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Monday 3 October 2016

बिखर रहा समाजवादी कुनबा, नेताजी पर भारी अखिलेश !

लखनऊ। देश के सबसे बड़े सूबे में विधानसभा चुनाव की आहट मिलने लगी है, बस बिगुल बजने का इंतजार है, अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित योद्धा मैदान में ताल ठोक रहे हैं, तो कदद्दावर नेता शतरंज की बिसात पर मोहरों को फिट कर रहे हैं, लेकिन ये मोहरे हैं कि मानते ही नहीं, यानि मोहरे अपनी ताकत का अहसास कराने में लगे हैं। यही वजह है कि देश का सबसे बड़ा सियासी परिवार इन मोहरों की मनमानी चाल देख बेहद परेशान है, जितने भी मोहरे हैं सबकी अपनी चाल है, इस चाल को देख पार्टी की चाल निर्धारित करने वाले भी भूचाल का एहसास कर रहे हैं। क्योंकि वजीर से लेकर सिपाही तक मनमानी पर आमादा हैं।


बौना हुआ वजीरे आला का कद !

दरअसल, प्रदेश के वजीरे आला इन दिनों अपनी ही पार्टी के मुखिया से बेहद नाराज हैं। जो कई बार खुलकर भी सामने आई है। सोमवार को मुख्यमंत्री कार्यालय के उद्घाटन के वक्त भी ये नाराजगी देखने को मिली, जब सूबे के वजीरे आला और पार्टी के मुखिया रिबन काटने को लेकर झगड़ पड़े, हालांकि पार्टी मुखिया ने वजीरे आला को दरकिनार कर अपने सबसे भरोसेमंद वजीर का हाथ पकड़ कार्यालय का उद्घाटन कर दिया, जिससे उस वक्त वहां मौजूद वजीरे आला से लेकर बाकी के और वजीरों ने खुद को बौना महसूस किया।

टिकट बंटवारे में तेरा-मेरा का खेल

वहीं टिकट बंटवारे को लेकर भी अंदरूनी खींचतान मची है, सब अपने-अपने भरोसेमंद मोहरों को मैदान में उतारने की फिराक में हैं, यही वजह है कि सब अपने-अपने मोहरों को अपने मन मुताबिक मोर्चे पर सेट करने की तरकीब निकाल रहे हैं, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगाई तो सूबे के वजीरे आला कैंची लेकर निकल पड़े, यानि किस उम्मीदवार के नाम पर कैंची चलानी है, कैसे चलानी है, इसकी तरकीब ढूंढ़ रहे हैं। क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष ने 14 पुराने उम्मीदवारों का पत्ता साफ कर दिया है और 21 उम्मीदवारों की सूची में कवियत्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के आरोपी बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी के बेटे व सारा त्रिपाठी हत्याकांड के आरोपी अमनमणि को महाराजगंज जिले की नौतनवां सीट से टिकट दे दिया है।

पार्टी मुखिया के रिमोट से चलते हैं वजीरे आला

इतना ही नहीं सूबे के वजीरे आला हर बार अपने ही फैसले के आगे बौना साबित हो जाते हैं। यानि अब तक कई ऐसे फैसले उन्होंने लिए थे, जिस पर उन्हें यू-टर्न लेना पड़ा, इसके पीछे पार्टी मुखिया का दबदबा है, जिससे साफ होता है कि पार्टी मुखिया ने जिसे वजीरे आला बनाया है, उसकी रिमोट अपने ही हाथ में रखी है, चाहे मंत्रियों की वापसी हो या विभागों का बंटवारा। हर बार वजीरे आला को मुंह की खानी पड़ी है।

रास्ते जुदा! साथ रहने का क्या अर्थ ?

सियासत में खेल सिर्फ सत्ता के लिए होता है, सत्ता पाने के लिए जोड़, तोड़, गठजोड़ आम बात है, तो जब सूबे के वजीरे आला और पार्टी मुखिया के बीच नफरत की तलवारें खिंची, तो वजीरे आला ने भी रिमोट की बैट्री निकालकर साफ कर दिया कि अब जब राहें जुदा हो रही हैं तो साथ रहने का क्या मलतब!

वोटरों को गुमराह करने की साजिश !

चुनाव से पहले इस तरह की बातें होनी आम हैं, कभी वोटरों को गुमराह करने के लिए, तो कभी उनकी सहानुभूति लेने के लिए, लेकिन अब वोटर भी सियासत की चाल को समझने लगा है, जो मौका देखकर चौका लगाता है और सियासतदानों को अपने वोट से चोट देता है। अब इस सियासी परिवार में मचे कलह को लोग अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं, क्योंकि ऐन चुनाव के वक्त ही ये उठापटक क्यों हैं, आखिर क्यों वजीरे आला साढ़े चार साल तक पार्टी मुखिया के इशारों पर नाचते रहे, चुनाव से ठीक पहले ही उन्हें क्यों याद आया कि वो काठ के पुतले की तरह पार्टी मुखिया के इशारों पर नाच रहे हैं, या उन्हें कोई जामवंत मिल गया, जो उनको उनकी ताकत का अहसास करा दिया, जिसके बाद वो पार्टी मुखिया से खफा हो गए।

साभार ईनाडु इंडियाः  http://hindi.eenaduindia.com/State/UttarPradesh/2016/10/04112247/struggle-for-supremacy-in-samajwadi-party.vpf

2 comments:

  1. अभी भी कुछ बिखरना बाकी रह गया क्या ?

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    1. भाई अभी कुछ भी नहीं बिखरा है बल्कि ये विपक्ष को चित करने की चाल है। लेकिन कहते हैं न कि इंसान दूसरे के लिए व्यूह रचते-रचते एक दिन खुद उसी व्यूह में फंस जाता है!

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