Saturday 14 April 2018

वो सफर कर दिलवालों के शहर में बस गयी, वह रुककर निजाम-ए-शहर बन गया

8 फरवरी 2016 का दिन उसके लिए बिल्कुल जुदा था, नया शहर था, नया संस्थान और नए लोग, पुराने में गिने चुने लोग ही थे, जो पहले से जानते थे, उस दिन वह एक राजधानी को छोड़कर भटकते-भटकते दूसरी राजधानी में पहुंच गया था, नए शहर की आबोहवा बिल्कुल अलग थी, न तो इस शहर का खानपान जंचता और न ही वहां की गर्मी सहन होती, सर्दी तो भूलकर भी पड़ती नहीं थी। अब नए शहर में लोगों के बीच खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद शुरू हुई क्योंकि भीड़ में खुद का वजूद बचाए रखने की चुनौती होती है। हालांकि धीरे-धीरे शहर भी अच्छा लगने लगा, लोग भी अच्छे लगने लगे और नए दोस्त भी बनने लगे, जब भी कोई किसी शहर में जाता है तो कुछ लोग बेहद करीब हो जाते हैं, लेकिन कुछ लोग बिल्कुल दिल में रच-बस जाते हैं। फिर वह एक दूसरे से भले ही दूर हो जाते हैं, पर दोनों एक दूसरे को खुद के पास महसूस करते हैं। 

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कुछ दिन ऑफिस में बीता, धीरे-धीरे लोगों से घुलने मिलने लगा। हालांकि तब से अब तक कई साथी बिछडे़, कुछ तो हमेशा के लिए बिछड़ गए थे, जबकि आने वालों की संख्या उनसे कई गुना ज्यादा थी, लेकिन उन जाने वालों में एक चेहरा ऐसा भी था, जिसे वह चाहकर भी भूल न सका, हर पल उसे अपने आसपास महसूस करता था, ऑफिस के अंदर-बाहर हर जगह उसकी मौजूदगी ही उसे उस शहर में रहने का साहस देती थी, नहीं तो काया के बिना छाया का रहना संभव नहीं होता। उन्हीं यादों के सहारे वह उस शहर में आगे का सफर तय करता रहा, लेकिन एक-एक दिन उसके बिना काटना उसके लिए एक साल के बराबर लगता था। पर सवाल मोहब्बत के साथ रोटी का भी था तो वो दर्द भी सहना पड़ा।




जब पहली बार वह ऑफिस गया था, तब उसे देखकर एकटक उसे निहारता रह गया था, मानो किसी चित्रकार या मूर्तिकार की तरह उसे अपनी आंखों में रचा बसा रहा था, जिसे बाद में वह मूर्ति के रूप में जीवित करता या पेन्सिल से स्केच बनाकर उसमें अपने मन मुताबिक रंग भरता। पर ऐसा बिल्कुल नहीं था, वह तो बस उसे निहारे जा रहा था और यह सोच रहा था कि ऊपर वाले ने उसे कितनी फुरसत में बनाया होगा। जिसकी सुंदरता का मुकाबला तो स्वर्ग की अप्सराएं तक नहीं कर सकती क्योंकि शरीर के एक-एक अंग को बिल्कुल नाप तौलकर बनाया गया था। उसकी नजरें तो ऐसी थी, जैसे घनघोर काले आसमान में उमड़ते सफेद बादल, जिसे जितना चाहो देखो, पर उसका अंत नहीं दिखाई पड़ता। जिधर उसकी आंखों की पुतली चलती मानो आसमान उसके साथ चल पड़ता। जिसकी सीमा का एहसास उसकी आंखों में लगे काजल की पतली धार और आई लाइनर कराते थे। काजल की धार ये बताती फिरती कि बस इसके आगे रास्ता नहीं है। 

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आंख के अलावा गुलाब की पंखुड़ी जैसे कोमल पतले होठ और उस पर लगा लिप लाइनर नदी के दो किनारों जैसा लगता था, जो कुछ दूरी पर जाकर एक दूसरे में समा जाते थे, उस पर सुर्ख लाल रंग की लिपिस्टिक के बाहरी छोर पर लगा महरून रंग का लिप लाइनर उसके होठ की सुंदरता पर बसंत जैसी बहार ला देता था। बाल तो उसके सिर से लटककर कमर के नीचे तक पहुंच जाते थे, बालों को जब वह गूथ लेती थी तो उसके बालों की चोटी लहराती नागिन जैसी लगती थी, जबकि खुले बाल होने की स्थिति में कमर से ऊपर तक शरीर के पिछले हिस्से पर किसी कपड़े की जरूरत नहीं पड़ती थी, जिसे वह सिर के चारो तरफ लटका ले तो बारिश से बचने का पूरा इंतजाम हो जाता था। कंधे से सटी सुराहीदार गर्दन पर बीच-बीच में पड़ी गोल धारियों का सलोना रंग नजरों में अजीब सी चमक पैदा करता था। ऊपर से गालों की खिलखिलाहट मानो कश्मीर की वादियों का दीदार कराती हो और हर हंसी पर पड़ते डिंपल सीप के मोती जैसे लगते थे, जिसे स्वाति नक्षत्र की बूंदों को अपने में समाहित कर सीप मोती बना देता है, फिर उस मोती को पाने के लिए सागर में गोते लगाना पड़ता है, वैसे ही उसके डिंपल देखने के लिए सीप के मोती को स्वाति के पानी और पपीहा के प्यास की तरह उसके हंसने का इंतजार करना पड़ता था।



