Friday 23 November 2018

वो जाते-जाते अपने साथ यहां का सावन-बसंत सब ले गयी

ऑफिस पहुंचने के बाद उसे कुछ भी याद नहीं रहता था, बस खबरें खोजना और उन्हें श्मशान में ले जाकर उनका अंतिम संस्कार करना उसका काम था. कई बार तो वह सोचता था कि यदि वह घाट का डोम होता और खबर रूपी लाशों का लेखाजोखा रखना होता तो न जानें कितने रजिस्टर भर चुका होता क्योंकि आठ साल से अधिक समय यही काम करते बीत चुका है. रोजाना की तरह उस दिन भी वह पूरे दिन ऑफिस में खबरों से टकराता और उलझता रहा, इस दौरान बार-बार मोबाइल पर प्रियदर्शनी का फोन आ रहा था, पर यह सोचकर वह फोन रिसीव नहीं किया कि बाद में बात कर लेगा, उधर से संदेश भी आया कि मोबाइल खराब हो गया है, नंबर नहीं है इसलिए मैसेंजर पर कॉल कर रही हूं, फिर भी खबरों के बीच वह इस कदर घिरा रहा कि न तो फोन पिक कर पाया और न ही वापस उसे फोन कर पाया, शाम को घर पहुंचा तो कपड़ा चेंज किया, फिर बिस्तर पर लेटकर ऊंघना शुरू किया, जी कर रहा था कि बस अब बिस्तर पर ही पूरी रात गुजार दे, पर ऐसा मुमकिन नहीं था क्योंकि खाना जो खुद से पकाना था, नहीं पकाने पर पूरी रात भूख से लड़ना पड़ता और नींद भी रूठकर चली जाती, नींद को मनाने के लिए आलस छोड़कर किचन में दाखिल होना था, इस बीच अचानक याद आया कि उसका संदेश आया था बात करनी है, चलो फोन लगाते हैं देखें क्या बात है।

अगले ही पल उसने उसको फोन किया और एक ही बार में फोन लग गया, जबकि अमूमन ऐसा कम ही होता है, पर फोन लगने के बाद नेटवर्क लुकाछिपी का खेल खेलने लगा, कोई भी बात पूरी न वहां पहुंचा रही थी और न ही यहां क्योंकि वह उस वक्त ट्रेन में सफर कर रही थी, सुबह से वह भी बेतरतीब तरीके से इधर-उधर भाग रही थी, इस वजह से बात करने का वक्त नहीं निकाल पायी और जब बात करना चाही तो जिससे करना था उसको समय नहीं था, हालांकि कुछ देर बाद बात शुरू हुई, थोड़ी हाल-चाल पूछने के बाद उसने कहा कि माफ करना अब मैं आपके शहर में नहीं रह पाऊंगी. वह कई बार इस बात का जिक्र पहले भी कर चुकी थी, पर आज उसकी बात सुनकर जैसे शरीर में ग्यारह हजार बोल्ट का करेंट लग गया था, वह बिल्कुल अवाक रह गया उसकी बात सुनकर क्योंकि उसने भी नये शहर में अपना ठिकाना ढूंढ़ लिया था, अब उसको इस शहर की जरूरत नहीं थी, बस आखिरी बार उस शहर में जाना था, वही खुशखबरी देने के लिए वह बार-बार फोन कर रही थी, हालांकि अपने फैसले पर वह बहुत खुश थी, उसके आनंद को शब्दों में बयां करना या सीमाओं में बांधना किसी कवि-साहित्यकार या कलाकार के बस में भी नहीं था।

