थिति का सामना इससे पहले स्वर्गीय इंदिरा गांधी को भी ऐसी बगावत का सामना करना पड़ा था। लेकिन इंदिरा ने बगावत को कुचल कर पार्टी को नया जीवन दिया। सीताराम केसरी ने जब कांग्रेस की कमान सोनिया को सौंपी थी। तब किसी ने ये नहीं सोचा था कि सोनिया कांग्रेस को शिखर पर पहुंचा देगी लेकिन अब कांग्रेस की स्थित आसमान से गिरे खजूर पर अटके वाली है। इंदिरा या सोनिया को बीमार कांग्रेस का सामना नहीं करना पड़ा था। निश्चित तौर पर राहुल गांधी के लिए एक चुनौती है कि कैसे वो कब्र में पड़ी कांग्रेस को जीवनदान देते हैं। ये सत्‍ता का खेल है। आज के दौर में सियासत के व्याकरण का पहला फार्मूला सत्‍ता के साथ चिपके रहना होता है। एक बार आप सत्‍ता से बाहर हुए नहीं कि अपने भी पराये होने लगते है। कहते हैं न कि नाकामयाबी हमेशा अनाथ होती है जबकि सफलता के हजार बाप पैदा हो जाते हैं। कांग्रेस को अपनी सेहत सुधारना सिर्फ पार्टी के लिए ही नहीं बल्कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी आवश्‍यक है। देश की संसद विपक्ष के नेता के बिना सूनी है। क्षेत्रीय दलों में वो कुव्वत नहीं है कि वो बीजेपी का सामना कर सके। ऐसी परिस्थिति में एक मजबूत और ऊर्जावान राष्‍ट्रीय पार्टी की जरूरत को नकारा नहीं जा सकता। अपनी पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए कांग्रेस इस जरूरत को पूरा कर सकती है। इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, के अलावा असम में बगावत की आग सुलग रही है। महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री नारायण राणे ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। जबकि असम के शिक्षा मंत्री  डॉ. हेमंत शर्मा 32 विधायकों के साथ इस्तीफा दे दिये। हरियाणा के बिजली मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिये। राज्यसभा सांसद बीरेंद्र सिंह भी बगावत के मूड में हैं। जम्मू के पूर्व सांसद ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस की नैया मझधार में हिचकोले खा रही है। और सहयोगी अपनी अपनी नाव लेकर किनारे पहुंचने को बेताब है।

No comments:

Post a Comment