वह शाम भी कितनी हसीन थी, मैं भी बहुत उत्साहित था क्योंकि एक दोस्त से मुलाकात जो होनी थी। घड़ी पर बार-बार नजरें टिकती और मैं जल्दी-जल्दी समय बीतने का इंतजार करता, पर समय तो जैसे बीत ही नहीं रहा था। हालांकि, कुछ देर बाद इंतजार खत्म हुआ और दोस्त से मुलाकात हुई, करीब 1.30 घंटे बाद जब वापस जाने लगा, तभी एक लड़की को फोन किया, जिससे कुछ दिन पहले ही मुलाकात हुई थी, शाम का वक्त था, लिहाजा वह भी अपने घर पर थी, पर दर्द से कराह रही थी, इस वजह से सोचा मिलता चलूं, जबकि वह खाना बनाना तो दूर किचन तक जा भी नहीं सकती थी, पर किसी के आ जाने की आहट मिलते ही वह उठकर बैठ गयी और अगले ही पल उसका आलस खर्राटे भरने लगा और वह सीधा किचन में जाकर कुछ पकाने लगी, अमूमन ऐसा सिर्फ मां ही कर सकती है क्योंकि बच्चों का पेट भरे बिना मां का पेट कभी भरता नहीं, मां जब तक अपने बच्चे को अपने सीने से नहीं लगाती, तब तक वह उसे सुरक्षित महसूस नहीं करती और बच्चे को भी मां का वो आंचल पूरे ब्रह्माण्ड से प्यारा लगता है। हालांकि, जितनी देर तक वह खाना बनाती रही, उतनी देर तक वह उसी के आसपास टहलता रहा क्योंकि वहां बैठने की कोई जगह नहीं थी, जो जगह थी, वहां बैठना मुश्किल था क्योंकि टाइट कपड़ों से कसे बदन में जमीन पर बैठना एवरेस्ट फतह करने से कम नहीं था।
इसी वजह से वह उससे बातें करता रहा और वह खाना बनाती रही, करीब 45 मिनट बाद खाना बनकर तैयार हो गया, तभी उसने उससे कहा कि खाना खा लो, पर वह उसके साथ कुछ और समय बिताना चाहता था, इस वजह से भोजन में देरी कर रहा था, जबकि समय के साथ-साथ आशंकाएं भी बढ़ती जा रही थी कि अकेली लड़की की मौजूदगी में घर में किसी अनजान लड़के को देखकर लोग न जाने क्या-क्या सोच बैठेंगे। इस वजह से जल्दी ही खाना खा लिया। अब उससे विदा लेने की बारी थी, पर वह जाना नहीं चाहता था, वह बार-बार रुकने की कोशिश कर रहा था क्योंकि वह उसके चेहरे को पढ़ना चाहता था, जो दर्द उसके चेहरे पर साफ तौर पर झलक रहा था, लेकिन उसको नहीं पता था कि वह उसके चेहरे का दर्द पढ़ रहा है, बार-बार वह उसको पुराने खयालों में ले जाता ताकि वो अपना दर्द उससे बांट ले, पर वो तो ममता और समर्पण की मूरत थी।
जिसे देखकर उसका दर्द आदि सब गायब हुआ था, वो उसका बहुत करीबी भी नहीं था, बस एक साधारण सी मुलाकात हुई थी, जिसमें थोड़ी-बहुत बातचीत हुई थी, जिससे एक बात तय हो गयी थी कि दोनों एक ही परिस्थिति के मारे थे, दोनों का दर्द कमोबेश एक जैसा ही था, यही वजह थी कि दोनों कम समय में ही एक दूसरे के करीब आ गये, फिर भी जितनी दूरी बची थी वो किसी खाईं से कम नहीं थी क्योंकि दोनों का दर्द एक होने का ये मतलब नहीं कि आप बिना आधार के कुछ भी अनुमान लगाने लगें। दर्द एक सा होने के बावजूद दोनों की सोच बिल्कुल अलग थी, वह असमंजस में थी कुछ कह नहीं पाती थी इस डर से कि मैंने अपनी परेशानियों का जिक्र तो कर दिया, जिसके चलते मुझे डूबते वक्त एक तिनका मिला है, उसी के सहारे मैं खुद को डूबने से बचा सकती हूं, पर मेरे दिल-दिमाग की स्थिति महासागर से उठती गिरती ऊंची-ऊंची लहरों जैसी हो रही है, यदि उसका जिक्र गलती से भी मेरी जुबां पर आया तो ये सहारा भी मुझसे छिन जायेगा। बस यही बात समझने की वह कोशिश करता रहा और वह छिपाने की। करीब एक घंटे की मुलाकात में दोनों कुछ न कुछ छिपाते रहे, लेकिन वह तो उतनी देर में उसके मन की बात पढ़ लिया। जिसे वह उससे छुपा रही थी।
