जिस देश की आत्मा किसानों के दिल में बसती है. उस देश में किसानों के उत्थान की बस बातें हो रही हैं, पिछले 70 बरस से नेताओं की जुबान पर यही वादे हैं और सरकारी फाइलों में पिछले 70 बरस से यही बातें अलग अलग स्याही से लिखी जा रही हैं. पर आज तक उस स्याही का रंग किसी पन्ने पर दिखाई नहीं दिया. वह पन्ना आजादी के सात दशक बाद भी कोरा ही है.
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