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Monday 16 April 2018

मुझे नहीं रहना जानवरों के संसार में अम्मा


प्यारी अम्मा! नहीं आना मुझे तुम्हारे संसार में, तुमने मुझे जनम क्यों दिया, क्यों नहीं मुझे कोख में ही मार डाला, पल-पल मरने से अच्छा होता कि एक बार में ही मर जाती, जो मैं एक बार मर गई होती तो यूं रोज-रोज मरने की जरूरत न होती, खौफ के साये में जीना न पड़ता। शाम ढलने से पहले घर पहुंचना न होता, हर पल पहरे की जरूरत न होती। लेकिन क्या बताऊं अम्मा, तेरा संसार कितना कुलीन है, कितना दरिद्र है अम्मा, कितना वहशी है, कितना बेशर्म है, अम्मा तुम्हारे समाज की लाज-हया सब मर गई है, जमीर तो किसी में बची नहीं है, पहले तो एक दुःशाषन था पर आज तो हर चेहरे में दुःशाषन छिपा बैठा है, लेकिन कन्हैया कहीं नजर नहीं आता, पहले एक रावण था, आज हर घर में रावण बैठा है, अम्मा बहुत गंदा है तेरा संसार, मुझे नहीं रहना तेरे संसार में अम्मा।

वो सफर कर दिलवालों के शहर में बस गयी, वह रुककर निजाम-ए-शहर बन गया

मैं रहना तो चाहती हूं, तेरा आंगन महकाना भी चाहती हूं। पर वहशी समाज मुझे जीने नहीं देगा, मुझे नोच डालेगा, मेरे जिस्म के चीथड़े-चीथड़े कर देगा, जैसे दामिनी के साथ हुआ, जैसे आशिफा के साथ हुआ, जैसे सूरत की बहन के साथ हुआ, जैसे सासाराम की मासूम के साथ हुआ, जैसे असम की बेटी के साथ हुआ और कितनों के नाम गिनाऊं अम्मा। मैं तो अभी नादान थी अम्मा, न तो मेरी जवानी आई थी, न तो मेरे नितंब बढ़े थे, न तो मैंने कपड़े छोटे पहने थे, फिर क्यों इन भेड़ियों ने मुझे नोच डाला? अम्मा ये तो हमारे कपड़ों को अपना कवच बनाते हैं, जबकि उनकी मानसिकता हवस भरी है, मन में कचरा भरा है।

वाह रे मर्दों, तुम्हे खुद को मर्द कहने में शर्म नहीं आती, अरे! पैदा होते ही जिसका दूध पीया, जिस छाती को चूसकर तुम बड़े हुए, उन्हीं वक्षों को निचोड़कर कैसे तुम जिंदा हो, ऐसा करते हुए तुम्हारी आत्मा नहीं रोई, क्या तुम्हारा जमीर मर चुका है, तुमसे तो अच्छा उन नामर्दों की बस्ती है, जहां वह सुकून से जी सकती है, बेखौफ कहीं भी आ सकती है, कहीं भी जा सकती है, न तो कोई उसे रोकेगा, न टोकेगा, जहां वह तितलियों की तरह खुले आसमान में उड़ सकती है।

सरकारों की तो पूछिए ही मत, सत्ताधारी दल तो रामराज की अनुभूति कर रहे हैं। बलात्कारी खुलेआम घूम रहे हैं, पुलिसवाले हिरासत में कत्ल कर रहे हैं, सरकार को सबूत नहीं मिल रहा, अदालत गिरफ्तारी करा रही है। सियासत को यकीन नहीं है कि उसके चेहरे पर लगा दाग कोयले से भी अधिक काला है, वो तो इस वहम में है कि उसका चेहरा पूनम के चांद जैसा चमक रहा है, पर ये जनता है ये तो सब जानती है। पूरी संसद और सभी विधानसभाएं गुंडे बदमाशों से भरी पड़ी हैं, अच्छा होता कि एक कानून पारित कर संसद और विधानसभाओं को जरायम शाला घोषित कर दिया जाता। इस बहाने कम से कम सियासत का असली चेहरा तो सामने आ जाता।

सियासत कितनी कुत्ती है जो लाश को भी हिन्दू-मुसलमान बना दे रही है, अपराधियों को भी भगवा और हरे में बांट दे रही है, ये सियासत का ही खेल है, वरना आशिफा के गुनहगारों के समर्थन में तिरंगे को यूं अपमान न सहना पड़ता। पूरी दुनिया में हिंदुस्तान की सरजमीं की थू-थू न होती। सियासत ही है जो उजले तन में छिपे काले लोगों को संरक्षण देती है और वो खुलेआम बहन बेटियों की इज्जत लूटकर भी शान से जी रहे हैं, उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है।

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