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Wednesday 6 May 2015

13 साल बाद जीता इंसाफ

आज फिर इंसाफ जीत गया, लेकिन लंबे वक्त ने इस जीत की खुशी को काफूर कर दिया। 13 साल से पीड़ितों के जख्मों को जिस कदर कुरेदा गया। इंसाफ मिलने के बाद भी उसकी भरपाई नहीं हो सकती, फिर भी उन्हे संतोष तो करना ही पड़ेगा। क्योंकि गरीब के हिस्से में सिर्फ संतोष कि सिवा कुछ आता नहीं। मुंबई की चमचमाती सड़कें, चकाचौंध रातें, आलीशान महलों में रहने वालों को गरीबी का मोल। तेरह साल बाद सलमान खान को कोर्ट ने पांच साल की कैद और 25 हजार रूपए जुर्माना देने का फरमान सुना दिया। जिन धाराओं में आरोप साबित हुआ, उसमें दस साल की सजा का प्रावधान है। लेकिन कोर्ट ने देश सजा कम कर दी, इस बिनाह पर कि सलमान ने 600 बच्चों का इलाज कराया, 42 करोड़ रूपए चैरिटी को दिए। इस सबसे उन मजलूमों का क्या नाता, जो 13 साल से हर पल कार के नीचे रौंदे जाते रहे, हर पल तिल तिल कर मरते रहे, उनकी जिंदगी उन पर बोझ बन गयी। किसी के बहन की शादी नहीं हुई तो कोई जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो गया। लेकिन कोर्ट भी उनकी बेबसी पर धृतराष्ट्र बन गया।
खैर सलमान का आशियाना अब ऑर्थर रोड जेल बन गया है। उनके वकील जमानत के लिए हाई कोर्ट पहुंच गए, लेकिन सजा सुनते ही सलमान की आखें आसुओं से डबडबा गयीं। जुबान पर ताला लगा लिया, लेकिन आंखों से सबकुछ बयां करते रहे और सिर झुकाकर स्वीकार करते रहे। कोर्ट का फैसला सुन उनकी मां बेहोश हो गयी। बहनें आंसू बहाती रही और भाई भारी मन से अदालत के बाहर निकल गए।
फैसला सुनकर उनके परिवार सदमें में पहुंच गया। लेकिन वो पल वो लोग भूल गए जब सलमान की लापरवाही ने बच्चों को अनाथ कर दिया। गरीबों के पेट की रोटी छीन ली। बहन कुंआरी रह गयी। गरीबी का बोझ ढोने की ताकत क्षीण कर दी। जब शराब के नशे में चूर सलमान को सड़क और इंसान में फर्क करना नहीं आया। उनकी मौजमस्ती ने कितनों का निवाला छीन लिया।

कोर्ट को ये साबित करने में 27 गवाहों के बयान दर्ज करने पड़े, 13 साल तक सुनवाई करनी पड़ी, नतीजा अब आपके सामने है। खैर कोर्ट के फैसले से लोगों में कानून के प्रति सम्मान तो बढ़ा है। लेकिन इस फैसले का हात तो उसी कहावत को चरितार्थ करती है कि ‘का वर्षा जब कृषि सुखानीउपर से इस सजा से उन गरीबों का पेट तो भरने से रहा, जिस पर कोर्ट ने गौर नहीं किया। जबकि हिंदुस्तान की न्याय व्यवस्था इतनी बोरिंग है कि जिंदगी गुजर जाती है, पीढ़ीयां खत्म हो जाती हैं। आरोपी दुनिया छोड़ देता है, लेकिन न्यायिक लड़ाई अपनी रफ्तार से चलती रहती है। इस व्यवस्था में बदलाव नहीं किया गया तो। ये कानून भी बस जिंदगी चलाने की सांस जैसी हो जाएगी। जो सिर्फ नाम के लिए रहेगी, पर वो जिंदगी रहकर भी मौत से बदसूरत लगती है।

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