उसकी हर बात को वह गंभीरता से सुन रहा था, पर कुछ भी जवाब नहीं दे रहा था, जो दिया भी तो हल्की सी हामी भर दी कि बस उसे पता चलता रहे कि वह उसकी बात सुन रहा है, लेकिन उसकी हर एक बात पर वह गम के समंदर में समाता जा रहा था क्योंकि उस शहर में उसके रहने की वजह वही थी, जब वह भी उस शहर से चली जाएगी तो वह किस के सहारे उस शहर में रहेगा, बस यही बात उसको परेशान कर रही थी और बीच-बीच में नेटवर्क भी दुश्मनी साध रहा था, उसका गला भर आया था, पर उसको आभास नहीं कराना चाहता था, इसलिए वह अपने आंसुओं को पीये जा रहा था, जब तक वह बात करता रहा, तब तक परेशानी कम रही, जैसे ही फोन कटा आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगी, बिस्तर पर पड़े-पड़े मरीजों की तरह करवटें बदलता रहा और उसको याद करता रहा, वह उससे कहा कि वह आज पूरी रात उससे बात करे क्योंकि नींद तो अब उसे आनी नहीं थी और वह भी ट्रेन में सफर कर रही थी तो उसके पास भी पर्याप्त समय था।


वह बेड पर पड़े-पड़े पुराने खयालों में खोता चला गया, बीते एक साल का परिदृश्य उसकी आंखों के सामने चलचित्र की तरह चल रहा था क्योंकि पहली मुलाकात में ही उसने उसे बड़ी जोरदार फटकार लगाई थी, जिसके बाद वह कई दिनों तक उससे बात नहीं की थी, पर कहते हैं न कि बारिश के बाद धूप और तेज हो जाती है क्योंकि मौसम साफ हो जाता है और धूप को रास्ते में कोई रोकने वाला नहीं मिलता, ठीक वैसे ही उसके साथ हुआ, उस फटकार के बाद प्यार के जो अंकुर फूटे वो बारिश के बाद होने वाली धूप से भी तेज थे, समय के साथ वो अंकुर पेड़ की शक्ल में परिवर्तित होने लगे, पेड़ के तैयार होने का समय आ गया था, पर इस बीच आये आंधी के झोंके ने उसे ले जाकर दूसरे शहर में पटक दिया और वह अंकुर पेड़ तो बन गया पर छाया और फल किसी और शहर के हिस्से में चला गया, वह उन दिनों को याद करता रहा, पूरी रात बीत गयी, न उसे खाने की चिंता रही न नींद की, बस पूरी रात उन पलों को याद करते-करते गुजार दिया, इस बीच कई बार उसे फोन भी किया, पर कभी कुछ देर बात हो जाती तो कभी नेटवर्क साथ नहीं देता।


वह अलसाई सुबह उसको बार-बार याद आती है, जब वह बस से उतरकर पैदल चलता था और वह बार-बार उसको धीरे चलने के लिए टोकती थी, पर वह उसकी गति बढ़ाने के लिए हमेशा उससे आगे ही चलता और उसे तेज चलने के लिए प्रोत्साहित करता, सुबह के उस सुहाने मौसम का क्या कहूं, शांत वातावरण में चलती शीतल हवा मन को आनंदित कर देती थी, कभी-कभार सुनहरा आसमान और आस-पास जमीन पर घास की कलाकारियां और सड़क के किनारे खिलते लाल-सफेद फूल आंखों में नई चमक पैदा कर देती थी और जब उसका साथ होता तो क्या था, फिर तो न सावन की जरूरत पड़ती न बसंत का इंतजार रहता क्योंकि ऐसे मौसम में उसकी आंखों में बसंत दिखाई पड़ता तो पलकों के पीछे सावन के बादल, कंचन सी काया और पतली सुरीली आवाज कोयल और पपीहा को भी मुंह चिढ़ाती थी, उसके बदन से निकलती खुशबू चंदन से कम नहीं थी, जिसकी महक से वह फिजाओं को महकाती रहती थी, उसके आसपास का वातावरण हमेशा खुशमिजाज रहता था।

वह एक दिन भी उसे देखे बिना चैन से नहीं रहा पाता था, उसके बात करने का अंदाज और चेहरे पर 24 घंटे तैरती मुस्कान हर किसी को उसकी ओर खींच ले जाती थी, बस उसकी यही अदा पर वह फिदा हो गया था।


ये कहानी 21 अप्रैल 2017 को आये एक फोन कॉल पर आधारित है।

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