अभी चलना ही शुरू किया कि कदम
लड़खड़ा गए
कदम तो संभल गए साहब पर जुबान नहीं
संभली
6 साल साथ चलने का आइना पल भर में टूट
गया
10 साल बाद फिर दिल का दर्द छलक आया
कब तक जोड़ेंगे भविष्य के आइने को
अपने गम से
फिर पता चला की आइना तो बना ही है टूटने
की खातिर
अमन की अरदास और जिंदा कैसे रहे विकास
की रफ्तार
कुदरत की खूबसूरती को राजनीति ने
बदसूरत बना दिया
जमीं के जन्नत को भी अपने पराए में
बांट दिया
इंसानियत के लहू पर धर्म का मुलम्मा
चढ़ा दिया
कुर्सी की लालसा ने भाई को भाई का
कातिल बना दिया
सियासत के साजो सामान ने जनता को
आलसी बना दिया
मुफ्त बांटने की घोषणा ने अवाम को
काहिल बना दिया
हमें बख्श दो हिंदुस्तान की राजनीति
के रणनीतिकारों
अब हिंदू मुसलमां में न बांटो, हरे-लाल
रंग में न बांटो
मेरे दिल में हिंदुस्तान और हाथों
में तिरंगा रहने दो
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