उससे विदा लेने के बाद वह और ज्यादा बेचैन हो उठा क्योंकि उस वक्त तक वह उसके दिल-दिमाग को पढ़ लिया था, फिर खुद को वह मजबूत किया और सोशल मीडिया के जरिए उसको संदेश भेजा कि मैंने तुम्हारे चेहरे का दर्द पढ़ लिया है और तुम्हारे दिल-दिमाग में चल रही हर उलझन को भी समझने का प्रयास किया। जहां तक मैं समझ पाया हूं कि तुम मजबूरीवश मेरी हां में हां मिलाती हो, पर हकीकत तो ये है कि साथ छोड़ना भी नहीं चाहती। तुम्हारे मन में जो कुछ भी हो, बेझिझक कह सकती हो, मैं तुम्हारा दोस्त हूं, कोई किराये का हमदर्द नहीं। तुम्हारी खुशियों के लिए मैं अपनी खुशियां कुर्बान करने को तैयार हूं, बस एक बार कहकर तो देखो, तुम्हारी हर खुशी के लिए मैं पूरी जान लगा दूंगा। तुम किसी और को चाहो, किसी से भी दोस्ती करो, उसके लिए भी मैं तुम्हे कभी नहीं रोकूंगा। पर इसके साथ ही उसके मन-मस्तिष्क में एक बात और गूंज रही थी कि आखिर उस रोटी का कर्ज भी तो चुकाना पड़ेगा, जिसे वह सिर्फ उसके लिए बनाई थी, वो भी उस हाल में जब वह खुद अपने लिए नहीं बना सकी थी, उसके इसी बेबाक और निःस्वार्थ समर्पण ने उसका दिल जीत लिया और उसे उसका कर्जदार भी बना दिया।
उस कर्ज के चलते उसके कदम भी थमने लगे थे, वह तो महज इत्तेफाक था जो वह उसके पास चला गया था क्योंकि वह भी शाम के वक्त उसी के घर के करीब से एक दोस्त से मिलकर लौट रहा था, वहां से जब वह खाली हुआ तो काफी वक्त हो चुका था, फिर भी वह उसे फोन किया, तब पता चला कि वह घर पर तो है, पर सो रही है, क्योंकि उसे तबीयत कुछ नासाज लग रही थी, तभी वह उससे कहा कि ठीक है तुम आराम करो, वो तो मैं इधर से गुजर रहा था, इस वजह से फोन कर लिया, तभी उसने कहा कि नहीं...नहीं...आ जाओ मैं कमरे पर ही हूं, पर मैने कहा कि मैं अभी खाना भी नहीं खाया हूं, तो उसने जवाब दिया कि आ जाओ मैं आपको खाना खिलाती हूं, पर मैंने पूछा कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तो खाना कैसे बनाओगी तो उसने कहा कि तुम तो बस आ जाओ मैं फटाफट खाना तैयार कर दूंगी। फिर मुझे लगा कि वह इतने प्यार से बुला रही है तो जाना चाहिए और मैं उसके पास गया तो दरवाजा नोक किया, दूसरी बार नोक किया तो वह दरवाजा खोलते हुए मुझे अंदर आने का इशारा की और मैं कमरे में दाखिल हुआ, फिर अगले ही पल गप्पेबाजी शुरू।
इसी वजह से वह उससे बातें करता रहा और वह खाना बनाती रही, करीब 45 मिनट बाद खाना बनकर तैयार हो गया, तभी उसने उससे कहा कि खाना खा लो, पर वह उसके साथ कुछ और समय बिताना चाहता था, इस वजह से भोजन में देरी कर रहा था, जबकि समय के साथ-साथ आशंकाएं भी बढ़ती जा रही थी कि अकेली लड़की की मौजूदगी में घर में किसी अनजान लड़के को देखकर लोग न जाने क्या-क्या सोच बैठेंगे। इस वजह से जल्दी ही खाना खा लिया। अब उससे विदा लेने की बारी थी, पर वह जाना नहीं चाहता था, वह बार-बार रुकने की कोशिश कर रहा था क्योंकि वह उसके चेहरे को पढ़ना चाहता था, जो दर्द उसके चेहरे पर साफ तौर पर झलक रहा था, लेकिन उसको नहीं पता था कि वह उसके चेहरे का दर्द पढ़ रहा है, बार-बार वह उसको पुराने खयालों में ले जाता ताकि वो अपना दर्द उससे बांट ले, पर वो तो ममता और समर्पण की मूरत थी।
