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Thursday 14 May 2015

केजरीवाल को चिठ्ठी

दिल्ली का केजरीवार इतना निकम्मा हो जाएगा। किसी ने चुनाव के वक्त ऐसा नहीं सोचा था, लेकिन सत्ता है ये, सियासत में ऐसा होता है। जब सियासत का रंग चढ़ता है, तो घोड़ों, गधों को भी अपनी जमात में शामिल कर लेता है। सब पर एक ही रंग चढ़ जाता है। अपार बहुमत मिल जाए, तो जुबान और दिल दिमाग पर तानाशाही कुंडली मारकर बैठ जाती है। ऐसे में केजरीवाल भला आलोचना कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं। दिल्ली सरकार, आम आदमी पार्टी और अपनी नाकामियों, मनमानियों को दिखाने पर मीडिया की हत्या करने पर उतारू हो गए। बाकायदा सर्कुलर जारी कर मीडिया को खुलेआम धमकी दी, कि यदि किसी भी माध्यम से सरकार की छवि खराब की गयी तो, उस संस्थान, पत्रकार पर मानहानि का दावा करेंगे। खैर, बेचारे केजरीवाल को जनता ने सरताज तो बना दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसके अरमानों पर पानी फेर दिया। कोर्ट ने मीडिया के खिलाफ जारी सर्कुलर पर रोक लगा दी। अब क्या करे बिचारा केजरीवाल, ये तो वही हाल हुआ, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। कान खोल कर सुन लो अरविंद केजरीवाल, मीडिया आपकी बपौती नहीं है। तुम्हारे इशारों पर नाचने वाली कठपुतली नहीं है। प्रजातंत्र का महत्वपूर्ण अंग है मीडिया, या कहें कि चौथा स्तंभ है। जिसके बिना लोकतंत्र अपाहिज हो जाता है। एक केजरीवाल के लिए 125 करोड़ जनता को बेवकूफ नहीं बना सकती है मीडिया। ये काम तो सिर्फ केजरीवाल और उनकी पार्टी को शोभा देता है। क्योंकि जो अधिकार पत्रकार के पास है, वो अधिकार देश के हर नागरिक के पास है। मीडिया केजरीवाल जैसा बेईमान नहीं है। जो सत्ता की लालच में अपने आदर्शों की बलि चढ़ा दे। अपने मार्गदर्शक को कुचल कर उसकी लाश पर खड़ा हो जाए। वो भी विलासिता पूर्ण जीवन के लिए, तानाशाही के लिए। ये वही केजरीवाल हैं जो दिल्ली के खंभों पर चढ़कर तार काटते थे, आए दिन खुलासा करते थे। तब मीडिया पूरे देश को बताती थी। ईमानदारी की चादर ओढ़े बेईमान भेड़िए की कहानी। वरना आज कुछ लोगों को छोड़कर कोई नहीं जानता, कि ये केजरीवाल है कौन, किस खेत की मूली है। मीडिया की पैदाइश आम आदमी पार्टी है। दिल्ली की सरकार है। याद रखना जो किसी को बनाने का माद्दा रखता है वो बिगाड़ने का माद्दा भी रखता है।


क्या सत्ता का नशा ऐसा ही होता है, जब मिलता है तो उसकी मद में इंसान अंधा हो जाता है। हो ना हो, लेकिन आप को देखकर ऐसा ही लगता है। कि आप में अरविंद केजरीवाल जैसा ईमानदार कोई और नहीं है। हां कुछ उनके भड़वें भी हैं, जिन्हे केजरीवाल ने ईमानदारी का लाइसेंस दिया है। वरना पहले वसंत से पहले पतझड़ की बहार नहीं आती, कितनों ने केजरीवाल की तानाशाही से तंग आकर पार्टी से तौबा कर लिया। लेकिन रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। अपने खून पसीने से सींचने वाले कितने कार्यकर्ता, नेता पार्टी से नाता तोड़ गए। लेकिन केजरीवाल की अकड़ कम नहीं हुई। उपर से जिस स्वराज का जिक्र करते थे हर समय, जिस स्वराज के दम पर बड़ी बड़ी पार्टियों को चुनौती देते थे। उसका भी कत्ल कर आए। अब केजरीवाल की ये काली करतूत मीडिया दिखाए। तो भला उन्हे रास कैसे आए, वो भी जब अपार बहुमत वाली सरकार की मुखालफत के बदले खिलाफत कर रही हो मीडिया। इसलिए केजरीवाल ने भी मीडिया को पाबंद करना ही उचित समझा। ताकि उनकी करनी उजागर ना हो। ये वही केजरीवाल है जो मुझे चाहिए पूरी आजादी, मुझे चाहिए स्वराज की टोपी लगाकर चलता था। जनता की बात करता था। अब जनता की आजादी, सहूलियत की बात नहीं सिर्फ अपनी सहूलियत की बात करता है। विनाश काले विपरीत बुद्धि। ये तुगलकी फरमान ही केजरीवाल की बरबादी की नींव है। अब नींव तो पड़ गयी है बस इमारत बनने की देर है। वैसे भी मीडिया को बैन करना इतना आसान नहीं है अरविंद केजरीवाल। जय हो मीडिया, जय हो अदालत, सच्चे का बोलबाला झूठे का मुंह काला।

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