कहते हैं वक्त से बड़ा कोई तानाशाह नहीं होता, पर जब वक्त बुरा आता है तो बड़े से बड़े तानाशाह को भी घुटनों पर ला देता है, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का भी आजकल बुरा वक्त चल रहा है या यूं कहें कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपाहिज हो गया है, जो आजकल चार पैरों की बजाय दो ही पैरों पर रेंग रहा है, ऐसे में लोकतंत्र को संतुलित करने वाला समाज का दर्पण खुद ही धुंधला होता जा रहा है तो वो दूसरों को आईना दिखाए भी तो कैसे।
आजकल समाज का दर्पण ही समाज के लिए बड़ी मुसीबत बन गई है क्योंकि ये समाज ही अपने लिए खुद कुआं खोद रहा है, जिसमें आने वाली पीढ़ियां गिरकर दफन हो जाएंगी, मंगलवार को गाजियाबाद पुलिस की लापरवाही ने पत्रकार की जान ले ली क्योंकि जिस पुलिस को पत्रकार की शिकायत पर संज्ञान लेना था, वो नहीं ली और बदमाशों ने शिकायत की बात को दिल पर ले लिया, फिर तो विक्रम जोशी को उनकी मासूम बेटियों के सामने ही तीन गोलियां दाग दी. इस मामले में पुलिस पर भी हत्या की धाराओं में FIR दर्ज किया जाना चाहिए क्योंकि जितने पुलिसकर्मियों को इस शिकायत की जानकारी थी, वो सभी नामजद आरोपियों जितने ही दोषी हैं.
इतना सबकुछ होने के बाद भी सत्ता मदमस्त हाथी की चाल चली जा रही है, कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं है।
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