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Sunday 23 June 2019

जिसे हम तरक्की समझते हैं वही असल गुलामी-लाचारी

सुबह नींद खुलते ही मोबाइल उठाया और निर्जीव खिलौने के साथ खेलने लगा, सोचा अभी चार्ज में लगाएगा, पर जैसे ही चार्जिंग पॉइंट से मोबाइल को कनेक्ट किया, बत्ती गुल हो गयी. जब तक मोबाइल चला, तब तक उससे खेलता रहा, लेकिन जैसे ही वह खिलौना शांत हुआ, वह बेचैन हो उठा, बिजली का इंतजार करने लगा और बिजली विभाग को कोसने लगा. बेचैनी में वह हॉल से कमरे में और कमरे से हॉल में फिर हॉल से बाहर गैलरी में चक्कर काटता रहा क्योंकि ऑफिस जाने का समय भी हो रहा था, लेकिन समय का सही अंदाजा उसे नहीं लग पा रहा था.

बिजली आने के इंतजार में वह पड़ा रहा, थोड़ी देर बाद बाहर निकला, इस उम्मीद में कि शायद कोई मिल जाये, जिससे वह समय पूछ ले. पहली बार उसे लगा कि तकनीक ने उसे किस कदर अपाहिज बना दिया है. एक समय था जब न घड़ी की जरूरत थी, न मोबाइल की क्योंकि तब सूरज की रोशनी से पड़ती परछाईं देखकर अंदाजा लग जाता था कि कितना समय हो रहा होगा, लेकिन बढ़ती तकनीक ने पुराने नुस्खों को पुराना कर दिया और उसकी जगह नई तकनीक ने ले ली. इंसान जितनी चाहे तरक्की कर ले, लेकिन प्रकृति की बनाई चीजों का मुकाबला नहीं कर सकती.

तकनीक ने चीजों को जितना आसान किया है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किलें खड़ी कर दी है, जिस इंटरनेट को दुनिया तरक्की का पैमाना मान रही है, उसने कामयाबी तो दिलाई, लेकिन युवा पीढ़ी को पूरी तरह बर्बाद कर गयी है. आज की पीढ़ी के सबसे करीब इंटरनेट युक्त मोबाइल है. नींद की गहरी झपकी आने तक और नींद खुलने के तुरंत बाद सबसे पहले मोबाइल पर हाथ जाता है, कई बार तो इंसान नींद में भी मोबाइल को ही टटोलता रहता है. देश के जाने माने उद्योगपति दिवंगत धीरू भाई अंबानी ने हर हाथ मोबाइल पहुंचाने का सपना देखा था, जिसे उन्होंने पूरा भी किया, लेकिन उनके बेटे मुकेश अंबानी ने तो जियो देकर जैसे युवा पीढ़ी को चरस का नशा ही दे दिया है.

बूढ़े, जवान, महिला, पुरुष के अलावा छोटे बच्चे भी मोबाइल के आदी होते जा रहे हैं, जो बच्चा एक साल का है, वह भी मोबाइल पाकर चुप हो जाता है, या तो मोबाइल में चलते चित्र या उससे निकलती ध्वनि को सुनकर वह खुश हो जाता है. कई बार तो बच्चे मोबाइल के बिना चुप ही नहीं होते. इस तकनीक का युवा पीढ़ी पर कितना बुरा असर पड़ रहा है, इसका अंदाजा भले ही अभी किसी को नहीं लग रहा, लेकिन आने वाली पीढ़ी मोबाइल-इंटरनेट की एडिक्ट होकर ही पैदा होगी.

अब बच्चों में खेलकूद से इतर वीडियो गेम और मोबाइल गेम का चस्का लगता जा रहा है और तकनीक उनके लिए लुभावना बाजार भी तैयार कर रहा है. किसी भी शहर के किसी भी मॉल में आप चले जाइये, आपके बच्चों को लुभाते बाजार नजर आ जायेंगे और आपको न चाहते हुए भी अपने बच्चों के लिए ऐसी बाजार का भोगी बनना पड़ेगा. बचपन में खेलकूद से शरीर चुस्त-फुर्त रहता था, पर अब तकनीक ने हर किसी को इस कदर आलसी बना दिया है कि कोई भी एक झटके से टूट सकता है.

इसी बाजारवाद के चलते आत्महत्या के मामले भी बढ़ रहे हैं. अब न तो वो आत्मविश्वास है और न ही वो मजबूती, जो विषम परिस्थितियों में भी खुद को खड़ा रखने की ताकत देती थी, रही सही कसर बाजार पूरी कर दे रहा है, कई बार मन माफिक चीजें नहीं मिलने या दोस्तों से बराबरी करने के चक्कर में ऐसे कदम उठाने की बात सामने आती रहती है. कुल मिलाकर तकनीक ने चीजों को जितना आसान किया है, इंसान को उतना ही कमजोर, बेबस और लाचार बना दिया है, यही वजह है कि जिसे हम तरक्की समझ बैठे हैं, वही असल में गुलामी है. इसी बाजारवाद ने पूरी दुनिया को गुलाम बना लिया है.

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