आज मन बहुत उदास है, दिल दुखी है, क्योंकि चारों
ओर बस चीख ही चीख सुनाई पड़ रही है। लाशों का ढेर लगा है, मलबों से मुर्दे चीख रहे
हैं। नजर जिधर पड़ती, बस तबाही के सिवा कुछ नहीं दिखता। मकान जमींदोज, मंदिर धराशाई
और सड़कों में भूस्खलन। जो जिंदगी बची भी है। ना जाने किस कदम पर मौत के मुंह में
समा जाए। क्योंकि हर कदम पर मौत की आहट सुनाई पड़ रही है। इस त्रासदी में इंसान तो
इंसान भगवान भी खुद को नहीं बचा पाए। हे भगवान ये कैसा न्याय है।
शनिवार को कुपित शनिदेव ने तबाही का ऐसा खेल
खेला कि जो गए सो गए, जो बचे हैं उस तबाही की चीख उनके कानों में ताउम्र सुनाई
पड़ेगी। दिन में करीब 12 बजे भूकंप ने जो तांडव मचाया, उससे हजारों जिंदगियां मौत
की आगोश में समा गयीं। हंसता, मुस्कराता काठमांडू कब्रिस्तान बन गया। इस जलजले में
जो बचे भी वो राहत के अभाव में दम तोड़ गए। आर्थिक रूप से कमजोर छोटे से नेपाल के
लिए कुदरत ही जालिम बन गयी। ऐसा मंजर किसी ने शायद ही देखा हो, क्योंकि 81 साल
पहले इस तरह का जलजला आया था। लेकिन इस जलजले ने काठमांडू के खूबसूरत चेहरे को
इतना बदसूरत बना दिया कि उसका नाम लेने मात्र से ही रूह तक कांप उठती है।
इस संकट से नेपाल की चीख जैसे ही हिंदुस्तान के
कानों में पड़ी। पीड़ितों को बचाने के लिए भारत सरकार ने धरती से आसमान तक को एक
कर दिया। जहां से और जैसे भी संभव हो मदद किया। ये मदद नहीं मानवता का धर्म कहिए,
पड़ोसी होने का फर्ज कहिए, सच्ची दोस्ती की अच्छी तस्वीर कहिए। दोस्ती की नई
परिभाषा कहिए, नेपाल की ओर मदद का हाथ बढ़ाने वाले पहले मुल्क हिंदुस्तान की
दुनिया में जय जयकार हो रही है। प्रधानमंत्री की तत्परता का गुणगान हो रहा है।
जबकि भारत की दरियादिली देख दुनिया के कई मुल्क शर्म से पानी पानी हैं और नेपाल की
मदद को सामने आ रहे हैं, भूकंप के तुरंत बाद भारत सरकार ने फौरन NDRF के कई दस्तों को नेपाल रवाना
किया, वायुसेना के हेलीकॉप्टर आसमान में उड़ने लगे। सरकारी और गैर सरकारी टेलीकॉम
कंपनियों ने कम दर में और मुफ्त में नेपाल बात करने की छूट दी। यूपी सहित कई
राज्यों ने सैकड़ों ट्रक राहत सामग्री भेजकर पीड़ितों की मदद की। त्रासदी पीड़ितों
की रक्षा के लिए हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी के हाथ दुआओं के लिए उठे। किसी ने पूजा
की, तो किसी ने खुदा से रहम करने की गुजारिश की। खैर ये सब तो चलता रहा, और भूकंप
लुका छिपी का खेल खेलता रहा। लोगों के दिलों में दहशत इस कदर समा गयी कि जो घर
उन्हे स्वर्ग से भी सुंदर लगता था। वही कब्रिस्तान लगने लगा। प्रधानमंत्री हर दिन
समीक्षा बैठक करते, हर समय फोन से जानकारी जुटाते रहते। सोमवार को जब संसद की
कार्यवाही शुरू हुई। दोनों सदनों में सन्नाटा था, सबकी आंखें नम थी, सत्ता पक्ष और
विपक्ष सब के सब त्रासदी पर मौन थे, मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए। मौन टूटा,
कार्यवाही शुरू हुई, तो तबाही के इस मंजर को सबने अपने अपने तरीके से बयां किया।
सरकार की तरफ से संसदीय कार्यमंत्री वैंकैया नायडू ने सभी सांसदों से एक महीने की
तनख्वाह पीड़ितों के नाम करने की अपील की। जिसका करीब सभी सदस्यों ने समर्थन किया।
खैर ऐसा कम ही होता है, जब निजी स्वार्थ को छोड़कर, बिना शोर शराबे के किसी मुद्दे
पर सभी सदस्य एकमत हों, लेकिन यहां सभी संसदों ने मानवता का फर्ज अपनी तनख्वाह
देकर निभाया और ऐसा करके हिंदुस्तान ने अपनी ताकत का अहसास कराया कि हम फिर से
विश्व गुरू बनकर रहेंगे। कहते हैं कि जाके पांव न फटी बिवाई वो का जाने पीर पराई।
लेकिन ये तो हिंदुस्तान है जो सेवा को परम धर्म मानता है। इसलिए अपनों के साथ साथ औरों
को भी संकट से उबारने में धरती आसमान एक कर दिया।
No comments:
Post a Comment