जिसे देखकर उसका दर्द आदि सब गायब हुआ था, वो उसका बहुत करीबी भी नहीं था, बस एक साधारण सी मुलाकात हुई थी, जिसमें थोड़ी-बहुत बातचीत हुई थी, जिससे एक बात तय हो गयी थी कि दोनों एक ही परिस्थिति के मारे थे, दोनों का दर्द कमोबेश एक जैसा ही था, यही वजह थी कि दोनों कम समय में ही एक दूसरे के करीब आ गये, फिर भी जितनी दूरी बची थी वो किसी खाईं से कम नहीं थी क्योंकि दोनों का दर्द एक होने का ये मतलब नहीं कि आप बिना आधार के कुछ भी अनुमान लगाने लगें। दर्द एक सा होने के बावजूद दोनों की सोच बिल्कुल अलग थी, वह असमंजस में थी कुछ कह नहीं पाती थी इस डर से कि मैंने अपनी परेशानियों का जिक्र तो कर दिया, जिसके चलते मुझे डूबते वक्त एक तिनका मिला है, उसी के सहारे मैं खुद को डूबने से बचा सकती हूं, पर मेरे दिल-दिमाग की स्थिति महासागर से उठती गिरती ऊंची-ऊंची लहरों जैसी हो रही है, यदि उसका जिक्र गलती से भी मेरी जुबां पर आया तो ये सहारा भी मुझसे छिन जायेगा। बस यही बात समझने की वह कोशिश करता रहा और वह छिपाने की। करीब एक घंटे की मुलाकात में दोनों कुछ न कुछ छिपाते रहे, लेकिन वह तो उतनी देर में उसके मन की बात पढ़ लिया। जिसे वह उससे छुपा रही थी।
उससे विदा लेने के बाद वह और ज्यादा बेचैन हो उठा क्योंकि उस वक्त तक वह उसके दिल-दिमाग को पढ़ लिया था, फिर खुद को वह मजबूत किया और सोशल मीडिया के जरिए उसको संदेश भेजा कि मैंने तुम्हारे चेहरे का दर्द पढ़ लिया है और तुम्हारे दिल-दिमाग में चल रही हर उलझन को भी समझने का प्रयास किया। जहां तक मैं समझ पाया हूं कि तुम मजबूरीवश मेरी हां में हां मिलाती हो, पर हकीकत तो ये है कि साथ छोड़ना भी नहीं चाहती। तुम्हारे मन में जो कुछ भी हो, बेझिझक कह सकती हो, मैं तुम्हारा दोस्त हूं, कोई किराये का हमदर्द नहीं। तुम्हारी खुशियों के लिए मैं अपनी खुशियां कुर्बान करने को तैयार हूं, बस एक बार कहकर तो देखो, तुम्हारी हर खुशी के लिए मैं पूरी जान लगा दूंगा। तुम किसी और को चाहो, किसी से भी दोस्ती करो, उसके लिए भी मैं तुम्हे कभी नहीं रोकूंगा। पर इसके साथ ही उसके मन-मस्तिष्क में एक बात और गूंज रही थी कि आखिर उस रोटी का कर्ज भी तो चुकाना पड़ेगा, जिसे वह सिर्फ उसके लिए बनाई थी, वो भी उस हाल में जब वह खुद अपने लिए नहीं बना सकी थी, उसके इसी बेबाक और निःस्वार्थ समर्पण ने उसका दिल जीत लिया और उसे उसका कर्जदार भी बना दिया।
उस कर्ज के चलते उसके कदम भी थमने लगे थे, वह तो महज इत्तेफाक था जो वह उसके पास चला गया था क्योंकि वह भी शाम के वक्त उसी के घर के करीब से एक दोस्त से मिलकर लौट रहा था, वहां से जब वह खाली हुआ तो काफी वक्त हो चुका था, फिर भी वह उसे फोन किया, तब पता चला कि वह घर पर तो है, पर सो रही है, क्योंकि उसे तबीयत कुछ नासाज लग रही थी, तभी वह उससे कहा कि ठीक है तुम आराम करो, वो तो मैं इधर से गुजर रहा था, इस वजह से फोन कर लिया, तभी उसने कहा कि नहीं...नहीं...आ जाओ मैं कमरे पर ही हूं, पर मैने कहा कि मैं अभी खाना भी नहीं खाया हूं, तो उसने जवाब दिया कि आ जाओ मैं आपको खाना खिलाती हूं, पर मैंने पूछा कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तो खाना कैसे बनाओगी तो उसने कहा कि तुम तो बस आ जाओ मैं फटाफट खाना तैयार कर दूंगी। फिर मुझे लगा कि वह इतने प्यार से बुला रही है तो जाना चाहिए और मैं उसके पास गया तो दरवाजा नोक किया, दूसरी बार नोक किया तो वह दरवाजा खोलते हुए मुझे अंदर आने का इशारा की और मैं कमरे में दाखिल हुआ, फिर अगले ही पल गप्पेबाजी शुरू।
ये महज इत्तेफाक ही था कि मैं चला था दोस्त के घर से अपने घर, पर पहुंच गया उसके पास, 10 अप्रैल 2018 को लिखी इस कहानी पर अचानक नजर पड़ी तो सोचा इसे ब्लॉग पर ही डाल दूं. कम से कम इसी बहाने वह कभी कभार याद आती रहेगी और कर्जदार होना और उसे चुकाना भी याद रहेगा क्योंकि कर्ज फर्ज मर्ज कभी भूलना नहीं चाहिए।
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