Saturday 3 September 2022

वो पास तो नही है पर कभी दूर भी न जा सकी


10 अगस्त की सुबह जब वह ऑफिस पहुंचा, कुर्सी संभाला, सिस्टम ऑन किया, काम में खुद को डुबाता, इससे पहले उसकी नजर उठी तो सामने जो नजारा दिखा, पहले तो उसे उस पर यकीन नहीं हो रहा था, ध्यानाकर्षण ऐसा था कि नजर हट ही नहीं रही थी क्योंकि वो सीन आंखों के रास्ते सीधा दिल में दाखिल हो रहा था, जो मन को अंदर तक आह्लादित कर रहा था! खैर जब सीन बदला तो मन बिंदास-बेलौस गति से दौड़ने लगा, पर एक खासियत थी कि वो जितना भी दौड़ता, लौटकर उसी के पास पहुंच जाता था, बहुत कोशिशों के बावजूद वह उसके पास से हटने को तैयार नहीं था. फिर नजर भी मन से मन का साथ देने लगी और दोनों मिलकर उसकी तलाश में जुट गए, कई घंटों की मशक्कत के बाद आखिरकार दोनों ने उसे ढूंढ ही लिया, जब वह मिली तो पहले समझ ही नहीं आ रहा था कि शुरुआत कहां से और कैसे करे, फिर  मन-आंखें और जुबान का कॉकटेल बनाकर बात की शुरुआत की।


वह बार-बार सोचे जा रहा था कि आखिर ऊपर वाले ने उसे कितनी फुरसत में गढ़ा है, इतना तो तय था कि चाहे स्वर्ग की अप्सरा आ जाए या धरती की सुंदरियां, उसका मुकाबला कतई नहीं कर सकती थीं. उसे देखकर वह भी मन ही मन खुश हुए जा रहा था कि जैसे उसके हाथ कोई कुबेर का खजाना लग गया है. पर ये ऐसा खजाना था जिसका इस्तेमाल वह नाम मात्र भी नहीं कर सकता था, इसकी एक नहीं बल्कि कई वजहें थी, एक तो ये कि उसके नाम पहले ही एक कीमती प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री हो चुकी थी, दूसरे वो उसको शायद ही उस कदर चाहती, जिस कदर वह उसे पहली नजर में ही देखकर चाहने लगा था, इसके पीछे भी एक वजह थी कि हर कोई फ्रेश पॉपर्टी ही चाहता है, ऐसे में उसके चाहने की कोई वजह नहीं थी.


हफ्ते में छह दिन बमुश्किल वह एक झलक उसे देख पाता था, पर उस एक झलक के लिए पहले से ही खुद को रोजाना तैयार करता था. इंतजार करता था, कई बार ऐसा भी हो जाता था कि अकेले में ढूंढ़कर भी वो नहीं मिलती थी और कई बार तो भीड़ में भी नजर आ जाती थी, जब से वह उसे देखा था, न चैन से कभी सो पाया, न चैन से रह पाया, उसका दिल-ओ-दिमाग हमेशा उसी के इर्द-गिर्द घूमता रहता था. उसके ऑफिस पहुंचने का इंतजार और फिर उसके ऑफिस से निकलने का उससे कहीं अधिक इंतजार उसको रहता था. बार-बार उसकी बड़ी-बड़ी आंखें याद आती थी, जिसकी सीमा आकाश की तरह अनंत और गहराई सागर से भी अधिक थी, जब भी उसकी आंखों में देखता, उसकी गहराई में डूबता चला जाता, फिर उसमें से निकलते की सारी कोशिश बेकार जाती और वह निकलने की बजाय उसमें धंसता ही चला जाता. जब वह उन आंखों में काजल लगा लेती थी तो मानो आसमान के दोनों किनारों से उमड़ते काले बादल इस कदर बरसेंगे कि तबाही लाकर ही छोड़ेंगे, पर ये काले बादल दोनों तरफ एक-एक छोर पर जाकर मिलते और फिर शांत हो जाते. जब पलकें बंद करती तो अंधेरा छा जाता और आंख खोलते ही दिन जैसी रोशनी.


ऐसा नहीं कि सिर्फ उसकी आंखें ही सुंदर और नशीली थी, उसके एक-एक अंग को मानो कामदेव ने खुद अपने लिए गढ़ा था, करीब छह फीट ऊंचाई गोरा छरहरा बदन किसी को भी दीवाना बनाने के लिए काफी था, न जाने कितने अब तक उस पर मर मिटे होंगे, वो भी जानता था कि कुछ हाथ नहीं लगने वाला, फिर भी कोशिश किये जा रहा था कि आखिर कुछ नहीं तो दोस्ती ही सही. जब कोई उसे उसके साथ देखेगा तो कुछ भी कयास लगाएगा, पर उसका उसके साथ होना ही उसके लिए उसे पाना था। वैसे तो उसे भी लिखने का शौक था, पर उसी पर कुछ लिख पाता था, जिसका असर उसके दिल-ओ-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाता था. इसलिए उसके बारे में भी लिखने से खुद को रोक नहीं पाया. उसके एक-एक अंग की नाप भी वह किसी दर्जी से भी अधिक बारीकी से लिया था. दर्जी तो सिर्फ बाहरी नाप लेता है, पर वह तो उसकी आह से ओह तक और राह से रूह तक एहसास से अंतरात्मा तक को टटोल डाला था, सबका मूल्यांकन भी किया, पर एक भी वजह उसे नहीं चाहने की नहीं ढूंढ़ पाया.


नख से शिख तक उसके हर अंग को कुदरत ने बड़ी फुरसत से बनाया था और जब कुदरत की खूबसूरती से अच्छे व्यवहार बोल-वचन का मिलन हो जाता है तो समझो कि पूरी कायनात में उससे सुंदर कुछ रह नही जाता है. उसके चश्मे के अंदर से झांकती काजल के किनारों वाली आंखे किसी को भी अपना बनाने के लिए काफी थी. जब वो हंसती तो मानो पूरा ब्राह्मांड खुशी से झूम जाता और उसकी आवाज को तो कोयल भी क्या मुकाबला कर पाये. उसके पैरों की नाजुक उंगलियों के नाखून पर लगे नेल पेंट बरबस ही उसके पैरों को देखने के लिए मजबूर कर देते थे, कदम बढ़ाने की अदा ऐसी कि लगे बस इस कदम के साथ वक्त ठहरेगा या अगले कदम पर रुक जाएगा वक्त! ये कहानी उन दिनों की है ईटीवी भारत के हैदराबाद ऑफिस में था, 12 सितंबर 2021 को इसे लिखा था, अचानक नजर पड़ी तो सोचा कि पोस्ट ही कर दूं।

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