Monday 2 April 2018

सियासी भट्ठी में तपाये जा रहे दलित ताकि बन जायें कट्टर!

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद दलित समाज सड़क पर है, सुबह से देश के कोने-कोने से हिंसा-आगजनी की खबरें सुनाई पड़ रही हैं, जबकि मध्यप्रदेश में हालात बद से बदतर हो रहे हैं, ग्वालियर-चंबल इलाके में खूनी हिंसा में चार लोगों की मौत हो गयी, जबकि आधा दर्जन के आसपास गोली के शिकार हो गए हैं, स्थिति पुलिस के नियंत्रण से बाहर होने लगी तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से अर्धसैनिक बल की टुकड़ियां भेजने की मांग की।

मध्यप्रदेश के हिंसा प्रभावित सभी इलाकों में कर्फ्यू लगाने के साथ ही इंटरनेट सेवा पूरी तरह से ठप कर दी गई है, पर सवाल ये है कि आखिर खुद को दलित, शोषित, वंचित कहने वालों में इतनी ताकत कहां से आ गयी कि वो गुंडागर्दी पर उतर आये और शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बजाय सीधे-सीधे प्रशासन से टकराने लगे, क्या वाकई उनको ये ताकत कहीं से मिली है या इस फिल्म का खलनायक कोई और ही है, जो पर्दे के पीछे से मंच का संचालन कर रहा है और पूरे देश को हिंसा की आग में जलाने की कोशिश कर रहा है क्योंकि ज्यादातर मामलों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर सियासी कनेक्शन होता है, फिर इसी हिंसा के जरिए वोटरों को कट्टरता की भट्ठी में तपाया जाता है, ताकि वो किसी एक पार्टी पर आंख बंद कर विश्वास करें और उसकी बुराई करने वालों से भी सीधे तौर पर टकरा जाएं।

एक करोड़ की नौकरी छोड़ शिक्षा की अलख जगाने निकले हैं पूर्वांचल के सपूत 

एमपी, राजस्थान, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के अलावा और भी कई राज्यों में हिंसा हुई है, जबकि कई राज्य रामनवमी के दिन से ही हिंसा की आग में जल रहे हैं, उपर से भारत बंद ने इस हिंसा में घी का काम किया है। जगह-जगह दलित दुकानों को लूटते नजर आये, कहीं तोड़फोड़ तो कहीं आगजनी करते देखे गए, जबकि भिंड में तो एक दारोगा की पिटाई के बाद सर्विस पिस्टल और मोबाइल तक छीन लिया गया। दलितों की ये गुंडागर्दी आसानी से हजम नहीं होती, तो क्या ये मान लिया जाए कि दलितों के कंधे पर बंदूक रखकर कोई और ही चला रहा है।

यात्रा वृतांत : यादों की तिजोरी से निकला खजाना 

अब विपक्ष सत्ता पक्ष को इस हिंसा का जिम्मेदार ठहरा रहा है, साथ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी इसका दोषी मान रहा है, पर कोई ये बताने को तैयार नहीं है कि उसने इस हिंसा को रोकने के लिए क्या उपाय किया या सारी जिम्मेदारी सरकार की होती है, यदि सरकार की है तो चिल्ला-चिल्ला कर बताने की क्या जरूरत है, ये बात तो सबको पता है कि कानून व्यवस्था बनाए रखना सरकार का नैतिक कर्तव्य होता है।

कहीं इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले आम चुनाव की पटकथा तो भारत बंद के जरिए नहीं लिखी जा रही है, ताकि उन चुनावों में सियासी दल एक दूसरे की छवि खराब कर खुद उसका लाभ उठा सकें, हालांकि वजह जो भी हो इस तरह की हिंसा का कतई समर्थन नहीं किया जा सकता।

ये है भारत बंद की वजह
सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी।
SC-ST एक्ट में सीधे गिरफ्तारी नहीं करने का आदेश दिया है।
पुलिस को 7 दिन के अंदर जांच के बाद कार्रवाई का आदेश।
SC- ST एक्ट में गिरफ्तारी के लिए SSP की मंजूरी अनिवार्य
SC-ST एक्ट के तहत दर्ज केस में अग्रिम जमानत को मंजूरी।
इस कानून के तहत सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी के लिए उच्च अधिकारी की मंजूरी अनिवार्य है।

No comments:

Post a Comment