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Saturday 7 June 2014

जैसे को तैसा

समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन से अपनी पहचान बनाने वाले अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए अन्ना से ही नाता तोड़ गए और उन्ही के सहयोगियों को अपने साथ लेकर अन्ना को बेसहारा कर गए खैर राजनीति में उनका दांव भी बेहद आश्चर्य जनक रहा विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन से गदगद केजरीवाल की लालसा बढ़ने लगी इसी लालच में उन्होने सीएम का पद छोड़कर पीएम पद के लिए निकल पड़े....लेकिन उनका ये दांव उल्टा पड़ गया। और लोकसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। इसी हार के साथ मानों उनके सपने तिनके की तरह बिखरने लगे। कोर्ट के नोटिस से लेकर सहयोगियों के छूटते साथ से आहत हो गए। फिर भी अकड़ जली हुई रस्सी जैसी ही रही औऱ मानहानि का आरोप साबित होने पर भी उन्होने माफी मांगने तक से इनकार कर दिया हालांकि पहला मौका था जब गडकरी और केजरी आमने सामने थे। न्यायाधीश की सलाह का भी अरविंद पर कोई असर नही पड़ा ऐसे में कम से कम दो साल तक की सजा हो सकती है। एक तरफ कानूनी संकट तो दूसरी तरफ बिखरती पार्टी की चिंता में दिन रात सूखते जा रहे हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्य तक उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं। शाजिया इल्मी और अंजली दमानिया ने पार्टी को अलविदा कर दिया तो वहीं नवीन जयहिंद औऱ योगेंद्र यादव की खत बाजी में पार्टी को इतने खत सहने पड़ रहे हैं जो शायद भविष्य में नासूर बनकर पार्टी की जान जोखिम में डाल देंगे। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व में जिस तरह के आरोप लग रहे हैं उससे मजबूत राजनीतिक बुनियाद देखकर पदार्पण करने वाले नेताओं को भविष्य की चिंता सताने लगी है। जिससे अब पार्टी बिखरकर दरिया में मिलने को बेताब दिख रही है।

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