Sunday 7 October 2018

बीजेपी के लिए आसान नहीं कांग्रेस के इन किलों को भेदना, बार-बार खानी पड़ी है मात

भोपाल. मध्यप्रदेश का चुनावी दंगल इस बार कई मायनों में दिलचस्प रहने वाला है. जिस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं क्योंकि यहां न तो बीजेपी की राह आसान है और न कांग्रेस की. भले ही बीजेपी पिछले 15 सालों से सूबे की सत्ता पर काबिज है. लेकिन, कांग्रेस के कई किले ऐसे हैं, जिनके तिलिस्म को बीजेपी अब तक तोड़ नहीं पायी है.

पिछले तीन चुनावों से बीजेपी सियासी संग्राम में कांग्रेस के खिलाफ फतह हासिल की है. फिर भी कई किले ऐसे हैं, जहां चुनावी समर में बीजेपी के दिग्गजों को भी मुंह की खानी पड़ी है. उन विधानसभा सीटों की बात कर रहे हैं. जो कांग्रेस के मजबूत गढ़ों में तब्दील हो चुकी है. जहां बीजेपी को लगातार मात खानी पड़ रही है. ऐसे में इस बार भी इन सीटों पर चुनावी मुकाबला जोरदार होगा.

चुरहट
सीधी जिले में आने वाली चुरहट विधानसभा सीट सूबे में कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है. बीजेपी हर चुनाव में यहां प्रत्याशी बदलती रही. लेकिन, उसे जीत मयस्सर नहीं हुई. यह विधानसभा सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की पंरमपरागत सीट मानी जाती है. जहां से उनके पुत्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह विधायक हैं. अजय सिंह पिछले पांच चुनावों में यहां से लगातार जीत हासिल कर रहे है, जबकि इस बार भी बीजेपी के लिये यह सीट सबसे बड़ी चुनौती है.

राघोगढ़ 
गुना जिले की राघोगढ़ विधानसभा सीट कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता है. ऐसी सीट जिसका बीजेपी अब तक कोई तोड़ नहीं निकाल पायी है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के परिवार का इस सीट पर दबदबा माना जाता है. 2003 के चुनाव में बीजेपी ने यहां अपने सबसे मजबूत नेता शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतारा था. लेकिन, दिग्गी राजा ने चुनावी दंगल में उन्हें भी धूल चटा दी थी. वर्तमान में इस सीट से दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह विधायक हैं. जिन्होंने पिछले चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को 50 हजार वोटों से भी ज्यादा के अंतर से हराया था.

लहार
भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट भी कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है. इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉक्टर गोविंद सिंह पिछले छः चुनावों से लगातार जीत हासिल करते आ रहे हैं. इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा माना जाता है. छः बार से शिकस्त झेल रही बीजेपी गोविंद सिंह के खिलाफ यहां से दमदार प्रत्याशी उतारने की कोशिश करेगी. ताकि इस किले को भेद सके. हालांकि, गोविंद सिंह पिछले लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरे थे, पर उन्हें जीत मयस्सर नहीं हुई.

विजयपुर
ग्वालियर-चंबल अंचल के श्योपुर जिले में आने वाली विधानसभा सीट विजयपुर कांग्रेस का मजबूत गढ़ बनकर उभरी है. वर्तमान में कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत यहां से पिछले पांच बार से चुनाव जीत रहे हैं. वे कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी माने जाते हैं. बीजेपी हर बार यहां पूरी ताकत से चुनाव लड़ी. लेकिन, उसे जीत हासिल नहीं हो पायी. हालांकि, इस बार इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो सकता है.

पिछोर
शिवपुरी जिले में आने वाली पिछोर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह 1993 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं. पिछले चुनाव में भी उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी को करारी शिकस्त दी थी. ऐसे में इस बार भी इस विधानसभा सीट पर मुकाबला कांटे का होने वाला है क्योंकि केपी सिंह फिर जीत का दम भरते नजर आ रहे हैं.

भोपाल उत्तर
भोपाल जिले की भोपाल उत्तर विधानसभा सीट बीजेपी के लिये पिछले चार विधानसभा चुनाव से सिरदर्द बनी हुई है. यहां से कांग्रेस विधायक और सूबे में एकमात्र उम्मीदवार आरिफ अकील विधायक हैं. वे दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं और कांग्रेस में मुस्लिमों का सबसे मजबूत चेहरा माने जाते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में यहां काटे की टक्कर देखने को मिली थी. इस बार भी यहां सियासी मुकाबला दोनों पार्टियों के लिये नाक का सवाल बना हुआ है. 

राजनगर
बुंदेलखंड अंचल के छतरपुर जिले की राजनगर सीट इस वक्त अंचल में कांग्रेस की सबसे मजबूत सीट मानी जाती है. पिछले तीन चुनावों में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम सिंह नातीराजा लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. पिछले चुनाव में उन्होंने बीजेपी के कद्दावर मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया को शिकस्त दी थी. इस सीट पर जीत हासिल करने की बीजेपी पूरी कोशिश करेगी.

राजपुर
बड़वानी जिले की राजपुर विधानसभा सीट भी कांग्रेस की मजबूत सीटों में गिनी जाती है. यहां से कांग्रेस विधायक बाला बच्चन भी प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. वे यहां से चार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि, 2003 में यह सीट बीजेपी जीतने में कामयाब हुई थी. लेकिन, दो बार से फिर उसे हार का सामना करना पड़ा रहा है. इस बार बीजेपी यहां मजबूत प्रत्याशी की तलाश में है. 

कसरावद
खरगोन जिले की कसरावद विधानसभा सीट कांग्रेस की मजबूत सीटों में मानी जाती है. इस सीट को कांग्रेस के कद्दावर नेता सुभाष यादव की पंरमपरागत सीट की नजर से देखा जाता है. हालांकि, इस सीट पर 2008 में बीजेपी को जीत मिली थी. लेकिन, 2013 में सुभाष यादव के पुत्र सचिन यादव ने यह सीट बीजेपी से फिर छीन ली थी. कांग्रेस इस सीट पर पांच चुनाव जीत चुकी है.

अमरपाटन
सतना जिले की अमरपाटन सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है. इस सीट से विधायक राजेंद्र सिंह विधानसभा में उपाध्यक्ष हैं. हालांकि, इस सीट पर भी एक बार बीजेपी जीतने में कामयाब हुई है. लेकिन, पिछले चुनावों में बड़ी जीत हासिल कर राजेंद्र सिंह ने एक बार फिर यहां कांग्रेस का झंडा बुलंद किया, जबकि इस बार भी इस सीट पर मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है.

यहां चुनावी मुकाबला रोचक होने की उम्मीद 
सूबे में होने वाले सियासी समर में बीजेपी इस बार कांग्रेस के इन मजबूत गढ़ों में सेंधमारी की पूरी कोशिश करेगी. भले ही बीजेपी 15 साल से सत्ता पर काबिज है. लेकिन, चुनावी समर में ये सीटें जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है. ऐसे में इस बार भी बीजेपी इन सीटों पर पूरा जोर लगाती नजर आयेगी. जिससे यहां का चुनावी मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है.

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