Friday 8 June 2018

दोनों तरफ बेशुमार प्यार के बीच परदेस की नौकरी बनी दीवार

रोजाना की तरह वह ऑफिस जाने के लिए बस में सवार हुआ, बस चल पड़ी, जिसके कुछ देर बाद तक वह मोबाइल से निकलती ध्वनि को सबके कानों से बचाते हुए अपने कानों तक पहुंचाने का प्रयास करता रहा, लेकिन ध्वनि संवाहक यंत्र में कुछ त्रुटि थी, जिसकी वजह से पूरी आवाज अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पा रही थी, हालांकि वह काफी देर तक इसी उधेड़बुन में फंसा रहा और उसे पटरी पर लाने की कोशिश करता रहा, पर वह भी सरकारी सिस्टम की तरह सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा था, आखिरकार वह थक हारकर मोबाइल की गैलरी खंगालने लगा और एक-एक वीडियो को चेक करने लगा कि किस वीडियो की आवाज सही से उसके कानों तक पहुंच रही है, एकाध वीडियो की आवाज ही ध्वनि संवाहक टूटे-फूटे लफ्जों में पहुंचा पा रहा था, तभी एक वीडियो पर उसकी नजर पड़ी, जिसकी आवाज पहले से ही टूटी-फूटी थी, पर उस वीडियो को देखकर कुछ भी पढ़ने और सुनने की जरूरत नहीं बचती थी क्योंकि वह वीडियो टूटी-फूटी आवाज में होकर भी पूरा था।


उस वीडियो को देखकर वह पुराने खयालों में खो गया, अपने अतीत को याद करने लगा, वो नजारा उसके जेहन में सपनों की तरह तैरने लगा, जिसे वह कभी हकीकत में देख नहीं पाया था, उस सपने को पूरा करने के लिए उसे पूरे शरीर को भूख की ताप में जलाना पड़ता, जिसे यादों के मुकाबले जलाना काफी मुश्किल था, इसलिए वह अपना घर-द्वार छोड़ गया, बूढ़े मां-बाप को छोड़ गया, शादी के 15 दिन बाद पत्नी को छोड़ गया, इतना ही नहीं बेटी के पैदा होने के 9 महीने बाद पहली बार उसे देख पाया था, जबकि पत्नी से मुलाकात हुए करीब डेढ़ साल बीत गए थे, अपनी हर ख्वाहिश को वह इसलिए आग में जला रहा था, ताकि किसी और को किसी अभाव की आग में जलना न पड़े, ऐसे ही उसने पांच साल गुजार दिये, उसकी बेटी भी करीब 32 महीने की हो गयी, पर मुश्किल से 32 दिन भी उसके साथ नहीं बीता। ऐसे में एक बाप के उपर क्या बीत रही होगी, इसका अंदाजा शायद आपको नहीं हो, पर हां जिन लोगों के बच्चे हैं, वो लोग अच्छी तरह से उस दर्द को समझ सकते हैं।


खैर! वह बार-बार उस वीडियो को दोहराता रहा, एकाध और वीडियो भी मौजूद थे, जिसे वह जितना देखता, उतना मन ही मन रोता था, वह सोच रहा था कि आखिर जरूरतों के लिए और कितनी खुशियों की कुर्बानी देनी होगी, अपने घर के आंगन पर खिलता चांद कैसा लगता होगा, अमावस और पूनम की रात कैसी लगती होगी, करवा चौथ पर उसकी पत्नी जब अपने पति की तस्वीर देखकर अपना व्रत तोड़ती होगी तो कैसा महसूस करती होगी, शायद उस दिन उसे भी एहसास होता होगा कि काश इन जरूरतों के बदले वह खुशियां खरीद ली होती तो यूं आज उसको पति की लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला व्रत पति की फोटो देखकर न तोड़नी पड़ती। मां की दवाई के लिए उसको दोस्तों की मदद नहीं लेनी पड़ती, न पिता को सहारा देने के लिए किसी और का इंतजार करना पड़ता। पर सबसे ज्यादा उसको उसकी बेटी की यादें तड़पाती थी, जिसे वह देखने के लिए तड़प रहा था, वह बार-बार यही सोचता था कि उसकी बेटी घर के आंगन में कैसे उधम मचा रही होगी, जो भी सामान देखती होगी, बिखेरने लग जाती होगी, नए कपड़े पहनकर वह किस-किसको दिखा रही होगी और थोड़ी देर बाद जमीन पर लोटकर कपड़ों को भी मिट्टी जैसा बना देती होगी, तब उस पर कौन कौन गुस्सा कर रहा होगा और कौन उसे बचा रहा होगा?