उसकी पतली लंबी नाक व लंबे कान और ऊपर से कानों में हर दिन अलग-अलग तरह की बालियां, झुमके आदि सावन की अलहड़ मस्ती में झूमते पेड़ की टहनियों जैसे लगते थे। जो बार-बार उसकी खूबसूरती को निहारने की ओर इशारा करती रहती थी। ऊपर से छरहरे बदन के साथ 5.5 फुट की ऊंचाई बिल्कुल अप्सरा जैसी लगती थी, पर ऊपर वाले ने जितनी सुंदर काया रची थी, उससे कहीं सुंदर उस शरीर के अंदर मन दिया था, जो एक मुलाकात में किसी का भी दिल जीतने के लिए काफी था। उसकी जुबान से निकलते शब्द फूल जैसे लगते थे, बेहद शालीनता भरी पतली-सुरीली आवाज कानों के रास्ते सीधे दिल में उतर जाती थी। कुदरत ने दिल-दिमाग और हुस्न का ऐसा संगम तैयार किया था, जिसमें किसी को कम नहीं आंका जा सकता था, ऑफिस में हर घंटे उसके पास जाना और मुस्कुराते हुए नई ऊर्जा का संचार करना ऐसा लगता था, जैसे अंधेरा छंटने के लिए सूरज का इंतजार, जैसे अंधे की आंखों में अचानक से रोशनी का आ जाना, उसे देखते ही पूरा शरीर एक्टिव मोड में आ जाता था, दिल खुशी से झूमने लगता था, जी तो करता था कि वह आसपास ही रहे, बस उसके आसपास, मगर ऐसा संभव नहीं था, दोनों के बीच फासला तो कुछ कदमों का था, पर सफर मीलों का तय करना पड़ता था क्योंकि दोनों में से किसी एक का दूसरे के पास जाना तूफान को दावत देना था। फिर उस तूफान को संभालना मुश्किल था क्योंकि वह तूफान बसने से पहले घर को खंडहर बनाने वाला था।
एक लड़का उसके प्यार में मजनू बना फिर रहा था, पर उसके सपनों की लैला को इसकी खबर न थी, वो भी खामोश था कि मोहब्बत सच्ची होगी तो कभी तो उसे एहसास होगा, वह उसकी हर गतिविधि पर नजर रखता था, उसके खाने-पीने से लेकर पहनने-घूमने तक का ध्यान रखता, उसकी एक आवाज पर वो एक पैर पर निकल पड़ता था, लेकिन उसको कभी एहसास नहीं हुआ, थोड़ा बहुत जो हुआ भी उसने उसे हंसी में उड़ा दिया, वह उस प्यार की गहराई को कभी समझ न सकी कि उसके प्यार का सागर खुद खारा होकर भी उसे मीठा कर देगा। उस लड़के का प्यार उस लड़की के लिए सौ कैरेट सोने से भी ज्यादा खरा था, खैर अब दोनों एक दूसरे से एक हजार मील के फासले पर हैं, पर दोनों एक दूसरे के दिल के पास हैं क्योंकि ये मोहब्बत निःस्वार्थ है, समर्पण 100 फीसदी है। 
तुम्हे भूल जाने को दिल चाहता है पर तुम्हे भूल जाना तो मुमकिन नहीं। आठ जनवरी 2018 की वो शाम जब तुम पिछली बार मिली थी, उस दिन लग रहा था जैसे जिस्म से जान जुदा हो रही है, तब वह पहली बार उसके साथ उसके घर गया था, अपनी यादों को उसके दिल में जिंदा रखने के लिए विदाई पर उसे जो उपहार दिया था, जिसके चक्कर में उसका एटीएम कार्ड तुम्हारे पास रह गया था, वैसे भी उसका एटीएम तो तुम ही थी, जिससे अपने मन मुताबिक मुद्राएं वह जब चाहता, निकाल सकता था, जब एटीएम आसपास नहीं है तो उस कार्ड की भी जरूरत नहीं रही क्योंकि बार-बार उसे टोकना कि ऐसा नहीं ऐसा करो, कपड़े ऐसे पहनो, खुद को अपडेट करो। पर जब से वह उससे दूर चली गई, कोई कभी भी उसे नहीं टोका कि ये कपड़े तो कल भी पहन के आये थे, आज इसे फिर क्यों पहन के आये? न कोई नाराज हुआ, न चिढ़ाया। बस सब के सब अपनी धुन में मस्त हैं।
इन सब के बीच वह जब भी पुरानी यादों का एलबम पलटता था, आसुंओं से सराबोर हो जाता था, उसके साथ बिताया एक-एक पल उसे याद आता था, चाहकर भी वह उन पलों को नहीं भूल पाया, जब वह उसके साथ घूमने जाया करता था, चुपके से उसकी तस्वीर उतारा करता था, फिर उसी को वो फोटो गिफ्ट के तौर पर नजराना पेश करता था क्योंकि बिन बताए उतारी गई तस्वीर में 100 फीसदी वास्तविकता नजर आती है, उन तस्वीरों से वह उसके मन मस्तिष्क को भी पढ़ लेता था, कई बार पढ़कर भी वह उसके मन में अपने लिए पनपा प्यार नहीं पढ़ पाया और न ही उसको ऐसा कोई पाठ पढ़ा पाया, जिससे उसके लिए उसके मन में प्यार का बीज अंकुरित हो सके।

