Tuesday 2 October 2018

MP: बीजेपी के लिए चक्रव्यूह रच रहा विपक्ष, जुटा रहा महारथियों की फौज!

भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने भर की देर है, उससे पहले सियासी दल एक दूसरे को मात देने की तरकीब ढूंढ रहे हैं, जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ पूरा विपक्ष चक्रव्यूह रच रहा है, ताकि इस बार किसी भी हाल में उसे मात दे सके। अब बीजेपी के सामने चुनौती है कि आखिर वो कौन महारथी होगा जो इस चक्रव्यूह को भेद सकेगा।

दरअसल, सभी दल सियासी चौसर पर अपने-अपने मोहरों को सेट कर रहे हैं, ताकि चुनावी मैदान मार सकें। हालांकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास कुछ भी गंवाने के लिए नहीं है, लेकिन किसी भी हाल में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने की जिद है, लिहाजा दुश्मनी को तिलांजलि देकर कांग्रेस नीली चादर ओढ़ना चाहती है, जबकि साइकिल पर सवार होकर मध्यप्रदेश की सत्ता के सिंहासन से बीजेपी को गिराना चाहती है और खुद सत्तासीन होकर सियासी वनवास खत्म करना चाहती है।

चुनावी आहट मिलते ही सियासी समीकरण हर पल ऊंट की तरह करवट बदलने लगे हैं, कब कौन किससे गले मिलता है और कब किसकी पीठ में खंजर घोंप दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन मध्यप्रदेश में जो सियासी समीकरण बन रहे हैं, यदि वह धरातल पर उतरे तो निश्चित रूप से बिहार जैसी बहार एमपी में भी देखने को मिलेगी। अब बीजेपी इस समीकरण के समानांतर फॉर्मूला ढूंढ रही है, ताकि विपक्ष के समीकरण को कुतर सके और कांग्रेस की घर वापसी भी रोक सके।

वहीं गुरुवार को अखिलेश यादव के भोपाल दौरे के बाद संभावनाओं को और बल मिलने लगा है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस साइकिल सहित हाथी पर सवार हो जाये क्योंकि बसपा का कुछ तो जनाधार कांग्रेस के खाते में आयेगा, भले ही सपा का उतना प्रभाव एमपी में नहीं है, फिर भी वोटकटवा तो साबित हो ही सकती है। जो बीजेपी के विजयरथ को रोकने में मददगार साबित हो सकता है। कुल मिलाकर बीजेपी के लिए विपक्ष जो चक्रव्यूह तैयार कर रही है, उसका तोड़ अभी तक बीजेपी के पास नहीं है।

विपक्ष के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए बीजेपी का अर्जुन कौन होगा क्योंकि यहां अभिमन्यु की जरूरत नहीं है, यहां तो किसी हाल में बीजेपी को विपक्ष का चक्रव्यूह भेदना ही होगा, बीजेपी ने तो जबलपुर सांसद राकेश सिंह को अर्जुन बनाकर मैदान में उतार दिया है, लेकिन केशव जैसा कुशल सारथी नहीं बना सकी है, जो उनका हर पल मार्गदर्शन करे और दुश्मन की कमजोरियों को साधने का जुगाड़ उनको बताये। ऐसे में यदि कोई सारथी नहीं मिला तो बीजेपी नरेंद्र मोदी को चक्रव्यूह तोड़ने की जिम्मेदारी सौंप सकती है क्योंकि तब अमित शाह उनके रथ पर सवार होकर उन्हें दुश्मन की काट बतायेंगे।

लखनऊ टू भोपाल वाया दिल्ली सरपट दौड़ रही सियासी ट्रेन
लखनऊ टू भोपाल वाया दिल्ली सरपट दौड़ रही सियासी ट्रेन हर उस स्टेशन पर रुक रही है, जहां से भी सियासी फायदा मिलने की उम्मीद है, यदि यह ट्रेन सही सलामत अपने गंतव्य तक पहुंची तो मध्यप्रदेश में बीजेपी के लिए अपना किला दुश्मन के वार से बचाना मुश्किल होगा, जबकि बीजेपी का किला भेदने के लिए कांग्रेस उन सभी दलों को एकजुट कर रही है, जो बीजेपी के खिलाफ हैं या अलग-थलग पड़े हैं। कांग्रेस इस बार एक-एक ईंट जोड़कर सियासी महल बनाने की कोशिश में है तो कांग्रेस के हर उस ईंट को दीवार से निकालने की जुगत में है, जिसके बल पर सियासी इमारत खड़ी होनी है।

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