मां तो आखिर मां ही होती है, जो अपने बच्चे को सीने से लगाए बिना पूर्ण सुरक्षित महसूस नहीं करती, दूसरा कोई उसे छू भी दे तो मां का कलेजा फट जाता है। ऐसे में वो सोचता है कि जब सावन की रिमझिम फुहार में वह भीग रही होगी तो कौन उसे पकड़ कर ले जाता होगा, जब मिट्टी से नहा रही होगी तो कौन उसे रोकता होगा, जब बिजली कड़कती होगी तो डर के मारे किससे चिपक कर खुद को सुरक्षित महसूस करती होगी। हां, पर जब बच्चे बहुत परेशान करते हैं तो मां उनकी पिटाई भी कर देती है और बहुत गुस्से में होती है तो मां रो भी देती है, पर वह सोचता है कि जब उसकी मां उसको पीटती होगी तो कौन उसे बचाता होगा। वह किसके पीछे जाकर छिपती होगी, किसके पीछे खड़ी बेटी को देखकर उस मां का गुस्सा शांत होता होगा और कहती होगी कि चलो देखती हूं कब तक तुम्हे बचाते हैं। हालांकि, जितना वह बाप दूर बैठकर तड़प रहा होगा, उससे कम वह बेटी भी नहीं तड़पती होगी, बस फर्क इतना है कि उसे अभी उसका अंदाजा नहीं है कि उसको बाप का प्यार नहीं मिल रहा है, लंबा समय बीत जाये तो शायद वह अपने बाप को पहचाने भी नहीं, ये भी मुमकिन है, लेकिन बेशुमार प्यार दोनों तरफ है एक दूसरे पर लुटाने के लिए, बस रोटी ही बीच में दीवार बनकर खड़ी हो गयी है।


इन सब झंझावातों के बीच वह यह सोचकर भी बार-बार परेशान होता है कि बेटी उसकी कैसी होगी, जब वह बाहर जाती होगी तो न जाने कैसे और कौन लोग उसे घूरते होंगे, कैसे वह खुद को बचाती होगी, कैसी-कैसी फब्तियां कसते होंगे, भेड़ियों की नजरों से उसकी बेटी कैसे बचती होगी, ये सोच-सोचकर उसे रात को नींद नहीं आती। पूरे देश में माहौल ही ऐसा है कि अखबार पलटो या टीवी खोलो तो समाज की असलियत मुंह चिढ़ाती दिख जाती है। मासूमों के साथ होती हैवानियत रात को सोने नहीं देती। इसी उलझन में बुदबुदाते हुए न जाने कब वो नींद में सो जाता है और जब नींद से जगता है तो फिर से वही उधड़बुन शुरू, इन सबके बीच रोजमर्रा के काम भी पूरा करता था, पर दिमाग में चलता तूफान उसे कभी शांत नहीं होने देता था, जिसके चलते वह अक्सर बेचैन हो उठता था।

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यही स्थिति कमोबेश उन मां-बाप की भी होती है, जिनकी बेटियां घर से बाहर पढ़ने जाती हैं या हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करती हैं, जबकि कुछ तो घर से दूर किसी परदेस में रोजी-रोटी के लिए रह रही होती हैं, उन मां-बाप को रात में कैसे नींद आती होगी, एक-एक पल उनका कैसे बीतता होगा क्योंकि घर के अंदर हो या बाहर महिलाओं के लिए खतरा हर जगह मौजूद है, पर मां-बाप के सामने जब बेटियां रहती हैं तो उनको तसल्ली रहती है। यही सब सोचते-सोचते उसका सफर न जाने कब पूरा हो गया, बस अपने गंतव्य तक पहुंच गई और सभी लोग उतरकर ऑफिस की तरफ जाने लगे, तभी किसी साथी ने उसे झकझोर कर जगाया कि कहां खो गये जनाब, आपकी मंजिल आ गई है और अब आप किराये की इस बस को खाली कर दीजिए, उसकी बात सुनकर वह भी अपनी सीट से उठा और उतरकर ऑफिस की ओर चल दिया।

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