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खैर! तुम्हारे बिन हर त्योहार फीका लगता है, अब न होली का रंग चढ़ता है, न संता गिफ्ट देता है और न ही दिवाली के दियों में पहले जैसी रोशनी दिखती है। न त्योहारों की पहले से कोई तैयारी होती है। ऑफिस भी सूना-सूना लगता है, जबकि ऑफिस में तो थोक के भाव में लोग मौजूद हैं, पर तुम सा कोई नहीं। यही वजह है कि एक नजर हर पल तुमको ढूंढ़ती रहती है, उस नजर को हर किसी में तेरी सूरत नजर आती है। सामने आते हर चेहरे में तुम्हारा चेहरा देखकर वह खुद को संतोष दिलाता है। 97 दिन हो गए तुमको इस शहर से दूसरे शहर में गए, इन दिनों में वह खुद को सबसे तन्हा पाया है। तुम दिलवालों के शहर में आशियाना बना ली हो, अब तुमको उसकी जरूरत भी नहीं है, पर जब भी पुकारोगी अपने पास पाओगी, जी करे तो कभी आजमा कर देख लेना, आज तुम्हारा जन्म दिन है, तुम उसके पास तो नहीं हो कि वह केक काटकर तुम्हे हजारों साल जीने की दुआएं दे सके। ऑप्टिकल फाइबर की पाइप के जरिए तुम्हे शुभकामना संदेश भी भेज सकता था, पर वह सोचा कि क्यों न तुम्हारी कहानी लिखकर ही तुमको तुम्हारे जन्मदिन पर तोहफा दिया जाये और उससे पहले कोई उसको शुभकामनाएं न भेज पाये इसलिए वह उस पर लिखी कहानी को उसके जन्मदिन से आठ घंटे पहले उसको समर्पित कर दिया।

13 comments:

  1. आपके द्वारा लिखित ये स्टोरी हमेशा उसके जीवन में ऊर्जा का नया संचार भरेगी...जिससे वो पहले से ज्यादा एक दीप्ति पुंज की तरह प्रकाशित होगी...जिसके प्रकाश की रोशनी से आप हमेशा रोमांचित होंगे.... खैर वो तो समझ गई होगी...इससे बेहतर गिफ्ट क्या हो सकता...आप दोनों को अंनत शुभकामनाएं....

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  3. मोहब्बत निःस्वार्थ थी, समर्पण 100 फीसदी था कुदरत की देन का ऐसा खूबसूरत वर्णन वही कर पाते हैं जिनमें प्रकृति की पवित्रता को समझने का अनूठा गुण होता है । बहुत सुंदर लेखन ।

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    1. प्रकृति की गोद में हमेशा रहता हूं, पवित्रता बनी रहे उसका प्रयास करता हूं दोस्त

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  4. आपने तो सर 23 महीने में बहुत कुछ जान लिया उनके बारे में। फिलहाल जन्मदिन मुबारक हो। वैसे आजकल वो ATM है कहाँ, सोच रहा था कुछ पैसा निकाल के केक काट देते कल😊

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  5. लिखने की शैली और आपका अंदाज काबिले तारीफ है सर , कभी कभी दिल करता है आपका कीमती समय लेकर आपसे लिखने का तरीका सीख लूं।
    जिनके लिए भी यह आर्टिकल है , उनकी उनकी तस्बीर यह लेख पढ़कर नजरों के सामने बन गयी।

    मेरी तरफ से आपको जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं, दुआ करता हूँ, एक बार फिर बीते पल ताजा हों आप दोनों जब मिलें उन पलों को भी ऐसे ही लेख के जरिये जानने का इनतजार रहेगा ।

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  6. A voice from depth of the heart! Really that is a innocent love story which touches emotions softly.

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  7. शब्दों का यह भंवर जाल भंवरी देवी की याद दिला गयी

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  8. इश्क का ये मंजर जो आपने अपनी कलम से उकेरा है, बहुत ही खूबसूरत है। लेकिन जनाब मसला अभी भी वहीं है कि इसका किरदार कौन हैं ?

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  9. वो जो बैंगलोर चलीं गई कि भईया हमरे गालिब हो गए...बेहतरीन रचना ...प्रशंसा के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे।

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  10. वो जो बैंगलोर चलीं गई कि भईया हमरे गालिब हो गए...बेहतरीन रचना ...प्रशंसा के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे।

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