भले
ही हरियाणा की धरती को बेहद उपजाऊ होने का गौरव मिला है। और सबसे अमीर होने का
तमगा। लेकिन दागी सियासत के लिए भी हिंदुस्तान के राज्यों में हरियाणा की उम्दा
पहचान है। सूबे की सियासत पर ऐसा कलंक है। जिसे लाख कोशिश के बाद भी साफ करना नामुमकिन
है। क्योंकि यहां की सियासत की जड़े ही अपराध के दलदल से निकली हैं। सूबे में सत्तारूढ़
कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा 10 सालों में अपार दौलत के मालिक
बन बैठे। दहेज के लिए बहू को घर से निकाल दिए और वाड्रा की चिठ्ठी दिखाकर सोनिया,
राहुल को ब्लैकमेल करते रहे। सूबे में सिर्फ उनकी और उनके करीबियों की चलती रही।
जिससे पार्टी अंदरूनी कलह की शिकार हो गयी और ये कलह पार्टी को भीतर से खोखला करने
लगी। अब दूसरी बड़ी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला उनके
बेटे अजय चौटाला जेबीटी घोटाले में सजायाफ्ता कैदी हैं। स्वास्थ्य खराब होने का
हवाला देकर जमानत पर इन दिनों सलाखों से बाहर हैं घूम घूम कर चुनाव प्रचार कर रहे
हैं। और विरोधी दलों पर आरोप लगा रहे हैं कि नौकरी देने के लिए उन्हे जेल हुई है।
इसके बाद हरियाणा जनहित कांग्रेस का नंबर आता है। जिसके अध्यक्ष कुलदीप बिश्नोई के
भाई चंद्र मोहन बिश्नोई उप मुख्यमंत्री रहते अनुराधा बाली के इश्क में हिंदू से
मुसलमान बन गए। और जी भर जाने पर तलाक देकर फिर हिंदू बन गए। जिससे पूरी दुनिया
में उनकी थू थू हुई। अब फिजा की भी मौत हो चुकी है, मौत भी ऐसी भयानक जिसे सुनकर
दिल कांप जाता है, एक हफ्ते बाद मोहाली में फिजा के फ्लैट में सड़ी लाश मिली थी।
उससे कुछ दिन पहले दोनों के रिश्तों में खटास, मारपीट की खबरें आई थी। खैर चांद
मोहम्मद अब फिर से चंद्र मोहन बिश्नोई बनकर सियासी रण में ताल ठोंक रहे हैं। अब
नंबर है हरियाणा जन चेतना पार्टी के मुखिया विनोद शर्मा का जो बेटे की सजा पर
कोर्ट के काम में दखल न देने से खफा होकर पार्टी को अलविदा कह दिए और नई पार्टी का
गठन कर मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं ताकि कानून का गला घोटकर अपने बेटे
को सलाखों से बाहर निकाल सकें। वहीं गीतिका शर्मा को आत्महत्या करने के लिए मजबूर
करने के आरोप में जमानत पर बाहर चल रहे गोपाल कांडा भी सत्ता के सिंहासन पर काबिज
होने का दम भर रहे हैं। उन्होने भी हरियाणा लोकहित पार्टी का गठन किया और अपने
उम्मीदवार उतार कर बहुमत की आस में हैं। वैसे भी हरियाणा की सियासत में जिन
दलों का वजूद है। उन सभी के पांव अपराध की दलदल से ही निकलते हैं। जो निकलने की
कोशिश करेंगे भी तो और फंसते चले जाएंगे। जब सियासत की जड़ ही अपराध की दलदल से
निकल रही है। तो उसकी शाखाएं दलदल को दरिया बनाने की चाहत रखती है। यहां की सियासत
में बाप नंबरी तो बेटा दस नंबरी वाली कहावत को चरितार्थ करती है।
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