हिंदुस्तान की आंखों का
पानी शर्म से सूख गया है...वो भी महज इसलिए की न्याय व्यवस्था की रफ्तार इतनी
सुस्त है कि आज दुनिया के सामने शर्मिंदा होना पड़ रहा है...16 दिसंबर 2012 की वो
काली रात, दिल्ली में चलती बस में
हुए गैंगरेप ने देश की आत्मा तक को झकझोर दिया...देर तो आए, फिर भी दुरूस्त नहीं
आए...दामिनी के दरिंदों को फांसी दिलाने की मांग देश के हर कोने से उठी...लेकिन
भारत में कानूनी लड़ाई इतनी लंबी है...कि आरोपी बेझिझक वारदात को अंजाम देने में
नहीं हिचकता..दामिनी के लिए संसद से सड़क तक कोहराम मचा रहा...महीनों तक सड़कें
आंदोलनकारियों से पटी रहीं...इंडिया गेट तो मानों दामिनी की समाधि बन गयी थी...हर
शाम जगह जगह कैंडल मार्च ने देश को जगा दिया...सरकार ने मजबूरी में ही सही महिला
सुरक्षा कानून को कठोर बना दिया...लेकिन दामिनी के दरिंदे फिर भी इस कानून से बच
निकले...कानून तो कठोर बन गया...लेकिन महिला सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हो
पाया...इससे भी अधिक अफसोस तब होता है...जब अरुणा शानबाग का नाम सुनते हैं...दिल
और रूह तक कांप जाती है...उसके साथ हुई हैवानियत को सुनकर...जिसने उसे जिंदा लाश
बना दिया...चालीस साल से अस्पताल में पड़ी मौत का इंतजार कर रही है और आरोपी सात
साल बाद ही जेल से छूट गया..तब से आजाद घूम रहा है...मौत की आस में सुप्रीम कोर्ट
तक से न्याय की गुहार लगा चुकी है..लेकिन कोई भी उसकी आवाज सुनने वाला नहीं
है...जबकि महिला अपराध के खिलाफ बढ़ते आक्रोश का नमूना नागालैंड में देखने को
मिला...दिल को बड़ी तसल्ली मिली की कम से कम मुर्दा कानून की कोई जरूरत तो नहीं
पड़ी...जनता ने ही फैसला कर दिया...दीमापुर में एक आदिवासी लड़की से कई बार
बलात्कार करने वाले आरोपी को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला...फिर भी भीड़ का गुस्सा
शांत नहीं हुआ और 7 किलोमीटर तक घसीटते रहे इसके बाद
भी चौराहे पर सरेआम सूली पर लटका दिया...ये सरकारों की आंख खोलने के लिए काफी
है...सरकारों को चिंतन करना चाहिए की आखिर क्यों भीड़ हो गयी हत्यारी...इसलिए की
हिंदुस्तान की कानून व्यवस्था की कछुए जैसी चाल को खरगोश से भी तेज करना
होगा...तभी कानून के प्रति लोगों का विश्वास जिंदा होगा...नहीं तो अब जनता खुद ही
फैसला करेगी...अभी तो एक बीबीसी को भारत सरकार नहीं रोक पाई वो भी महज एक
डॉक्यूमेंट्री प्रसारित करने से...खैर वैसे भी प्रसारण रोक कर सरकार क्या दिखाना
चाहती है...शेर की खाल पहनने से गीदड़ कभी शेर नहीं बन जाता..जरूरत है कि भारत
सरकार चिंतन करे मंथन करे न्याय व्यवस्था को मजबूत करे...ताकि न्याय प्रणाली में
लोग विश्वास करें...संसद में महिला
सुरक्षा कानून भी बन गया...लेकिन स्थिति वही ढाक के तीन पात...कानूनी लड़ाई की
सुस्त रफ्तार के चलते आरोपियों के मन में खौफ नहीं है...अब भी सरकार की नींद नहीं
टूटी तो इस चिनगारी के साथ कारवां जुड़ता चला जाएगा...फिर कानून की अहमियत शून्य
हो जाएगी...अच्छा होगा कि सरकार समय रहते अंधे कानून के आंखों का इलाज करा ले...
वरना अंजाम क्या हो सकता है उसका ट्रेलर सबके सामने है..
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